Aparajita Stotra in Hindi | हिंदू धर्म में अपराजिता स्त्रोत एक विशेष प्रार्थना है जिसे माँ भगवती दुर्गा की अपराजिता स्वरूप की आराधना के लिए किया जाता हैं. “अपराजिता” जिसे कोई पराजित नहीं कर सकता. अपराजिता स्त्रोत का उद्देश्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के साथ यह बाधाओं से भी मुक्ति दिलाता है मान्यता है कि अपराजिता स्त्रोत को पढ़ने या फिर सुनने से साधक को शक्ति मिलने के साथ उसे किसी भी तरह के भय, विपत्ति और नकारात्मक शक्तियों से मुक्त करता है. अपराजिता स्त्रोत में देवी के विभिन्न रूपों की स्तुति करके उनसे आशीर्वाद की कामना किया जाता हैं जिस को सुबह की पूजा के समय पढ़ना बहुत ही शुभ माना जाता है.
आइए पढ़ते हैं अपराजिता स्त्रोत हिंदी में और आप इसे PDF के रूप में डाउनलोड (Free PDF Download) भी कर सकते हैं और अपने मोबाइल या लैपटॉप में रख सकते हैं और नियमित तौर पर इसे पढ़ सकते हैं लिंक नीचे दिया हुआ है वहां से आप उसे जरूर डाउनलोड कर ले.
Aparajita Stotra in Hindi PDF Download | अपराजिता स्त्रोत

अपराजिता स्त्रोत (Aparajita Stotra in Hindi PDF Download) हिंदी PDF डाउनलोड करें, नीचे लिंक दिया हुआ है.
॥ अपराजिता स्त्रोत हिंदी अनुवाद ॥
ॐ अपराजिता देवी को नमस्कार ! इस वैष्णवी अपराजिता महाविद्या के वामदेव बृहस्पति, मार्कण्डेय ऋषि हैं, गायत्री उष्णिग अनुष्टुप बृहति छन्द, लक्ष्मी नरसिंह देवता, क्लीं बीजम, हुं शक्ति, स्कलकामना सिद्धि के लिए अपराजिता विद्या मंत्रपाठ विनियोग हैं.
नीलकमलदल के समान, श्यामल रंग वाली, भुजंगों के आभरण से युक्त, शुद्ध स्फटिक के समान उज्जवल तथा कोटि चंद्र के प्रकाश के समान मुख वाली, शंख – चक्र धारण करने वाली, बालचंद्र मस्तक पर धारण करने वाली, वैष्णवी अपराजिता देवी को नमस्कार करके महान तपस्वी मार्केंडेय ऋषि ने इस स्त्रोत का पाठ आरंभ किया.
मार्केंडेय ऋषि ने कहा – हे मुनियों ! सिद्धि देने वाली असिद्धिसाधिका वैष्णवी अपराजिता देवी के इस स्त्रोत का श्रवण करें ॥
ॐ नारायण भगवान को नमस्कार, वासुदेव भगवान को नमस्कार, अनंतभगवान को नमस्कार जो सहस्त्र सिर वाले क्षीरसागर में शयन करने वाले, शेषनाग के शैया में शयन करने वाले, गरुड़ वाहन वाले, अमोघ, अजन्मा, अजित तथा पीताम्बर धारण करने वाले हैं ॥
ॐ हे वासुदेव, संकर्षण प्रद्युम्न अनिरुद्ध, हयग्रीव, मत्स्य, कुर्म, वाराह, नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर, राम, बलराम परशुराम. हे ! वरदायक आप मेरे लिए वर प्रदायक हो आपको नमन है ॥
ॐ असुर, दैत्य, यक्ष, राक्षस, भूत – प्रेत, पिशाच, कुष्मांड, सिद्धियोगिनी, डाकिनी, शाकिनी, स्कंदग्रह, उपग्रह नक्षत्रग्रह तथा अन्य ग्रहों को मारो – मारो, पाचन करो – पाचन करो, मंथन करो – मंथन करो, विध्वंस करो – विध्वंस करो, तोड़ दो – तोड़ दो, चूर्ण करो – चूर्ण करो. शंख, चक्र, वज्र, शूल, गदा, मूसल तथा हल से भस्म करो ॥
ॐ हे सहस्त्रबाहु, हे सहस्त्रप्रहार आयुध वाले, जय, विजय, अमित, अजित, अपराजिता अप्रतिहत, सहस्त्रनेत्र जलाने वाले, प्रज्वलित करने वाले, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, बैकुंठ नारायण, पद्मनाभ, गोविंद, दामोदर, ह्रषिकेश, केशव, सभी असुरों को उत्सादन करने वाले, हे सभी भूत – प्राणियों को वश में करने वाले, हे सभी दुःस्वप्न को नाश करने वाले, सभी यंत्रों को भेदने वाले, सभी नागों को विमर्दन करने वाले, सर्वदेवों को महादेव, सभी बन्धनों को मोक्ष करने वाले, सभी अहितों को मर्दन करने वाले, सभी ज्वरों को नाश करने वाले, सभी ग्रहों का निवारण करने वाले, सभी पापों का प्रशमन करने वाले, हे जनार्दन आपको नमस्कार है.
