Makar Sankranti | मकर संक्रांति हर साल पौष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है.ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करती हैं और इसी दिन से ही सूर्य उत्तरायण होते हैं और सनातन धर्म में सूर्य के उत्तरायण का विशेष महत्व होता है. मकर संक्रांति के पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता हैं क्योंकि खिचड़ी खाने का विशेष महत्त्व होता है.
Makar Sankranti | मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की ज्योतिष मान्यता को :
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति में जो खिचड़ी बनाई जाती हैं (Why is Khichdi eaten on the day of Makar Sankranti?) उसमें चावल, उड़द दाल, हल्दी, मटर और हरी सब्जियों का विशेष महत्व होता हैं और इन सब का संबंध किसी न किसी ग्रह से होता है. खिचड़ी में उपयोग होने वाले चावल का संबंध चंद्रमा से उड़द दाल का शनिदेव से हल्दी का बृहस्पति देव से और हरी सब्जियों का बुध देव से संबंध होता है तो वहीं जब खिचड़ी पकती है तो उसकी गर्माहट का संबंध मंगल और सूर्य देव से होता हैं इस तरह से लगभग सभी ग्रहों का संबंध खिचड़ी से है यही कारण है कि मकर संक्रांति के दिन बनने वाली खिचड़ी को बहुत खास माना गया है मान्यता है कि इस दिन खिचड़ी को खाने के अलावा किसी ब्राह्मण को दान भी अवश्य करें. उन्हें घर बुलाकर खिचड़ी को खाने देने के बाद कच्चे चावल, दाल, हल्दी नमक और हरी सब्जियों का दान भी जरूर करें कहा जाता हैं कि खिचड़ी खाने से आरोग्य में वृद्धि होती हैं.
Makar Sankranti | मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने के पीछे की पौराणिक कथा को :
मकर संक्रांति पर्व पर खिचड़ी बनाने ( Makar Sankranti ke din Khichdi) और खिचड़ी खाने व दान करने के पीछे बाबा गोरखनाथ की एक प्रसिद्ध कहानी है. कहा जाता हैं कि खिलजी ने जब आक्रमण किया था तो उस समय चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था और युद्ध के कारण से बाबा गोरखनाथ के योगी खाना नहीं बना पा रहे थे और लगातार भूखे रहने के कारण से वो कमजोर होते जा रहे थे. योगियों की बिगड़ती हालत को देखकर बाबा ने अपने योगियों को चावल, दाल और सब्जियों को मिलाकर पकाने की सलाह दिया. बाबा गोरखनाथ की यह सलाह योगियों के बहुत काम आई. दाल चावल और सब्जियों को एक साथ मिलाकर पकाने से यह बहुत ही कम समय में पक जाता था और इसे सेवन करने से योगियों को ऊर्जा भी मिलती थी. बाबा गोरखनाथ ने इस दाल चावल और सब्जियों से बने भोजन को खिचड़ी नाम दिया. खिलजी के साथ युद्ध खत्म होते ही बाबा गोरखनाथ और उनके योगियों ने मकर संक्रांति के दिन उत्सव मनाया और उस दिन लोगों को खिचड़ी भी बांटी. तभी से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बांटने और दान करने की परंपरा शुरू हो गई.
Makar Sankranti | मकर संक्रांति के दिन बने खिचड़ी के महत्व :
मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव के साथ साथ अपने आराध्य देव को भी खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए क्योंकि इससे सूर्य देव प्रसन्न होने के साथ ही सभी ग्रह भी शांत होते हैं मान्यता है कि के खिचड़ी को आयुर्वेद में सुंदर और सुपाच्य भोजन की संज्ञा दिया गया है. शास्त्रों में चावल को चंद्रमा के रूप में माना जाता हैं और चावल चंद्रमा का प्रतीक होने के साथ काली उड़द दाल को शनिदेव, हल्दी को बृहस्पति, नमक शुक्र ग्रह का प्रतीक होती है तो हरी सब्जियां बुध से संबंध रखती हैं और खिचड़ी की गर्मी मनुष्य को मंगल और सूर्य को जोड़ती है इस तरह से खिचड़ी को खाने से सारे मुख्य ग्रह मजबूत होते हैं कहा जाता हैं कि मकर संक्रांति के दिननए अन्न की खिचड़ी खाने से पूरा साल शरीर आरोग्य बना रहता है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
मकर संक्रांति पर्व पर किस का भोग सूर्य देव को लगाना चाहिए ?
खिचड़ी.
खिचड़ी में उपयोग होने वाली दाल का संबंध किस से होता हैं ?
शनिदेव
मकर संक्रांति में खिचड़ी बनाने की परंपरा किसने शुरू किया था?
बाबा गोरखनाथ.
नमक किस ग्रह से संबंध रखता है ?
शुक्र ग्रह.
मकर संक्रांति सूर्य किस राशि से निकलकर किस राशि में प्रवेश करता है ?
धनु राशि से मकर राशि में.
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