Saptashrungi Temple | देश में देवी माँ के अलग – अलग मान्यता वाले कई मंदिर है, जिन पर भक्तों की अपार श्रद्धा और विश्वास है. इनमें से हर मंदिर की अपनी एक अलग कथा और महत्व होता हैं और ऐसे ही महाराष्ट्र का एक दुर्गा माँ का प्राचीन मंदिर हैं जो कई अद्भुत रहस्यों के लिए जाना जाता हैं मान्यता है कि यहां पर देवी भगवती दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था जिसका देवी भागवत पुराण में भी वर्णित किया गया है कहा जाता हैं कि यहां इस मंदिर में महिषासुर के कटे सिर की पूजा होती हैं.
जानते हैं महाराष्ट्र का प्राचीन सप्तश्रृंगी मंदिर कहां हैं :
देवी दुर्गा माँ का यह मंदिर महाराष्ट्र के नासिक के वणी गांव में है. यह मंदिर नासिक से करीब 65 किलोमीटर की दूरी पर 4800 फुट ऊंचे सप्तश्रृंग पर्वत पर विराजित हैं और इस सप्तश्रृंग पर्वत पर माँ भगवती का यह अद्भुत मंदिर होने के कारण इसे सप्तश्रृंगी देवी के नाम से जाना जाता हैं. धार्मिक मान्यतानुसार 51 शक्तिपीठों में से साढ़े तीन शक्तिपीठ महाराष्ट्र में स्थित है और आदि शक्ति स्वरूपा सप्तश्रृंगी देवी को अर्धशक्तिपीठ के रूप में पूजन किया जाता हैं. इस मंदिर की सबसे खासियत है कि माँ भगवती के दर्शन करने के लिए भक्तों को 472 सीढ़ियों चढ़कर पहाड़ पर पहुँचना पड़ता है.
जानते हैं कैसे पड़ा दुर्गा माँ का सप्तश्रृंगी नाम :
दुर्गा माँ का यह मंदिर छोटे – बड़े सात पर्वतों से घिरा हुआ है यही कारण है कि देवी माँ सप्तश्रृंगी यानि कि सात पर्वतों की देवी कहलाती हैं मान्यता है कि सात पर्वत अपनी सुंदरता से देवी माँ का श्रृंगार किया करती हैं इसलिए यह मंदिर सप्तश्रृंगी के नाम से प्रचलित हुआ और इस मंदिर की गुफा में तीन द्वार है शक्ति द्वार, सूर्य द्वार और चंद्रमा द्वार और इन तीन द्वार से देवी माँ की मूर्ति को देखा जा सकता हैं.
जानते हैं सप्तश्रृंगी माता से जुड़ी पौराणिक कथा :
सप्तश्रृंगी माता ब्रह्मस्वरूपिणी के नाम से जानी जाती हैं.मान्यता है कि ब्रह्म देवता के कमंडल से निकली गिरिजा महानदी देवी सप्तश्रृंगी का ही एक रूप है. सप्तश्रृंगी देवी को यहां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के त्रिगुण रूप में आराधना किया जाता हैं. देवी माँ के रूप से जुड़ी अन्य पौराणिक कथा है जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है कि राक्षस महिषासुर के विनाश के लिए सभी देवी – देवताओं ने माँ भगवती की आराधना किया जिसके फलस्वरूप माँ भगवती देवी सप्तश्रृंगी स्वरूप (अवतार) में प्रकट हुई और फिर इसी स्थान पर उन्होंने महिषासुर राक्षस से युद्ध करके उसका वध करने के पश्चात इसी स्थान पर देवी माँ आराम करने के लिए रहा करती थी.
