Varuthini Ekadashi Vrat Katha | हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी व्रत को रखा जाता हैं. धार्मिक मान्यता है की एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है और उसके साथ ही मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. एकादशी के दिन व्रत रखने और विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करने से जातक के सभी कष्टों का निवारण होने के साथ ही भगवान की कृपा हमेशा उसके ऊपर बनी रहती है. कहा जाता है की वरुथिनी एकादशी के महत्व के बारे में स्वयं श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था इसके साथ ही यह भी कहा था कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखकर निर्मित पूजा करता है और एकादशी व्रत का पाठ करता है तो उसके सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं. पूजा के दिन व्रत कथा को अवश्य पढ़नी चाहिए जिससे की व्रत का पूरा पुण्य प्राप्त हो सके अगर कथा पढ़ने में असमर्थ है तो किसी के द्वारा कथा अवश्य सुन ले.
Varuthini Ekadashi Vrat Katha | वरुथिनी एकादशी व्रत कथा :
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचे और उनको बोले – हे भगवन ! मैं आपको प्रणाम करता हूं वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है और उसकी कथा क्या है कृपा करके आप मुझसे विस्तार पूर्वक कहिए. युधिष्ठिर की बातों को सुनते हुए भगवान श्री कृष्णा बोल हे ! धर्मराज इस एकादशी का नाम वरुथिनी एकादशी है और यह एकादशी सौभाग्य को देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली और अंत में मोक्ष देने वाली है. इस पुण्यदायक एकादशी व्रत को मैं कहता हूं तुम ध्यानपूर्वक सुनो.
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नाम का एक राजा राज करता था जो बहुत ही धार्मिक विचारों के साथ दानशील और तपस्वी भी था वह हमेशा भगवान का ध्यान करते हुए पूजा में मग्न रहा करते थे. एक दिन राजा मांधाता जंगल में तपस्या कर रहे थे कि तभी ना जाने कहां से एक जंगली भालू आया और राजा के पैर को चबाने लगा किंतु राजा अपनी तपस्या में लीन रहा कुछ देर तक पैर को चबाने के बाद भालू राजा को घसीटते हुए पास के जंगल में ले गया. राजा बहुत ही घायल हो चुका था लेकिन तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की और उसकी करुण पुकार को सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से भालू को मारकर उनकी रक्षा किया.
भालू के मरने के बाद जब राजा ने अपने पैर को देखा तो वह काफी दुखी हो गया क्योंकि राजा के पैर को भालू पहले ही खा चुका था यह देखकर राजा मांधाता बहुत ही शोकाकुल हुआ उसे इस तरह दुखी देखकर भगवान श्री हरि विष्णु बोल – ‘ हे वत्स ! दुखी मत रहो, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था. अब तुम मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरुधिनी एकादशी का व्रत रखो और मेरे वराह अवतार की पूजा करो इस व्रत के प्रभाव से एक बार फिर पहले की तरह तुम हो जाओगे. भगवान श्री हरि विष्णु की आज्ञा को मानकर राजा मांधाता मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत को रखा इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही फिर से सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया साथ ही उनको हर तरह के दुखों से छुटकारा भी मिल गया.वरुथिनी एकादशी के प्रभाव से राजा मांधाता स्वर्ग को प्राप्त किया.
अर्थात जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित हो तो उसे वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान श्री हरिविष्णु का स्मरण करना चाहिए मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के पापों का नाश होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है इसके साथ ही शारीरिक पीड़ा से भी मुक्ति मिलती है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
पंचाग के अनुसार वरुथिनी एकादशी कब मनाई जाती हैं ?
वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को.
वरुथिनी एकादशी व्रत रखने से किस फल की प्राप्ति होती हैं ?
सभी पापों से मुक्ति मिलने के बाद मोक्ष की प्राप्त
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा को किसने किसको सुनाया था ?
भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को.
वराह अवतार की पूजा किस एकादशी में किया जाता हैं ?
वरुथिनी एकादशी में
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.