Geeta Gyan | गीता का ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण (Shree Krishna) ने अर्जुन को उस समय दिया था जब वह युद्ध क्षेत्र में अपनों को देखकर अर्जुन का मन विचलित हो गया था. गीता को ज्ञान का भंडार कहा जाता है और उसमें भगवान श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेश को अपनाकर जीवन को सरल बनाया जा सकता है इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण ने सांसारिक बातों से अलग स्वंतत्रता यानि कि आजादी के सही मायने को भी बताया है कि केवल बंधन से मुक्ति को ही आजादी कहा नही जा सकता जबकि आज़ादी का सही अर्थ इससे कहीं बढ़कर होती हैं.
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि जो मनुष्य अपने जीवन में काम, क्रोध, लालच, स्वार्थ और मोक्ष जैसी बुराइयों को अपने आप से दूर कर देता है तो सही मायने में वह मनुष्य आजाद हो जाता है.
Geeta Gyan | आइए जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण ने स्वतंत्रता, आजादी पर गीता में क्या कहा है :
1) आजादी का अनुपम रूप भय से मुक्ति :
गीता में भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) अर्जुन से कहते हैं कि भय के साए में जीवन बीता रहा व्यक्ति कभी भी साहसपूर्ण फैसला नहीं ले सकता है क्योंकि उसे हर समय भय लगता है. भय का एक रूप बंधन हैं इसलिए अपने विवेक से और भय से मुक्त होकर साहसपूर्ण फैसले लेते रहना चाहिए. भय से मुक्त होकर कार्य करने से ही लक्ष्य पूरा होता है लेकिन अगर किसी कारणवश लक्ष्य पूरा नही हो पाए तब भी व्यक्ति का व्यक्तित्व अवश्य ही निखरता हैं और उसे जीवन में कोई न कोई सबक अवश्य मिलता है.
2) अहंकार जैसे इन पापों से स्वतंत्र रहना :
धरती पर आने पर मनुष्य कभी न कभी ऐसी मोह माया में उलझ जाते है जब न चाहकर भी मनुष्य के अंदर अहंकार का जन्म हो जाया करती हैं कि किसी की कही हुई छोटी सी बात पर इतना क्रोधित हो जाता है और वह सोच नहीं पता कि उसकी बातों से सच कभी बदल नहीं सकता. भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मनुष्य को अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए क्रोध काम, लालच और कठोर वाणी जैसी बुराई से भी आजाद होना चाहिए.
3) बीती हुई बातों और स्मृतियों से स्वतंत्र होकर परिवर्तन को स्वीकार करना :
श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि – हे अर्जुन ! जीवन में अक्सर कुछ बातें ऐसी हो जाती है जो कि हमारे मन पर गहरी छाप छोड़ जाता है और व्यक्तिअपने मन में बीती व पुरानी बातों यादों की वजह से दुख में हमेशा जीवन बिताता रहता है. श्रीकृष्ण आगे कहते हैं परिवर्तन संसार का नियम है जिसे मनुष्य मृत्यु समझता है वास्तव में वही तो जीवन है सोचकर देखों तो एक क्षण में मनुष्य करोड़ों का स्वामी बन जाता है तो वही दूसरे क्षण मनुष्य दरिद्र भी हो जाता हैं इसलिए मनुष्य को पुरानी और बीती हुई बातों और यादों से स्वतंत्र होकर परिवर्तन को स्वीकार कर लेना चाहिए.
4) दूसरों पर निर्भर रहने से खुद को स्वतंत्र करना :
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता उपदेश देते हुए कहते हैं कि हर व्यक्ति दूसरों से सलाह और विचार विमर्श करता है किंतु अंत में उसे अपनी ही बुद्धि से कार्य करना चाहिए क्योंकि उसे अपने बारे में ऐसी बातें भी पता होती है जो वह किसी दूसरे से नहीं कह सकता हैं. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पूरा ज्ञान देने के बाद यह स्वतंत्रता दिया कि वह स्वयं अपने विवेक से निर्णय ले सकें और अपना कार्य करें. भगवान श्रीकृष्ण हर मनुष्य को आत्मनिर्भर रहकर दूसरों पर निर्भरता से स्वतंत्र रहने का संदेश देते हैं.
5) मनुष्य का सौभाग्य हैं नए कार्य को करने की स्वतंत्रता :
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहते हैं कि केवल बंधन से मुक्त होना ही असली स्वतंत्रता नहीं है जबकि जीवन में कर्म करने की स्वतंत्रता भी मनुष्य का एक सौभाग्य ही है और केवल यह मनुष्य को ही यह सौभाग्य मिला है कि वह नए कर्म को करने के लिए आजाद हैं जिससे कि वह अपने लक्ष्य को भेदने के लिए सदैव मेहनत करते रहे और यही कर्मठता उसको एक सर्वश्रेष्ठ मनुष्य बनाएगी.
6) समाज से जुड़ने के लिए स्वार्थ से स्वतंत्र होना :
भगवान श्रीकृष्ण गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन से कहते है कि – अर्जुन मनुष्य का केवल कार्य स्वयं के व्यक्तित्व कर्तव्यों को पूरा करना ही नहीं है बल्कि समाज के प्रति भी उनकी जिम्मेदारी होती हैं. जीवन में परोपकार और समाज कल्याण का कार्य करना भी मनुष्य को स्वार्थ से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है अगर समाज में कुछ गलत हो रहा हो या फिर किसी के साथ अन्याय हो रहा हो तो मनुष्य का कर्तव्य है कि मौन न रहकर उसे रोकने के लिए कार्य करें.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) गीता को क्या कहा जाता हैं ?
ज्ञान का भंडार.
2) गीता का ज्ञान किसने किसको दिया ?
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.