Sachi Tirth Yatra | पांडव और कौरव के बीच महाभारत (Mahabharat) का युद्ध जब समाप्त हुआ तो दोनों ही पक्षों से असंख्यों की संख्या में सैनिक मारे गए. युद्ध के पश्चात पांडवों का मन अशांत रहने लगा जबकि महाभारत का युद्ध पांडव (Pandavas) जीत चुके थे. अपने मन की शांति के लिए उन सभी ने तीर्थ यात्रा पर जाने का निश्चय किया इसके लिए पांडवों ने श्रीकृष्ण से तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए अनुमति मांगी इस पर भगवान श्रीकृष्ण (Shree Krishna) ने उन्हें तीर्थ यात्रा पर जाने की अनुमति देते हुए कहा कि – मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा.
How did shri krishna explain the meaning of Sachi Tirth yatra to the Pandavas?
भगवान ने पांडवों को आगे फिर कहा कि तुम्हें तीर्थ यात्रा पर जाना है तो अवश्य जाओ लेकिन युद्ध से जो तुम्हें पाप लगा है, तुम्हारे चित्त और मन में जो भी क्षोभ हुआ है वह तीर्थ यात्रा से दूर नहीं होगा. लेकिन इसके बाबजूद भी तुम यात्रा पर जाओ किन्तु तुम लोग मेरा एक काम करना, मेरा तुम्बा ( तुम्बा एक फल होता हैं जिसका स्वाद कड़वा होता है ) भी अपने साथ लेते जाओ और अपने साथ साथ जहां भी तीर्थ स्नान करोगें तो मेरे तुंबे को भी सभी तीर्थों में स्नान करवाना.
श्रीकृष्ण का आदेश को मानकर युधिष्ठिर ने तुंबे को अपने साथ ले लिया. इसके पश्चात पांचों पांडव द्रौपदी सहित तीर्थ यात्रा पर चल दिए. अपनी तीर्थ यात्रा के क्रम में वो सभी जिस जिस भी तीर्थ में स्नान करते वहां वहां भगवान श्रीकृष्ण के दिए तुंबे को भी स्नान करवाया. इस प्रकार पांडवों (Pandavas) ने अपनी तीर्थ यात्रा को पूरा करके वापस आ गए. भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे अपना दिया हुआ तुंबा मांगा और पूछा कि इसे भी तुम सभी ने तीर्थों में स्नान करवाया है न ? इस पर युधिष्ठिर ने हाँ में जवाब दिया.
भगवान ने तुंबे को पीसकर उसका चूर्ण बना दिया और इसी चूर्ण को प्रसाद के रूप में पांचों पांडवों को खाने को दिया.तुंबे का चूर्ण मुँह में रखते ही पांचों पांडवों ने उसे थूक दिया. तब भगवान ने उन सभी से इसका कारण पूछा ? इस प्रश्न पर पांडवों ने कहा प्रभु यह तो कड़वा हैं. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा सभी तीर्थों के स्नान करने के बाद भी इसका स्वाद जैसा की जैसा कड़वा ही रहा सभी तीर्थों का पवित्र जल भी इसके कड़वेपन का स्वाद नहीं बदल पाया. श्रीकृष्ण (Shree Krishna) ने आगे सभी पांडवों को समझाते हुआ कहा कि इस तुंबे को तुम सभी ने बाहर से ही स्नान करवाया तीर्थों का जल इसके भीतर नहीं गया इसलिए ये कड़वा ही रहा इसी प्रकार से तीर्थों में स्नान करने से तुम सभी का शरीर तो पवित्र हो गया किन्तु मन पवित्र नहीं हो पाया, चित्त के दोष तो सिर्फ आत्मरूपी तीर्थ में स्नान करने से ही दूर होते हैं इसलिए सच्चा तीर्थ तो आत्मतीर्थ ही है. तो इस तरह से समझाया श्रीकृष्ण ने पांडवों को सच्ची तीर्थ यात्रा (Sachi Tirth Yatra) का मतलब.
FAQ – सामान्य प्रश्न
भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को तीर्थ यात्रा जाते समय क्या दिया था ?
तुंबा
तुंबा क्या है ?
तुंबा एक फल है जिसका स्वाद कड़वा होता हैं
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