Jwala Devi Temple | हिमाचल प्रदेश की पहचान संसार में देवभूमि के रूप में होती है और इसी देवभूमि में स्थित मां भगवती (Maa Bhagwati) के सिद्ध शक्तिपीठों की खासियत देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाला देवी मंदिर जो ज्वालामुखी या ज्वाला देवी को समर्पित है और यह मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक हैं मान्यता है कि यहां पर माँ सती की जीभ गिरी थी तो वहीं इस ज्वाला देवी मंदिर की खासियत है कि इस मंदिर में बिना तेल बाती की नौ ज्वालाएं जल रही है जबकि यहां कोई देवी मां की मूर्ति नहीं है यह किसी चमत्कार से कम नही है कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालों की पूजा अर्चना किया जाता हैं यहां तक जलती ज्योत को आग का दुश्मन पानी भी बुझा नहीं सका.
Jwala Devi Temple | ज्वाला देवी मंदिर से जुड़ी रहस्य :
1) ज्वाला देवी माँ की अद्भुत नौ (9) ज्वालाएं :
हिमाचल प्रदेश के इस ज्वालामुखी शक्तिपीठ में कालांतर से नौ प्राकृतिक ज्वालाएं बिना तेल और बाती के लगातार जल रही हैं और इन नौ ज्वाला में से एक ज्वाला बड़ी है जिसको माँ ज्वाला का स्वरुप माना जाता है तो वही बाकी आठ ज्वाला को माँ चंडी देवी, माँ महालक्ष्मी, माँ विंध्यवासिनी, माँ अन्नपूर्णा, माँ हिंगलाज माता, माँ अंबिका देवी, माँ सरस्वती और माँ अंजनी देवी का स्वरुप माना जाता हैं. कहा जाता हैं कि वैज्ञानिक कई सालों से इन प्राकृतिक ज्वालाओं का पता लगाने का कोशिश कर रहे है जिसके लिए नौ (9) km की धरती के भीतर खुदाई करवाया फिर भी वैज्ञानिकों को आज तक वह स्थान नहीं मिल पाया जहां से प्राकृतिक ज्वाला निकल रही हो.
2) ज्वालामुखी मंदिर की उत्पत्ति का रहस्य :
धार्मिक मान्यतानुसार जब राजा दक्ष प्रजापति ने ब्रह्मांड के सबसे बड़े यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था लेकिन माता सती जो कि बिना बुलाए जाने पर राजा दक्ष ने उसकी और भगवान शिव का बहुत अपमान किया. अपने पति का अपमान नही सहन करने पर सती माता हवन कुंड में गिर गई. भगवान शिव को पता लगने पर उन्होंने सती माता को कंधों पर उठाकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने लगे तब भगवान विष्णु संसार को भगवान शिव के इस तांडव से बचाने के लिए सती माता के अंग को सुदर्शन चक्र से काट दिया जिसके कारण उनके शरीर के टुकड़े 51 स्थान पर गिरे और इन्हीं 51 में से एक स्थान पर माता सती की जीभ गिरी जो चुकी सती माँ की जीभ ज्वालाजी पर गिरी और देवी माँ नौ छोटी लपटों के रूप में अवतरित (प्रकट) हुई जहां आज भी पुरानी चट्टान में दरारों के माध्यम से माँ ज्वाला की नीली ज्योति जलती रहती हैं और शक्तिपीठ के रूप में ज्वालामुखी मंदिर की स्थापना किया गया इसके साथ ही भगवान शिव यहां भैरव के रूप में स्थापित हुए थे और यह शक्तिपीठ हजारों सालों से लाखों लोगों की विश्वास का केंद्र बिंदु है ऐसी मान्यता है कि ज्वाला मां के दर्शन मात्र से ही भक्तों के दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं .
