Indira Ekadashi Vrat Katha | आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी व्रत को रखा जाता हैं यह एकादशी पितृ पक्ष में आती है इसलिए यह एकादशी पितरों को समर्पित होता है. धार्मिक मान्यता है कि इंदिरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ व्रत को रखने से मोक्ष मिलने के अलावा पितृ दोष दूर होने के साथ ही पितरों को अधोगति से मुक्ति भी मिलती हैं. इंदिरा एकादशी के दिन व्रत रखने के साथ ही इस कथा का का पाठ अवश्य करना चाहिए क्योंकि कहा जाता है कि इंदिरा एकादशी के व्रत कथा का पाठ करने से हर पापों से मुक्ति मिलने के साथ शुभ फलों की प्राप्ति भी होती है इस कथा का वर्णन स्वयं भगवान श्री कृष्ण महाभारत के समय किया था इसलिए इंदिरा एकादशी के दिन इस व्रत कथा को जरूर पढ़ना चाहिए लेकिन अगर कथा पढ़ने में असमर्थ है तो किसी और के माध्यम से इस व्रत कथा का अवश्य श्रवण करें.
Indira Ekadashi Vrat Katha | इंदिरा एकादशी व्रत कथा :
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचे और उनको कहे कि हे भगवान ! आश्विन मास की कृष्ण एकादशी का नाम क्या है? और इसकी विधि व फल क्या है? कृपया करके मुझसे कहिए तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी इंदिरा एकादशी के नाम से जानी जाती हैं और यह एकादशी पापों का नष्ट करने वाली के साथ यह पितरों को अधोमुक्ति से मुक्ति देने वाली होती हैं, हे धर्मराज ! ध्यानपूर्वक इस कथा को श्रवण करों जिनके सुनने मात्र से ही वायपेय यज्ञ के समान फल मिलता हैं.
पौराणिक कथानुसार सतयुग काल के समय महिष्मति नामक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा न्यायपूर्वक राज्य करते हुए अपनी प्रज्ञा को धर्म के साथ शासन किया करता था. राजा इंद्रसेन पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न होने के साथ ही वे भगवान विष्णु का परम भक्त भी था. एक बार राजा सुखपूर्वक जब सभा में बैठा हुआ था तो तभी आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उनके सभा में आए जिनको देखकर राजा ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और विधि पूर्वक आसन और अर्ध्य दिया. आसान पर सुखपूर्वक बैठकर नारद मुनि ने राजा से कहा – हे राजन ! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो है ? क्योंकि तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन भगवान विष्णु की भक्ति में तो रहता है. देवर्षि नारद मुनि की ऐसी बातें को सुनकर राजा ने कहा – हे महर्षि ! आपका आशीर्वाद से मेरे राज्य में सभी सकुशल हैं और मेरे यहां यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं. कृपा करके आप अपने आने का कारण कहिए.
राजा इंद्रसेन की बातों को सुनकर देवर्षि नारद मुनि ने तब कहा – हे राजन ! आश्चर्य देने वाले आप मेरे वचनों को सुनो, मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया वहां श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की और इस यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण से देखा उन्होंने तुम्हें देने के लिए संदेशा दिया है जो मैं तुम्हें कहता हूं, उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विध्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूं इसलिए हे पुत्र! अगर तुम आश्विन मास कृष्ण इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है. नारद मुनि से यह सब सुनकर राजा इंद्रसेन ने कहा कि – हे महर्षि आप इस एकादशी व्रत की विधि मुझे कहिए तब देवर्षि नारद जी ने कहा – आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन प्रातः काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर फिर से दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करके श्रद्धा पूर्वक पितरों का श्राद्ध करें और एक बार फिर भोजन कर ले दूसरे दिन एकादशी के दिन प्रातः काल दातुन आदि करके स्नान करके व्रत के नियमों को निष्ठापूर्वक संकल्प लें कि ” मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग करके निराहार एकादशी व्रत करूंगा.
हे अच्युत ! हे पुण्डरीकाक्ष ! मैं आपकी शरण में आया हूं आप मेरी रक्षा कीजिए “इस तरह नियम पूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म करके ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दे इसके पश्चात पितरों के श्रद्धा से जो कुछ बच गया हो उसको सूंघकर गौ को दे दे और धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान की पूजा कर ले. रात्रि में भगवान के समीप जागरण करें और इसके बाद द्वादशी के दिन सुबह होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं और फिर भाई, बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित स्वंय मौन धारण करके भोजन करें. देवर्षि नारदजी ने आगे कहा – हे राजन! इस विधि से अगर तुम आलस्य रहित होकर इस इंदिरा एकादशी का व्रत करोगे तो अवश्य तुम्हारे पिता स्वर्ग लोक को जाएंगे इतना कह के नारदजी अंतर्ध्यान हो गए.
राजा इंद्रसेन ने नारदजी के कथनानुसार अपने बांधवों और दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और फिर उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णु लोक को चले गए. राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से धर्मपूर्वक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिहांसन पर बैठाया और स्वयं स्वर्गलोक को प्राप्त किया.
हे धर्मराज युधिष्ठिर ! इस इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा जिसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और सब तरह भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त करता है इसके अलावा इस एकादशी व्रत से पितृ दोष होने के साथ ही पितृ दोष से भी छुटकारा मिलता है और पितरों को मोक्ष की भी प्राप्ति होती हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) कौन सी एकादशी पितरों को समर्पित होती है ?
इंदिरा एकादशी.
2) पंचांग के अनुसार इंदिरा एकादशी कब मनाई जाती है ?
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को.
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