ये भगवान विष्णु की विद्या सर्वकामना के देने वाली, सर्वसौभाग्य की जननी, सभी भय को नाश करने वाली है ॥
ये विष्णु की परम वल्लभा सिद्धों के द्वारा पठित हैं, इनके समान दुष्टों को नाश करने वाली कोई ओर विद्या नहीं है. ये वैष्णवी अपराजिता विद्या साक्षात सत्वगुण, समिन्वत , सदा पढ़ने योग्य तथा मार्ग प्रशस्ता हैं ॥
ॐ शुक्लवस्त्र धारण करने वाले, चंद्रवर्ण वाले, चार भुजा वाले, प्रसन्न मुख वाले भगवान का सर्व विध्नों का विनाश करने हेतु ध्यान करें. हे वत्स ! अब मैं मेरी अभया अपराजिता के विषय में कहूंगा , जो रजोगुणमयी कही गई हैं. ये सत्व वाली सभी मंत्रों वाली स्मृत, पूजित, जपित कर्मों में योजित, सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली है. इसको ध्यान पूर्वक सुनो ॥
जो इस अपराजिता परम वैष्णवी, अप्रतिहता पढ़ने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने से सिद्ध होने वाली, विद्या को सुने, पढ़े, स्मरण करें, धारण करें, कीर्तन करें, इससे अग्नि, वायु, वज्र, पत्थर, खड्ग, वृष्टि आदि का भय नही होता. समुंद्र भय, चौर भय, शत्रु भय, शाप भय भी नहीं होता.रात्रि में, अंधकार में, राजकुल से विद्वेष करने वालों से, विष देने वालों से, वशीकरण आदि टोटका करने वालों से, विद्वेशिओं से, उच्चाटन करने वालों से, वध – भय, बंधन का भय आदि समस्त भय से इसका पाठ करने वाले सुरक्षित हो जाते हैं, इन मंत्रों द्वारा कही गई, सिद्ध साधकों द्वारा पूजित यह अपराजिता शक्ति है ॥
ॐ आपको नमस्कार हैं ! भयरहित, पापरहित, परिमाण रहित, अमृत तत्व परिपूर्ण, अपरा, अपराजिता पढ़ने से सिद्ध होने वाली, जप करने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने मात्र से सिद्धि से देने वाली, नवासिवां स्थान वाली, एकांत प्रिय, निश्चेता, सुदृमा, सुगंधा, एक अन्न लेने वाली, उमा, ध्रुवा, अरुंधति, गायत्री, सावित्री, जातवेदा, मानस्तोका, सरस्वती, धरणी, धारण करने वाली, सौदामिनी, अदिती, दिती, विनता, गौरी, गांधारी, मातंगी, कृष्णा, यशोदा, सत्यवादिनी, ब्रह्मवादिनी, काली कपालिनी, कराल नेत्र वाली, भद्रा, निद्रा, सत्य की रक्षा करने वाली, जल में, स्थल में, अंतरिक्ष में, सर्वत्र सभी प्रकार के उपद्रवों से रक्षा करो स्वाहा ॥
जिस स्त्री का गर्भ नष्ट हो जाता है, गिर जाता हैं, बालक मर जाता है अथवा वह काक बंध्या भी हो तो इस विद्या को धारण करने से अर्थात जप करने से गर्भिणी जीववत्सा होगी इसमें कोई संशय नहीं हैं ॥
इस मंत्र को भोजपत्र में चंदन से लिखकर धारण करने से सौभाग्यवती स्त्रियां पुत्रवती हो जाती है इसमें कोई शंका नहीं है ॥
