Geeta Updesh | श्रीमद्भागवत गीता को हिंदुओं का दिव्य ग्रँथ कहा जाता है. श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण के उन उपदेशों का उल्लेख है जो उन्होंने महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को उस समय दिया था जब युद्ध क्षेत्र में अर्जुन अपनों को देखकर उनका मन विचलित हो गया था. श्रीमद्भागवत गीता (shrimad bhagvat geeta) में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बहुत ही प्रासंगिक उपदेश देने के साथ ही अर्जुन के कई सवालों का भी बहुत ही सरल शब्दों में जवाब भी दिया और कई सवालों में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मनुष्य पाप में क्यों फंस जाया करता है तब अर्जुन के इस सवाल का जवाब श्रीकृष्ण देते हैं कि आखिर किन परिस्थितियों के चलते मनुष्य पाप (sin) करने को विवश हो जाता हैं.
Geeta Updesh | भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मार्गदर्शन कैसे किया :
1) क्रोध से बुद्धि बंद हो जाय करती हैं :
क्रोध आने के कई सारी परिस्थितियां हुआ करती हैं. कभी बहुत तकलीफ या पीड़ा भी क्रोध का कारण बन जाया करती है किंतु मनुष्य क्रोध के वजह से कुछ भी सही सोच नहीं पाता क्योंकि कुछ देर के लिए उसकी बुद्धि बंद हो जाती हैं जिसके कारण वो सही दिशा में कुछ भी नहीं सोच पाता है जैसे कि धुआं बहुत अधिक होने पर अग्नि को कुछ देर तक ढक देती हैं और सही स्थिति का पता चल नहीं पाता, इसी तरह क्रोध भी धुंए के समान होती हैं जिसकी अधिकता होने पर कुछ चीजें आसपास मौजूद होने पर भी नजर नहीं आती हैं.
2) अति स्वार्थ की भावना पाप करने को मजबूर करती हैं :
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहते हैं कि – हे अर्जुन ! इस पृथ्वी लोक पर हर व्यक्ति अपनी भलाई के लिए कार्य किया करता है किंतु जब व्यक्ति का स्वार्थ बढ़ने लगता है तो वह अपने अलावा किसी के बारे में नहीं सोचता उसे केवल ओर अधिक पाने की इच्छा रहने लगती हैं.इस स्वार्थ की भावना में रहते हुए व्यक्ति यह नहीं सोच पाता है कि उसके स्वार्थ के वजह से किसी दूसरे को हानि हो सकती है या फिर दुःख ही उठाना पड़ सकता है उसकी दूसरे के प्रति संवेदना मर जाती हैं और उसको दूसरे के दुःख में भी सुख दिखने लगता है.
3) जलन (ईर्ष्या) बुरी भावना को जन्म देती हैं :
श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि व्यक्ति में जलन या ईर्ष्या की भावना भी नकारात्मक गुणों में से एक हैं क्योंकि व्यक्ति जब जलन की भावना में जीने लगता है तो बुद्धिमान, ज्ञानी और संस्कारी व्यक्ति को अपने से नीचे समझने लगता है. जलन रखने वाला मनुष्य में प्रतिभा की कमी होती हैं यही कारण है कि वह अपने सामने किसी भी प्रतिभावान मनुष्य को सहन नहीं कर पाता और खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए उस प्रतिभावान मनुष्य का बार – बार करने लगता है और उसे किसी भी तरह से के मूर्ख सिद्ध करने में लगे रहता है जैसे कि हे अर्जुन ! दुर्योधन ने अपनी जलन में आकर सदैव ही तुम पाँचों पांडवों को अपमानित किया.
4) मनुष्य वासना और मोह में अंधा हो जाता हैं :
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे अर्जुन ! वासना और मोह भी मनुष्य को पाप करने को मजबूर कर देती हैं. वासना का मतलब है कि किसी भी अन्य व्यक्ति को किसी वस्तु के समान उपभोग करने की इच्छा का होना.जैसे कि कोई बालक किसी खिलौने के लिए मचलता हैं और उसे जब तक खिलौना मिल न जाएं वो रोता ही रहता है, शांत नहीं होता उसी तरह वयस्क होने पर किसी दूसरे व्यक्ति को नैतिकता और संवेदनशील से परे जाकर उसे उपभोग करने की इच्छा भी व्यक्ति को पाप करने के लिए मजबूर कर देती हैं. मनुष्य किसी वस्तु या मनुष्य के प्रति मोह को बांधता हैं जिसको पाने के लिए वह अंधा तक हो जाता हैं.
5) अर्जुन ने पूछा – आखिर पाप से कैसे बचा जा सकता हैं ? :
इन सारे बातों को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण से अर्जुन ने सवाल पूछा कि हे मधुसूदन ! इन पापों से खुद को कैसे बचाया जा सकता है ? अर्जुन के किए सवाल का जवाब देते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि – हर एक व्यक्ति को सबसे पहले अपने अंदर सभी नकारात्मकताओं को मन से निकाल देना चाहिए. मनुष्य को आरंभ के साथ अपने अंत का भी ज्ञान होना बहुत आवश्यक हैं. इस पृथ्वी लोक पर हर मनुष्य की एक निश्चित आयु हैं,कोई भी अमर नहीं हैं इसलिए सभी को यह अवश्य सोचना चाहिए कि जिस वस्तु को पाने के लिए इतने पाप हम कर रहें है उनमें से कुछ भी हमारे साथ नहीं जाएगा. कभी भी मनुष्य को किसी भी वस्तु के लिए इतना लगाव नहीं रखना चाहिए और ना ही विरक्ति के भाव को ख़ुद पर हावी होने देना चाहिए.सही गलत की पहचान होना और बुद्धि विवेक को सदैव बनाएं रखने से खुद को पाप करने से रोक सकते हैं और यही पाप करने से बचने का अंतिम उपाय है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) गीता का उपदेश किसने किसको दिया है?
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को.
2) भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश कहां दिया है ?
कुरुक्षेत्र युद्ध क्षेत्र में.
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