Pitru Paksh Ki Katha | हिंदू धर्म में पितृपक्ष का खास महत्व होता है मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से पितरों का कृपा और आशीर्वाद मिलता है. शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष सोलह (16) दिनों के होते हैं यानी कि यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक रहती हैं. माना जाता है कि इस पितृपक्ष के समय पितृ पृथ्वी लोक में आते हैं और संतान के द्वारा श्राद्धकर्म और पिंडदान आदि करने से उनको तृप्ति मिलती है और वह अपने संतानों को धन-धान्य और खुश रहने का आशीर्वाद देते हैं लेकिन पितृ यह कभी नहीं चाहते कि उनकी संताने उनको तृप्त करने के लिए बहुत कुछ करें बल्कि वे श्रद्धा भाव से किए गए श्राद्ध को खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं और आशीर्वाद देते हैं. इसी से जुड़ी है श्राद्ध पक्ष की यह पौराणिक कथा हैं कि कैसे श्रद्धा भाव से प्रसन्न होकर पितरों ने अपना आशीर्वाद अपनी संतान को दिया.
Pitru Paksh Ki Katha | श्राद्ध पक्ष की जोगे और भोगे दो भाई की पौराणिक कथा :
पितृ पक्ष की पौराणिक कथानुसार जोगे और भोगे दो भाई थे और वह दोनों अलग-अलग रहते थे जिसमें जोगे धनी था तो वहीं भोगे निर्धन लेकिन दोनों भाई में बहुत लगाव और प्रेम था. जोगे की पत्नी को अपने धन पर बहुत अभिमान था पर भोगे की पत्नी बड़ी ही सरल ह्रदय वाली थी. एक बार पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उनको पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे ने इसे बेकार का काम समझकर टालने की कोशिश करने लगा लेकिन उसकी पत्नी समझती थी कि अगर ऐसा नहीं करेंगे लोग बातें बनायेंगे इसके अलावा उसको अपने मायके वालों को अपने घर दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का सुअवसर मिलेगा तब उसने पति से कहा – ” शायद आप मेरी परेशानी के वजह से ऐसा बोल रहे हैं लेकिन इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी और हम दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी ” इसके बाद उसने अपने पति जोगे को अपने मायके न्योता देने के लिए भेज दिया.
पितृपक्ष के दिन जोगे की पत्नी के बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सुबह आकर काम में जुट गई और उसने रसोई तैयार की जिसमें उसने अनेक पकवान बने और सभी काम निपटाकर वह अपने घर आ गई क्योंकि उसे भी तो अपने पितरों का श्राद्ध तर्पण करना था. उसके जाने पर जोगे की पत्नी ने उसे रोका और ना ही वह खुद ही रुकी. दोपहर होने पर पितरों का धरती पर उतरना हुआ और जोगे – भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो उन्होंने देखा कि जोगे के ससुराल पक्ष भोजन कर रहें हैं तब वह निराश होकर भोगे के यहां गए लेकिन वहां पितरों के नाम केवल ‘अगियारी’ थी जिसकी राख को पितरों ने चाटी फिर भूखे की नदी के किनारे पर पहुँचे जहां सभी के पितर इकट्ठा होकर अपने अपने यहां के श्राद्धों की तारीफ किया तब जोगे और भोगे के पितरों ने अपनी आप बीती बताई. जोगे और भोगे ने विचार किया कि – अगर भोगे समर्थवान होता तो उन्हें भूखा नही रहना पड़ता किंतु भोगे के घर में तो खाने के लिए कुछ भी नहीं है. यह सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आई और वे अचानक गाने लगे – ” भोगे के घर धन हो जाए ! भोगे के घर धन हो जाए “.
शाम होने पर जब भोगे के बच्चों को खाने के लिए कुछ न मिला तो उन्होंने अपनी माँ से कहा – भूख लगी है और उसकी माँ ने बच्चों को टालने की नाराजगी से कहा ” जाओ ! आंगन में हौदी औंधी रखी है उसे जाकर खोलो और जो भी कुछ मिले उसे बांटकर खा लो “और जब बच्चे वहां गए तो देखा कि हौदी मोहरों से भरी हुई हैं तब वे दौड़कर अपनी माँ के पास जाकर सारी बातें को बताई. भोगे की पत्नी ने भी आंगन में आकर मोहरों से भरी हौदी देखी जिसे देखकर वह भी आश्चर्य रह गई.
इस तरह से भोगे भी धनवान हो गया किंतु धन पाकर भी स्वभाव से पहले जैसा ही था घमंड नही आया, जब दूसरे साल पितृ पक्ष आया तो भोगे की पत्नी ने श्राद्ध के दिन पितरों के लिए कई तरह के पकवान बनाएं. ब्राह्मणों को बुलाकर श्राद्ध कर्म कराया उनको भोजन करवाया और दक्षिणा भी दिया इसके अलावा इस दिन जोगे और उसकी पत्नी को भी भोजन कराया जिससे कि पितर बहुत ही प्रसन्न और तृप्त हुए.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) पितृ पक्ष कितने दिनों का होता है ?
सोलह (16) दिनों का.
2) हर साल पितृ पक्ष कब से कब तक रहता है ?
भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तक.
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