Jitiya Vrat Katha | दो बहने, सुखिया-दुखिया की कहानी, जीवित्पुत्रिका व्रत में ज़रूर पढ़े इस व्रत कथा को जिसके सुने और पढ़े बिना अधूरी है जितिया व्रत.

Jitiya Vrat katha

Jitiya Vrat Katha | जीवित्पुत्रिका व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं इस व्रत के बारे में मान्यता है कि इस व्रत से संतान के ऊपर से संकट टल जाती हैं ये महापर्व आश्विन मास के कृष्णपक्ष की सप्तमी से शुरू होती हैं जिसमें अष्टमी तिथि को माताएं व्रत रखती हैं और नवमी तिथि लगने पर पारण करती हैं. इस व्रत के दौरान कथाएं सुनी जाता हैं जिसमें कई सारी महिलाएं एक स्थान पर इकट्ठा होती हैं और उसमें से कोई एक महिला कथा कहती हैं बाकी सभी सुना करती हैं.

Jitiya Vrat Katha | दो बहने, सुखिया-दुखिया की कहानी

जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी कई सारी कथाएं प्रचलित हैं जिसमें से दो बहनें सुखिया और दुखिया की है (Story of two sisters, Sukhiya-Dukhiya) जिसे ज़रूर सुनना चाहिए. कथानुसार दो बहनें थी एक का नाम सुखिया और दूसरी का नाम दुखिया था. दोनों के नाम की तरह ही इन दोनों का भाग्य भी ऐसा ही था सुखिया अमीर थी और हमेशा सुखी रहा करती थी और दुखिया नाम के मुताबिक गरीब थी और बहुत दुखी रहती थी पर दोनों बहनें एक ही गांव में रहती थी सुखिया के घर ही दुखिया काम किया करती, साफ सफाई करती खाना बनाया करती थी और जो खाना बच जाया करता वहीं खाना सुखिया दुखिया को दे दिया करती इसी तरह से दुखिया का घर चलता था.

समय बीतता गया दोनों बहनें को दो दो पुत्र थे यानि कि सुखिया को 2 पुत्र और दुखिया को 2 पुत्र थे. जब जितिया का व्रत आया तो हमेशा की तरह दोनों बहनें जितिया व्रत रखा दुखिया सुखिया के घर में काम किया करती व्रत के दिन दुखिया ने सुखिया के घर जो चावल फटका (चावल को साफ करना) उससे जो खुर्दी निकला उसे अपने पास रखा और साफ चावल सुखिया को दे दिया फिर उसने साग को चुनी (पतियों को डंठल से अलग करना) यहां भी बढ़िया वाला साग सुखिया के लिए रख दिया और जो बची हुई डंठल था उसे अपने लिए रख लिया और अब दुखिया ने सुखिया के घर खाना बनाकर अपने घर चावल की खुर्दी और साग की डंठल को लेकर आकर उसी चावल की खुर्दी और साग की डंठल से खाना बनाकर बच्चों को खिलाई और खुद भी खाया इसके बाद दुखिया सोने के लिए चली गई.

आधी रात में एक बूढ़ी औरत उसके घर का दरवाजा खट खटाती हैं तो दुखिया ने पूछा हैं आप कौन है? तब उस बूढ़ी औरत ने बोला – बेटा हम है. दुखिया ने उठकर दरवाजा खोला और कहा – माँ ! आपको क्या चाहिए? आप इतनी रात यहां किस लिए आईं हैं? तब बुढ़िया ने कहा

“बेटा, मुझे बहुत भूख लगी हैं ! कुछ खाने को दे दो “.

दुखिया उस बूढ़ी औरत को घर के अंदर ले आती हैं और कहती हैं – हम लोग बहुत ही गरीब हैं आज मैनें खुर्दी का चावल और साग की डंठल को बनाया है क्या आप उसे खाएंगी?

तो बुढ़िया ने कहा – “हाँ, क्यों ना खायेंगे मुझे बहुत भूख लगी हैं मैं वहीं खा लूंगी”.

दुखिया अंदर जाकर खुर्दी का चावल और साग का डंठल लाकर उस बूढ़ी औरत को खाने को दे देती हैं. बूढ़ी औरत खाना खाने के बाद कहती  “कि मुझे अच्छे से कुछ दिखाई नहीं देता ऐसे में इतनी रात के अंधेरे में अपने घर मैं कैसे जाऊँगी “.

