Gupt Navratri | सनातन धर्म में साल में चार नवरात्रि आती हैं जिसमें दो प्रत्यक्ष यानि प्रकट रूप से आते हैं इनमें ग्रहस्थ जीवन वाले दुर्गा माता की पूजा अर्चना किया करते हैं और दो गुप्त रूप से आते हैं इनमें साधु, सन्यासी, सिद्धि पाने वाले तांत्रिक साधना किया करते है.गुप्त नवरात्रि में देवी की दस महाविद्यायें की पूजा तंत्र शक्ति और सिद्धियों के लिए किया जाता हैं मान्यता है कि दस महाविद्या आदिशक्ति की अवतार स्वरूप मानी जाती हैं और विभिन्न दिशाओं की अधिष्ठात्री शक्तियां कहलाती हैं.
Gupt Navratri | आइए जानते हैं क्या है गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं का रहस्य :
गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधना के लिए मुख्य रूप से दस महाविद्याओं की पूजा सिद्धि को पाने के लिए गुप्त रूप से करते हैं और यह दस महाविद्याएं क्रमशः हैं काली मां,तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी माता, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, माँ धूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी माता और कमला देवी. इन दस महाविद्याओं में दो कुल होते है काली कुल और श्रीकुल. जिनमें काली मां, तारा देवी और भुवनेश्वरी माता काली कुल में आती हैं जबकि माता बगलामुखी, त्रिपुर सुंदरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, माँ धूमावती, मातंगी माता और कमला देवी श्रीकुल में आते हैं. भक्त अपनी शक्ति और भक्ति के अनुसार किसी एक कुल की साधना करके सिद्धियों को पाते हैं. मान्यता है कि इन दस महाविद्याओं में संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्तियों का स्त्रोत है और इसे ही शक्ति कहा जाता हैं और इस शक्ति के बिना देवों के देव महादेव भी शव के समान है इतना ही नहीं भगवान विष्णु को भी इन्हीं से शक्तियां मिलती हैं और विष्णुजी के दस अवतारों से इनका संबंध भी है जैसे कि –
काली (महाविद्या ) – कृष्ण अवतार
तारा ( महाविद्या ) – मत्स्य अवतार
त्रिपुर सुंदरी( महाविद्या) – परशुराम अवतार
भुवनेश्वरी ( महाविद्या) – वामन अवतार
त्रिपुर भैरवी ( महाविद्या) – बलराम अवतार
छिन्नमस्ता (महाविद्या )- नृसिंह अवतार
धूमावती (महाविद्या ) – वाराह अवतार
बगलामुखी( महाविद्या) – कूर्म अवतार
मातंगी (महाविद्या ) – राम अवतार
कमला (महाविद्या ) – भगवान बुद्ध अवतार
Gupt Navratri | आइए जानते है दस महाविद्याओं की उत्पत्ति कैसे हुआ :
देवी भागवत पुराण के अनुसार इन दस महाविद्याओं की उत्पत्ति का कारण भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी सती के बीच हुए विवाद से जुड़ा है. कथानुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उसने सभी देवता और ऋषि मुनियों को आमंत्रण किया किन्तु भगवान शिव और देवी सती को आमंत्रित नहीं किया लेकिन देवी सती अपने पिता के घर में हो रहे यज्ञ में जाना चाहती थी इसलिए वह पिता के इस यज्ञ में जाने के लिए महादेव से जिद करने लगी किन्तु भगवान शिव नही चाहते थे कि बिना निमंत्रण के सती वहां जाए जिससे कि उसे अपमानित होना पड़े इसलिए भगवान शिव ने सती की बातों को अनसुना कर दिया.
अपनी बातों का अनसुना होता देख देवी सती क्रोधित हो गई और उन्होंने स्वयं को एक भयानक महाकाली का अवतार ले लिया जिसे देखकर भगवान शिव भयभीत होकर भागने लगे पति को इस प्रकार डरा हुआ देखकर सती उन्हें रोकने लगी. भगवान शिव जिस जिस दिशा में भागते उस उस दिशा में माँ का एक अन्य विग्रह होकर उन्हें रोकता इस तरह से देवी सती ने दसों दिशाओं में दस रूप लिया देवी सती की इन्हीं दस रूपों को दस महाविद्या कहा जाता हैं. इसके पश्चात भगवान शिव ने देवI सती को यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी किन्तु यज्ञ में जाने पर वहां सती का अपने पिता दक्ष प्रजापति के साथ विवाद हुआ और दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव की निंदा कर दिया और अपने पति का अपमान देवी सती से बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने यज्ञ के कुंड में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी.
Gupt Navratri | आइए अब जानते हैं दस महाविद्याओं की कौन सी है दिशायें :
काली मां – उत्तर दिशा.
तारा देवी – उत्तर दिशा.
त्रिपुर सुंदरी – ईशान दिशा.
देवी भुवनेश्वरी – पश्चिम दिशा.
त्रिपुर भैरवी – दक्षिण दिशा.
माता छिन्नमस्ता – पूर्व दिशा.
धूमावती माता – पूर्व दिशा.
बगलामुखी माता – दक्षिण दिशा.
मातंगी माता – वायव्य दिशा.
कमला देवी – नैऋत्य दिशा.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
दस महाविद्याओं में कितने कुल माने जाते हैं ?
दो कुल ( काली कुल और श्रीकुल )
काली कुल में कितनी महाविद्यायें आती हैं ?
माँ काली, तारा देवी और माँ भुवनेश्वरी.
भगवान विष्णु के वामन अवतार किस महाविद्या से संबंध रहता है ?
भुवनेश्वरी माता.
बगलामुखी माँ की कौन सी दिशा मानी जाती हैं ?
दक्षिण दिशा.
छिन्नमस्ता माता किस कुल के माने जाते हैं ?
श्रीकुल
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.