युद्ध में, राजकुल में, जुआ में, इस मंत्र के प्रभाव से नित्य जय हो जाती हैं, भयंकर युद्ध में भी विद्या अर्थ – शस्त्रों से रक्षा करती हैं ॥
गुल्क रोग, शूल रोग, आंख के रोग की व्यथा इससे शीघ्र नाश हो जाती हैं, ये विद्या शिरोवेदना, ज्वर आदि नाश करने वाली है. इस प्रकार की अभया ये अपराजिता विद्या कही गई हैं, इसके स्मरण मात्र से कहीं भी भय नहीं होता हैं ॥
सर्प भय, रोग भय, तरस्करों का भय, योद्धाओं का भय, राज भय, द्वेष करने वालों का भय और शत्रु भय नहीं होता हैं. यक्ष, राक्षस, बेताल, शाकिनी ग्रह, अग्नि, वायु, समुंद्र, विष आदि से भय नहीं होता. क्रिया से शत्रु द्वारा किये हुए वशीकरण हो, उच्चाटन स्तम्भ हो, विद्वेषण हो इन सब का लेशमात्र भी प्रभाव नही होता ॥
जहां माँ अपराजिता का पाठ हो, यहां तक की यदि यह मुख में कंठस्थ हो, लिखित रूप में साथ हो, चित्र अर्थात यन्त्र रूप में लिखा हो तो भी भय – बाधाएं कुछ नहीं कर पाते. यदि माँ अपराजिता के इस स्त्रोत को तथा चतुर्भुजा स्वरूप को साधक हृदय रूप में धारण करेगा तो वह बाहर भीतर सब प्रकार से भयरहित होकर शांत हो जाता हैं ॥
लाल पुष्प की माला धारण की हुई, कोमल कमलकान्ति के समान आभा वाली, पाश अंकुश तथा अभय मुद्राओं से समलङ्कृत सुन्दर स्वरूप वाली. साधकों को मन्त्र वर्ण रूप अमृत को देती हुई, माँ का ध्यान करें. इस विद्या से बढ़कर कोई वशीकरण सिद्धि देने वाली विद्या नहीं है ॥
न रक्षा करने वाली, न पवित्र, इनके समान कोई नहीं है, इस विषय में कोई चिन्तन करने की आवश्यकता नहीं है. प्रातः काल में साधकों माँ के कुमारी रूप की पूजन विधि, खाद्य सामग्री से अनेक प्रकार के आभरणों से करनी चाहिए. कुमारी देवी के प्रसन्न होने से मेरी (अपराजिता की) प्रीति बढ़ जाती हैं ॥
ॐ अब मैं उस महान बलशालिनी विद्या को कहूंगा, जो सभी दुष्ट का दमन करने वाली, सभी शत्रु का नाश करने वाली, दारिद्रय दुःख को नाश करने वाली, दुर्भाग्य का नाश करने वाली, भूत – प्रेत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस का नाश करने वाली है ॥
डाकिनी, शाकिनी, स्कन्द, कुष्मांड आदि का नाश करने वाली, महारौद्र रूपा, महाशक्ति शालिनी, तत्काल विश्वास देने वाली हैं. ये विद्या अत्यन्त गोपनीय तथा पार्वती पति भगवान भोलेनाथ की सर्वस्व हैं, इसलिए इसे गुप्त रखना चाहिए. ऐसी विद्या तुम्हें कहता हूँ ! सावधान होकर सुनों ॥
एक, दो, चार दिन या आधे महीने, एक महीने, दो महीने, तीन महीने, चार महीने, पांच महीने, छह महीने तक चलने वाला वात ज्वर, पित्त सम्बन्धी ज्वर अथवा कफ दोष, सन्निपत हो या मुहूर्त मात्र तक रहने वाला पित्त ज्वर, विष का ज्वर, विषम ज्वर, दो दिन वाला , तीन दिन वाला, एक दिन वाला अथवा अन्य कोई ज्वर हो वे सब अपराजिता के स्मरण मात्र से शीघ्र नष्ट हो जाते हैं ॥