तो दुखिया ने कहा – ” कोई बात नहीं माँ, आप यहीं पर सो जाओ सुबह होने पर अपने घर चली जाना”. तब बूढ़ी औरत रात में दुखिया के घर में ही सो जाती हैं.

बूढ़ी औरत थोड़े देर के बाद उठकर बोलती है- “बेटी मुझे दीर्घशंका (पैखाना) लगी है, कहां करू इस पर दुखिया कहती है कि मेरे घर में शौचालय (बाथरूम) नहीं है इसलिए आप उधर कोने में कर लो तो वो बूढ़ी औरत पूछती है कि बेटी भड़ भड़ करू या छर छर करू चुकी दुखिया नींद में थी तो उसने नींद में ही कहा माँ ! भड़ भड़ कर दो मैं सुबह साफ कर दूंगी. इसके थोड़े देर बूढ़ी औरत कहती हैं बेटी मैं अपने हाथ कहां साफ करू इस पर दुखिया कहती हैं कि आप मेरे सर पर अपने हाथ को साफ कर लीजिए.

सुबह होने पर दुखिया जब उठती हैं तो उसे यह सब सपने के जैसा लगता है और सोचती हैं कि सोते समय मुझे कोई सपना आया होगा इतना ही सोचकर वह नदी में नहाने के लिए चली जाती हैं और वह जब नदी में बाल धोकर नहाती हैं तो उसके बालों से होता हुआ जो पानी बहता है वह सोने का पानी होता हैं आसपास की सारी महिलाएं यह देखकर आश्चर्य हो जाती हैं और दुखिया से कहती हैं क्या बात है कि तुम्हारे बालो से तो सोने का पानी गिर रहा है? उन सभी की बातें सुनने पर उसे रात की सारी बात याद आ जाती हैं और वह दौड़कर अपने घर की ओर भागती हैं यह सोचकर कि उसका घर बूढ़ी औरत की दीर्घशंका से गन्दा हुआ है पहले उसको साफ करना होगा लेकिन जब वह अपने घर जाती हैं तो देखती हैं कि घर के हर कोने में ढेर सारा सोना बिखरा पड़ा है यह सब देखकर दुखिया बहुत खुश हो जाती हैं और सोचती है कि ये सब जीत मान बाबा (जीमूतवाहन) की कृपा से हुआ है जो मेरे घर बूढ़ी माँ का रूप में मेरे घर आए और मुझे इतना सारा आशीर्वाद दिया अब दुखिया भी अमीर हो गई और सुखिया के घर जाकर काम करना बंद कर दिया.

दुखिया अपना व्रत पूरा करने के बाद अपने पुत्र से कहती है कि जाओ मौसी के घर से तराजू लेकर आओ मुझे ये सोना नापना हैं कि यह कितना है. बच्चा खुशी खुशी सुखिया मौसी के घर जाकर तराजू मांगता है इस पर सुखिया पूछती है कि तराजू पर क्या नापना हैं बच्चा भोला होने के कारण बता देता हैं कि मेरे घर में बहुत सोना हैं माँ को उसे ही नापना हैं. सुखिया बच्चे को बोलती हैं खाने को तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है और सोना नापोगे? मुझसे झूठ बोलते हो. तब बच्चा कहता है कि मैं झूठ नही बोल रहा हूँ. तब सुखिया सोचती हैं कि तराजू मांगा है तो कुछ तो ज़रूर नापेगी इसलिए वह तराजू के पीछे गोंद लगा देती हैं कि जो भी नापेगा वह इस में चिपक जाएगा. दुखिया ने तराजू पर सोना नापा तो कुछ सोने का टुकड़ा उस गोंद में चिपक जाता हैं और जब बच्चा तराजू लौटने आता है तो सुखिया तराजू को उलट पलट कर देखती हैं तो उसे तराजू के पीछे गोंद की जगह सोना लगा हुआ था ये देखकर सुखिया सोचने लगती हैं कि दुखिया के घर में कहीं से सोना आया हैं इसलिए वह कई दिनों से काम पर भी नहीं आ रहीं हैं .