3) ज्वाला देवी मंदिर बनने की पीछे की पौराणिक कथा :
पौराणिक कथानुसार माँ ज्वाला देवी का एक परम भक्त गोरखनाथ था जोकि हमेशा माँ की भक्ति में लीन रहा करता था. एक बार गोरखनाथ को भूख लगने पर उसने माँ से कहा कि मां आप पानी गर्म करके रखिए तब तक मैं भिक्षा मांग कर आता हूं लेकिन गोरखनाथ जब भिक्षा लेने गया तो वापस लौट के नहीं आया और तब से यह कहा जाता है कि यह वही ज्वाला है जो मां ने जलाई थी जिसके कुछ ही दूरी पर बने कुंड के पानी से भाप निकलती हुई प्रतीत होती है इस कुंड को गोरखनाथ की डिब्बी भी कहा जाता है ऐसी धार्मिक मान्यता है कि गोरखनाथ कलयुग के अंत में मंदिर वापस लौट कर आएंगे तब तक की ज्वाला जलती रहेगी.
माँ ज्वाला देवी मंदिर को लेकर ध्यानु भक्त की कहानी भी प्रचलित है कहा जाता है कि ध्यानू भक्त ने अपनी भक्ति सिद्ध करने के लिए मां ज्वाला देवी को अपना सिर चढ़ा दिया था और माँ ने भी ध्यानु भक्त की भक्ति की लाज रखते हुए उसे जोड़ दिया इस तरह से मां के परम भक्त ध्यानू भक्त पर मां ज्वाला देवी की असीम अनुकंपा हुई. मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां ज्वाला देवी से जो कुछ भी मांगता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है मां के दरबार से कोई भी खाली नहीं जाता.
4) मुगल सम्राट अकबर के घमंड को माँ ज्वाला देवी ने चूर चूर किया :
कहा जाता है की माँ ज्वाला देवी मंदिर में जल रही नौ अखंड ज्वालाओं को बुझाने के लिए मुगल सम्राट अकबर ने बहुत कोशिश किया किंतु हर बार ज्वाला को बुझाने में नाकाम रहे यहां तक कि ज्वाला को बुझाने के लिए उस पर पानी डालने का आदेश दिया तो वहीं ज्वाला को बुझाने के लिए ज्वाला की लौ की ओर नहर घुमाने का भी आदेश दिया लेकिन इतनी सारी कोशिशें सफल नहीं हो पाई. कहा जाता हैं कि माँ ज्वाला देवी के चमत्कार को देखकर नतमस्तक होकर उनके दर पर सोने का छत्र चढ़ाया किंतु मुगल सम्राट अकबर को इस बात का घमंड हुआ कि उनके जैसे सोने का छत्र कोई भी चढ़ा सकता लेकिन देवी माँ ने उसके चढ़ाए सोने के छत्र को स्वीकार नहीं किया और यह सोने का छत्र किसी अन्य धातु में बदल गया इस तरह से माँ ज्वाला देवी के चमत्कार के आगे अपने को सर्वशक्तिमान कहने वाले सम्राट अकबर का घमंड चूर-चूर हुआ.
How to Reach Jwala Devi Temple | माँ ज्वाला देवी मंदिर कैसे पहुँचे :
माँ ज्वाला देवी मंदिर कांगड़ा जाने के लिए सड़क मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं क्योंकि मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. नई दिल्ली से कागड़ा जाने के लिए आप बसें लेकर सीधे ज्वालामुखी बस स्टैंड तक पहुंच सकते हैं. अगर वायु मार्ग से आना जा रहे हैं तो कांगड़ा घाटी से 14 km की दूरी पर सबसे निकटतम हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा हैं लेकिन अगर रेलमार्ग से कांगड़ा आना चाहते हैं तो सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जालंधर हैं जहां से आसानी से कैब मिल जायेंगे इसके अलावा टैक्सियां और बसें भी उपलब्ध होते हैं जिनके माध्यम से ज्वाला देवी मंदिर घाटी तक पहुंच सकते हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) मां ज्वाला देवी मंदिर कहां स्थित है ?
कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश).
2) ज्वाला देवी मंदिर में मां सती का कौन सा अंग गिरा था ?
जीभ.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.