ॐ ह्रीं हन हन काली शर शर, गौरी धम धम, हे विद्या स्वरूपा, हे आले ताले माले गंधे बंधे विद्या को पचा दो पचा दो, नाश करो नाश करो, पाप हरण करो पाप हरण करो, संहार करो संहार करो, दुःस्वप्न विनाश करने वाली, कमल पुष्प में स्थित, विनायक मात रजनी संध्या स्वरूपा, दुंदुभी नाद करने वाली, मानस वेग वाली, शंखिनी, चक्रिणी, वज्रिणी, शूलिनी, अपरमृत्य नाश करने वाली, विश्वेश्वरी, द्रविडी, द्राविडी, द्रविणी, द्राविणी, केशव दयिते पशुपति सहिते, दुंदुभी दमन करने वाली, दुर्मद दमन करने वाली, शबरी किराती मातङ्गी ॐ द्रं द्रं ज्र ज्र क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु॥
जो प्रत्यक्ष या परीक्ष में मुझसे जलते हैं, उन सबका दमन करो – दमन करो, मर्दन करो – मर्दन करो, तापित करो – तापित करो, छिपा दो – छिपा दो, गिरा दो – गिरा दो, शोषण करो – शोषण करो, उत्साहित करो – उत्साहित करो.हे ब्रह्माणी, हे वैष्णवी, हे मातेश्वरी, कौमारी, वाराही, हे नृसिंह सम्बन्धिनी, ऐन्द्री, चामुंडा, महालक्ष्मी, हे विनायक सम्बन्धिनी, हे उपेंद्र सम्बन्धिनी, हे अग्नि सम्बन्धिनी, हे चंडी, हे नैऋत्य सम्बन्धिनी, हे वायव्या, हे सौम्या, हे ईशान सम्बन्धिनी, हे प्रचण्डविद्या वाली, हे इन्द्र तथा उपेंद्र की भागिनी आप ऊपर तथा नीचे से सब प्रकार से रक्षा करें ॥
ॐ जया, विजया, शांति स्वस्ति, तुष्ठी – पुष्ठी बढाने वाली देवी आपको नमस्कार हैं. दुष्टकामनाओं को अंकुश में करने वाली, शुभकामना देने वाली, सभी कामनाओं को वरदान देने वाली, सब प्राणियों में मुझे प्रिय करो – प्रिय करो स्वाहा ॥
आकर्षण करने वाली, आवेशित करने वाली , ज्वाला माला वाली, रमणी, रमाने वाली, पृथ्वी स्वरूपा, धारण करने वाली, तप करने वाली, तपाने वाली, मदन रूपा, मद देने वाली, शोषण करने वाली, सम्मोहन करने वाली, नीलध्वज वाली, महानील स्वरूपा, महागौरी, महाश्रिया, महाचान्द्री, महासौरी, महामायुरी, आदित्य रश्मि, जान्हवी. यमघँटा किणी किणी ध्वनिवाली, चिंतामणि, सुगंध वाली, सुरभा, सुर, असुर, उत्पन्न करने वाली, सब प्रकार की कामनाएं पूर्ति करनी वाली, जैसा मेरा मन वांछित कार्य है (यहां स्त्रोत का पाठ करने वाले अपनी कामना का चिन्तन कर सकते हैं) वह सम्पन्न हो जाये स्वाहा ॥
ॐ स्वाहा । ॐ भू: स्वाहा । ॐ भुवः स्वाहा । ॐ स्व:। ॐ महः स्वाहा । ॐ जनः स्वाहा । ॐ तपः स्वाहा । ॐ सत्यम स्वाहा । ॐ भूभुर्वः स्व: स्वाहा ।