सुखिया, दुखिया के घर जाकर देखती हैं कि वहां बहुत सारा सोना हैं और जब दुखिया के पास जाकर पूछती है कि तुम्हारे पास इतना सोना कहाँ से आया जिसे नापने के लिए तुमने तराजू माँगवा था. दुखिया का मन से सच्ची और भोली थी इसलिए वह उस रात वाली की सारी कहानी अपनी बहन सुखिया को बता दिया लेकिन सुखिया मन की लालची थी और उसे ईर्ष्या होने लगी कि दुखिया के पास हमसे ज्यादा धन आ गया अब तो अगले जितिया में मैं भी खुर्दी का चावल और साग की डंठल ही बनाउंगी. फिर अगले साल जितिया का व्रत दोनों बहनें ने रखा. सुखिया के पास सब तरह का सुख और धन भी था इसके बाबजूद वह जितिया के दिन चावल फटक कर साफ चावल फेंक दिया और खुर्दी अपने पास रख लिया और वैसे ही साग को तोड़कर फेंक दिया और डंठल अपने पास रखी और वहीं बना दिया. पूजा पाठ और खा पीकर सुखिया सोने चली गई.

आधी रात को सुखिया के घर में भी एक बूढ़ी औरत आई सुखिया तो उसका इंतजार कर ही रही थीं उसने तुरंत दरवाजा खोलकर उस बूढ़ी औरत को अपने घर के अंदर ले जाती हैं. बूढ़ी औरत ने बोला – ” मुझे तो बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दे दो इस पर सुखिया कहती हैं कि मैंने खुर्दी का चावल और डंठल का साग बनाया है तो वो बुढ़िया कहती हैं कोई बात नहीं वहीं खाना मैं खा लूंगी तो सुखिया ने वहीं खाना परोसकर खाने को दिया और सोने चली गई. थोड़े देर बाद उस बूढ़ी औरत ने बोला मै घर नहीं जा सकती क्योंकि रात में मुझे दिखाई नहीं देता हैं तो सुखिया ने कहा कोई बात नहीं आप यहीं सो जाओ.

बूढ़ी औरत थोड़े देर बाद फिर कहती हैं कि मुझे दीर्घशंका (पैखाना) लगी हैं कहां करू तो सुखिया ने बोला वहीं कोने में कर लो इसके थोड़े देर बाद बुढ़िया फिर बोलती हैं कि भड़ भड़ करू या फिर छर छर करू यहां सुखिया को याद नहीं आता कि दुखिया ने क्या बताया था तो सुखिया ने बोली माँ छर छर कर दीजिए. बुढ़िया ने फिर कहा कि बेटी मैं अपने हाथ कहां साफ करू इस पर सुखिया ने कहा कि मेरे सर में हाथ साफ कर लीजिए तब वो बूढ़ी औरत में सुखिया के सर पर अपना हाथ साफ कर लेती हैं. जब सुबह सुखिया उठती हैं तो उसका पूरे घर में गंदगी फैली हुई थी इसके अलावा उसके बाल में भी गंदगी लगी हुई थी. यह सब देखकर सुखिया बहुत दुखी हो जाती हैं और उसे अपनी बहन पर गुस्सा भी आता है.

सुखिया गुस्सा होकर अपनी बहन दुखिया को बुलाती हैं और कहती हैं कि तुमने मुझे झूठ कहा और मेरा पूरा घर गन्दा करवा दिया इस पर दुखिया तुमने क्या कहा था भड़ भड़ या छर छर तो सुखिया ने बताया कि उसने छर छर बोला था ये सुनकर दुखिया बोली – तुमने यहीं पर गलती कर दिया तुम्हारे पास तो सब कुछ था किसी भी चीज की कमी नहीं था फिर भी तुमने लालच किया. तुम्हारे घर स्वंय जीत मन बाबा (जीमूतवाहन ) भेष बदलकर आएं किन्तु फिर भी तुमने उन्हें अच्छा खाना नहीं परोसा. मेरे पास तो कुछ भी नहीं था इसलिए मैंने उन्हें खुर्दी का चावल और साग का डंठल खाने में परोसा था लेकिन तुमने अपने घर आएं भगवान का अपमान किया सब कुछ होने के वाबजूद तुमने उन्हें साग और भात खिलाया. तुम्हारे पास सब कुछ होने पर भी तुमको लालच नहीं करना चाहिए था इसलिए तुम्हारे साथ बुरा हुआ.


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FAQ – सामान्य प्रश्न

दुखिया और सुखिया कौन थी ?

दोनों बहनें थी.

दुखिया ने अपने घर आई बूढ़ी औरत को खाने में क्या दिया था ?

खुर्दी का चावल और साग का डंठल.

बूढ़ी औरत ने दुखिया को क्या दिया ?

 सोना

सुखिया के उस बूढ़ी औरत को क्या कहा था ?

छर छर

दुखिया और सुखिया के घर कौन भगवान बूढ़ी औरत के भेष में गए थे ?

जीत मन बाबा ( जीमूतवाहन) भगवान


अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.