Geeta Updesh | श्रीमद् भागवत गीता ग्रँथ हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रँथ हैं और यह ग्रँथ अठारह अध्याय में बंटा हुआ है. इन अठारह अध्याय में ज्ञान का वो संग्रह हैं जो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उस समय गीता का ज्ञान दिया था जब युद्धभूमि पर अपनों को देखकर अर्जुन का मन विचलित हो गया था. भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन के माध्यम से संसार को जीवन, धर्म, कर्म और मोक्ष को लेकर ऐसा ज्ञान दिया है जो कि आज भी जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शक का कार्य करती हैं क्योंकि गीता में उल्लेख उपदेश मनुष्यों को धर्म, कर्म, सिद्धान्त और भक्ति की राह को दिखाता है. कहा जाता हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के इन उपदेशों का पालन मनुष्य अपने जीवन में करने लगे तो सफलता के रास्ते अपने आप खुलते चले जाएंगे जीवन में कभी भी असफल नहीं होंगे.
गीता के उपदेश जिनका पालन करने से सफलता के मार्ग खुलते हैं :
1) स्वंय पर संयम रखना चाहिए :
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि – हे अर्जुन ! व्यक्ति को चाहिए कि वह संपूर्ण इंद्रियों को अपने वश में कर लें. जिस मनुष्य की इंद्रियां यानि कि जीभ, त्वचा, आंख, नाक और कान उसके वश में होती है तो उसकी बुद्धि भी स्थिर होती हैं क्योंकि मनुष्य इन सभी इंद्रियों के माध्यम से ही समस्त सांसारिक सुखों को भोगता है.
2) व्यवहार में मिठास रखना चाहिए :
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि श्रेष्ठ व्यक्ति को सदैव मधुर व्यवहार करना चाहिए अर्थात व्यक्ति अगर किसी ऊंचे पद पर आसीन हैं तो उसे अपने पद की गरिमा को ध्यान में रखकर सभी के साथ मधुरता से पेश आना चाहिए क्योंकि ऊंचे पद पर आसीन व्यक्ति एक सामान्य व्यक्ति के लिए एक आदर्श है जो ऊंचे पद पर आसीन व्यक्ति के व्यवहार को अपनाने की कोशिश करता है.
3) धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए :
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं – सुनो अर्जुन ! व्यक्ति को सदैव धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए अर्थात जो विधार्थी हैं तो उसका धर्म केवल शिक्षा प्राप्त करने को हैं तो वहीं अगर कोई सैनिक हैं तो उसका धर्म देश की रक्षा करना है. गीता के इस उपदेश के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण संसार को यह बताना चाहते हैं कि हर मनुष्य को धर्म के अनुसार की कर्म करना चाहिए.
4) अहंकार का त्याग करना चाहिए :
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश को अर्जुन को बताते हुए कहते हैं कि – हे अर्जुन ! मनुष्य के पतन का कारण केवल अहंकार ही होता है इसलिए मनुष्यों को अपने सभी कार्यों को अहंकार से रहित होकर करना चाहिए क्योंकि संसार में सब कुछ ईश्वर की इच्छा से ही होता हैं.
5) नरक के द्वार से दूर रहना चाहिए :
श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन से भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि – सुनो अर्जुन ! काम, क्रोध और लोभ तीन तरह के यह नरक के द्वार है और जो मनुष्य इसको अपनाता है उसका नाश निश्चय ही होता है इसलिए मनुष्य को सदैव काम, क्रोध और लोभ से स्वंय को दूर रखना चाहिए क्योंकि यह तीनों मनुष्य को बर्बाद कर देती है इसलिए समय रहते ही इस तीनों का त्याग कर देना चाहिए.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) हिंदू धर्म का प्रमुख ग्रँथ क्या है ?
श्रीमद्भगवद्गीता.
2) श्रीमद्भगवद्गीता में कुल कितने अध्याय हैं ?
अठारह (18) अध्याय.
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