जो पाप जहां से आया है, वहीं लौट जाएं स्वाहा । ॐ यह महावैष्णवी अपराजिता महाविद्या अमोघ फलदायी हैं ॥
ये महाविद्या महाशक्तिशाली हैं अतः इसे अपराजिता अर्थात किसी भी प्रकार की अन्य विद्या से पराजित ना होने वाली कहा गया. इसको स्वयं विष्णु ने निर्मित किया है इसका सदा पाठ करने से सिद्धि प्राप्त होती हैं ॥
इस विद्या के समान तीनों लोकों में कोई रक्षा करने में समर्थ दूसरी विद्या नहीं है. ये तमोगुण स्वरूपा साक्षात रौद्रशक्ति मानी गई हैं ॥
इस विद्या के प्रभाव से यमराज भी डरकर चरणों में बैठ जाते हैं. इस विद्या की मूलाधार स्थापित करना चाहिए तथा रात्रि को स्मरण करना चाहिए ॥
नीले मेघ के समान चमकती बिजली जैसे केश वाली, चमकते सूर्य के समान तीन नेत्र वाली माँ मेरे प्रत्यक्ष विराजमान हैं ॥
शक्ति, त्रिशूल, शंख, पानपात्र को धारण की हुई, व्याघ्र चरम धारण की हुई,किंकिणियों से सुशोभित, मण्डप में विराजमान, गगनमंडल के भीतरी भाग में धावन करती हुई, पादुकाहित चरण वाली, भयंकर दांत तथा मुख वाली, कुण्डल युक्त सर्प के आभरणों से सुसज्जित, खुले मुख वाली, जिह्वा को बाहर निकाली हुई, टेड़ी भौहें वाली, अपने भक्त से शत्रुता करने वालों का रक्त पानपात्र से पीने वाली, क्रूर दृष्टि से देखने पर सात प्रकार के धातु शोषण करने वाली, बारम्बार त्रिशूल से शत्रु के जिह्वा को कीलित कर देने वाली, पाश से बांधकर उसे निकट लाने वाली , ऐसी महाशक्तिशाली माँ को आधी रात के समय में ध्यान करें. फिर रात के तीसरे प्रहर में जिस जिसका नाम लेकर जिस हेतु जप किया जाये उस – उस को वैसा स्वरूप बना देती हैं ये योगिनी माता ॥
ॐ बला महाबला असिद्धसाधनी स्वाहा इति. इस अमोघ सिद्ध श्रीवैष्णवी विद्या, श्रीमद अपराजिता को दुःस्वप्न, दुरारिष्ट, आपदा की अवस्था में अथवा किसी कार्य के आरंभ में ध्यान करें तो इससे विध्न बाधायें शांत हो जाएगी, सिद्धि प्राप्त होगी ॥
हे जगज्जननी माँ इस स्त्रोत पाठ में मेरे द्वारा यदि विसर्ग, अनुस्वार, अक्षर, पाठ छूट गया हो तो भी माँ आपसे क्षमा प्रार्थना करता हूँ कि मेरे पाठ का पूर्ण फल मिले, मेरे संकल्प की अवश्य सिद्धि हो अर्थात किसी प्रकार की उच्चारण की भूल को क्षमा करें ॥
हे माँ ! मैं आपके वास्तविक स्वर्ग को नहीं जानता आप कैसी हैं ये भी नहीं जानता, बस मुझे इतना पता है कि आपका रूप जैसा भी हो मैं उसी रूप को पूजरा हूँ. आपके सभी रूपों को नमस्कार हैं अर्थात हे अपराजिता माँ ! आपका स्वरूप अपरम्पार हैं, उसे जाना नहीं जा सकता, आपके विलक्षण स्वरूप को हमारा शत शत नमन हैं ॥
॥ श्री दुर्गापूर्ण अस्तु॥
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