Jitiya Vrat Katha | सनातन धर्म में संतान की लंबी उम्र और उसकी मंगल कामना के लिए कई प्रकार के पर्व और व्रत का उल्लेख किया गया है जिनमें से एक हैं जितिया व्रत जिसे जीवित्पुत्रिका भी कहा है और यह व्रत हिन्दू पंचाग के अनुसार हर साल आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता हैं. इस व्रत को माताएं हर साल अपनी संतान की दीर्घायु और उसके सुख समृद्धि की कामना के लिए करती हैं मान्यता है कि जितिया व्रत करने से संतान की आयु लंबी होने के साथ ही उसके जीवन में कभी भी किसी तरह की विपदा नहीं आती हैं. जितिया व्रत के दिन व्रती मातायें निर्जला व्रत रखकर संध्या समय में स्नान करके पूजा की सभी सामग्री को लेकर पूजा करने के साथ ही व्रत कथा पढ़ती है या फिर सुनती है. माना गया है कि व्रत कथा के बिना जितिया पूजा और व्रत अधूरी होती हैं.
Jitiya Vrat Katha | जितिया व्रत की कथा- कैसे इसके फलस्वरूप 7 पुत्र हुए पुनः जीवित :
कथानुसार नर्मदा नदी के पास एक कंचनबटी नामक नगर हुआ करता था और वहां के राजा का नाम मलाइकेतु था. उसी नर्मदा नदी के पश्चिम दिशा की ओर बालुहटा नाम की मरुभूमि थी और उसी मरुभूमि में एक विशाल वृक्ष था जिसपर एक चील रहती थी व उसी वृक्ष के नीचे एक सियारिन भी रहा करती थी और वो दोनों पक्की सहेलियां भी थी एक दिन दोनो ने कुछ महिलाओं को जितिया व्रत करते देखा तो उनके मन में भी इच्छा जागी इस व्रत को करने को और फिर चील और सियारिन ने भी इस व्रत को करने का संकल्प लेकर भगवान जीमूतवाहन की पूजा और व्रत करने का प्रण ले लिया.
जिस दिन दोनों ने व्रत को रखा था ठीक उसी दिन नगर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हुई थी और उसका दाह संस्कार उसी मरुस्थल में हुआ. सियारिन मुर्दा को देखा तो उसे भूख लगने लगी और वह स्वयं को रोक नहीं सकी जिसके कारण से उसका व्रत टूट गया किन्तु चील ने खुद पर संयम रखा और पूरी श्रद्धा और नियम के साथ अपना व्रत पूरा करके अगले दिन व्रत का पालन भी किया.
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यह दोनों सहेलियों ने अगला जन्म एक ब्राह्मण परिवार में भास्कर नामक की पुत्रियों के रूप में लिया जहां बड़ी बहन चील तो छोटी बहन सियारिन बनी बड़ी बहन का नाम शीलवती रखा गया तो छोटी बहन का नाम कपूरावती रखा गया और बड़ी होने पर दोनों का विवाह हुआ बड़ी बहन का विवाह बुद्धिसेन के साथ हुआ तो वही छोटी बहन की शादी उस नगर के राजा मलाईकेतु के साथ हुआ और इस तरह छोटी बहन कपूरावती कंचनवटी नगर की रानी बन गई.
बड़ी बहन शीलावती हर साल अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत करती और जीमूतवाहन भगवान की विधि विधान से पूजा किया करती जिसके फलस्वरूप भगवान जीमूतवाहन की कृपा और आशीर्वाद से उसको सात पुत्रों की प्राप्ति हुई किन्तु कपूरवती के बच्चे जन्म लेते ही मृत्यु को प्राप्त होते. कुछ सालों बाद शीलावती के सभी सातों पुत्र बड़े होकर राजा के दरबार में कार्य करने लगे जिसे देखकर कपूरावती के मन में ईर्ष्या और जलन की भावना पैदा होने लगी और इसी ईर्ष्या के कारण कपूरावती ने राजा से कहलाकर शीलावती के सातों पुत्रों के सर कटवा दिए और फिर उन कटे सातों सिरों को बर्तन में डालकर ढक दिया और अपनी बड़ी बहन शीलावती के पास भिजवा दिया.
जब यह सब जीमूतवाहन भगवान ने देखा तो उन्होंने मिट्टी की सहायता से शीलावती के सातों पुत्रों के सिर को बनाकर फिर सभी सिरों को धड़ से जोड़कर उस पर अमृत छिड़क दिया जिसके कारण वे सातों भाई पुनः जीवित हो गए और घर को लौट आए. रानी ने जो कटे हुए सिर भिजवाए थे वह सब फूल बन गए इधर कपूरवती समाचार पाने को बहुत व्याकुल थी लेकिन जब उसे अपनी बहन के बच्चे का जिंदा होने का समाचार मिला तो वह तुरंत ही अपनी बहन के घर गई जहाँ पर उसने सच में सबको देखकर आश्चर्य में पड़ गई व बेहोश हो गई और जब कपुरावती होश में आई तो उसने अपनी बड़ी बहन शीलावती को सारी बातें बताई और अपनी गलती का पछतावा करते हुए उससे क्षमा भी मांगी.
बड़ी बहन को भगवान जीमूतवाहन की कृपा से पूर्व जन्म की सारी बात याद आ गई और उसने अपनी छोटी बहन कपुरावती को उसी वृक्ष के नीचे लाकर पूर्व जन्म की सारी बातें सुनाई जिसे सुनकर कपुरावती बेहोश हो गई और फिर मर गई. जब राजा को इस बात की सूचना मिली तो राजा ने उसी स्थान पर वृक्ष के नीचे कपुरावती का दाह संस्कार कर दिया.
इस जितिया व्रत कथा को जितिया व्रत के दिन पढ़े और दूसरों को भी सुनाएं ताकि जितिया व्रत का पूरा फल मिलें.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
जितिया व्रत कब किया जाता हैं ?
अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को
चील और सियारिन दोनों कौन थी ?
दोनों पक्की सहेली थी
चील और सियारिन अगले जन्म में क्या बनी ?
दोनों संगी बहने बनी
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