Igas| उत्तराखंड अपनी पारंपरिक संस्कृति, परंपराओं और विरासत में ऐसे कई लोकपर्व हैं जिसका अपना एक विशेष महत्व होता है और उत्तराखंड देवभूमि के लोकपर्व पूरी तरह से लोक परंपराओं, संस्कृति व खान – पान पर आधारित होती है. उत्तराखंड के लोकपर्वों में सबसे खास लोकपर्व में एक पर्व है इगास जो कि दीवाली के ग्यारहवें दिन बाद मनाई जाती और इसे स्थानीय भाषा में इगास बग्वाल कहते हैं. इस पर्व को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं इसके साथ इस पर्व की सबसे खासियत हैं कि इसमें दीयों और पटाखों के स्थान पर भैला खेला जाता हैं.
Igas, a folk festival of Uttarakhand | उत्तराखंड का अनोखा लोकपर्व इगास :
1) कब मनाई जाती है इगास पर्व :
उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकपर्व इगास दीवाली के ग्यारहवें दिन यानि कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है.इगास पर्व को उत्तराखंड के दूसरे क्षेत्र में इगास बग्वाल कहा जाता हैं तो वहीं कुमाऊँ में इस पर्व को बूढ़ी दीपावली के रूप में मनाई जाती हैं.
2) इगास पर्व को मनाने के पीछे मान्यताएं को : –
पौराणिक कथानुसार कार्तिक मास की अमावस्या को भगवान श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने पर अयोध्यावासी ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया लेकिन मान्यता है कि गढ़वाल क्षेत्र में भगवान श्रीराम की अयोध्या में पहुंचने की खबर दीवाली के ग्यारहवें दिन बाद मिली और अपनी खुशी और प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए गढ़वाल वासी वे दीवाली का उत्सव मनाया जिसे आज लोकपर्व इगास पर्व के रूप में धूमधाम से मनाया जाता हैं.
इस पर्व को मनाने के पीछे दूसरी मान्यता यह भी है कि दीवाली के समय गढ़वाल के वीर माधोसिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट (तिब्बत) का युद्ध जीतकर विजय को पाने के बाद दीवाली के ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाल की सेना वापस अपने घर पहुंची और फिर युद्ध में जीत हासिल करने और सैनिकों के घर पंहुचने की खुशी में दीवाली मनाई गई थी.
Igas | इगास पर्व में पारंपरिक भैलो क्यों खेला जाता है :
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाए जाने वाली उत्तराखंड के इस अनोखे लोकपर्व इगास की सबसे बड़ी खासियत यह है कि आतिशबाजी करने के स्थान पर रात्रि में भैलो खेलकर मनाया जाता हैं. भैलो तिल, भंगजीरे, हिसर और चीड़ की सूखी लकड़ी के छोटे – छोटे गट्ठर बनाकर एक खास तरह की रस्सी से बांधकर बनाया जाता हैं और फिर इगास पर्व के दिन पूजा अर्चना करने के बाद भैलो पर तिलक लगाया जाता है और इसके बाद गांव के ऊंचे स्थान पर पहुंचकर लोग भैलो को आग लगाते हैं और इसे खेलने वाली रस्सी को पड़कर इसे अपने सिर के ऊपर से घूमते हुए नित्य करते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से माता लक्ष्मी सभी के कष्टों को दूर करने के साथ सुख समृद्धि का भी आशीर्वाद देती है.भैलो खेलते समय कुछ लोकगीत के साथ व्यंग्य व मजाक करने की भी परंपरा है.
Igas | इगास पर्व में कई तरह के पकवान बनने के साथ होती है गोवंश की पूजा : –
इगास लोकपर्व में घरों में पूड़ी, स्वाली, पकौड़ी, भूड़ा आदि पकवान बनाएं जाते हैं और इसी दिन सुबह से लेकर शाम तक गोवंश की पूजा किया जाता हैं और इनके लिए भात, झंगोरा, बाड़ी व मंडुवे आदि से आहार बनाया जाता हैं. इस दिन सबसे पहले मवेशियों के पांव धोकर फिर धूप दीप जलाकर उनकी पूजा करके माथे पर हल्दी का टीका और सींगों पर सरसों तेल लगाकर माला पहनाकर उन मवेशियों को बड़े बर्तन या फिर परात में सजाकर अन्न ग्रास दिया जाता हैं जिसे गोग्रास कहा जाता हैं और जब मवेशी अपना ग्रास खा लेते हैं तो उनको चराने वाले या फिर गौवंश की सेवा करने वाले को पुरस्कार दिया जाता हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकपर्व इगास कब मनाया जाता हैं ?
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को
2) उत्तराखंड के कुमाऊँ में इस इगास को किस रूप में मनाया जाता हैं ?
बूढ़ी दीवाली.
3) इगास लोकपर्व की खासियत क्या है ?
भैलो को रात्रि में खेलना.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.