यहां देवी के आठ नुकीले सात नुकीले रूप को देखा जा सकता है देवी माँ की यह मूर्ति स्वयंभू हैं और ऐसी दंतकथा हैं कि किसी भक्त के द्वारा मधुमक्खी का छत्ता तोड़ते समय उसे देवी माँ की मूर्ति दिखाई दिया था. पौराणिक कथानुसार भगवान राम और माता सीता ने दंडकारण्य में वनवास के दौरान देवी माँ के दर्शन किए थे इसके अलावा यह कथा ही प्रचलित है कि लक्ष्मण जब मेघनाथ के बाणों से मूर्छित हुए थे और हनुमान उनके लिए द्रोणागिरी पर्वत को उठाकर ले जा रहे थे कि पर्वत का एक हिस्सा नीचे गिर गया जो सप्तश्रृंगगढ़ कहलाया.
जानते हैं माँ भगवती सप्तश्रृंगी देवी के चहेरे के बदलने के रहस्य को :
सप्तश्रृंगी मंदिर में स्थित माँ भगवती के बारे में मान्यता है कि देवी माँ अपने चेहरे के भाव को समय – समय पर बदलती रहती हैं. चैत्र नवरात्रि में माँ भगवती जहां प्रसन्नचित दिखती है तो वहीं आश्विन नवरात्रि में बहुत ही गंभीर रूप में दिखती हैं. माना जाता है कि आश्विन नवरात्रि में माँ भगवती विशेष रूप से पापियों का संहार करने के लिए धरती पर अलग – अलग रूप को धारण करके निकलती हैं.
जानते हैं माँ सप्तश्रृंगी देवी के अठारह (18) भुजाओं के रहस्य को :
सप्तश्रृंगी मंदिर में स्थापित देवी माँ की आठ(8) फीट ऊंची मूर्ति के अठारह हाथ है जिनमें उन्होंने अलग – अलग अस्त्र व शस्त्र पकड़े हुए हैं. मान्यता है कि माता रानी की इन अठारह भुजाओं में देवी – देवताओं के शस्त्र हैं जो उनको आशीर्वाद के रूप में महिषासुर असुर का वध करने के लिए दिया गया था और इसमें शंकरजी का त्रिशूल, विष्णुजी का सुदर्शन चक्र, वरुण का शंख, अग्निदेव का दहकत्व, वायु का धनुष – बाण, इंद्र का वज्र और घँटा, यम का दंड, दक्ष प्रजापति की स्फटिक माला, ब्रह्मदेव का कमंडल, सूर्य की किरणें, काल स्वरूपी देवी की तलवार, क्षीरसागर का हार, कुंडल और कड़ा, विश्वकर्मा भगवान का तीक्ष्ण परशु एवं कवच, समुंद का कमल हार, हिमालय का सिंह वाहन और रत्न है.
जानते हैं सप्तश्रृंगी देवी मंदिर से जुड़ी मान्यताएं को :
सप्तश्रृंगी देवी मंदिर के बारे में मान्यता है कि इस मंदिर में देवी माँ की गोद भराई से संतान प्राप्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती है विशेषकर नवरात्रों के दिनों में देवी माँ की गोद भराई किया जाता हैं और गोद भराई के लिए नारियल, साड़ी, चुनरी, सिंदूर, फूल और मिठाई का उपयोग भक्त किया करते हैं माना जाता है कि सप्तश्रृंगी देवी माँ अपने अठारह (18) हाथों से अपने भक्तों को आशीर्वाद देती है तो वहीं इस मंदिर में महाराष्ट्र प्रान्त के प्रसिद्ध व्यजंन पूरन पोली का प्रसाद का भी वितरण किया जाता हैं.
जानते हैं महिषासुर के कटे सिर के रहस्य को :
सप्तश्रृंगी देवी के इस मंदिर में महिषासुर की पूजा होती हैं. मंदिर की सीढ़ियों के शुरू होते ही बायीं ओर महिषासुर नाम का एक छोटा मंदिर बना हुआ है जहां पर माता के भक्त जाते – जाते महिषासुर का दर्शन किया जा सकता हैं मान्यता है कि इसी स्थान पर माँ भगवती दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था इसलिए इस स्थान पर महिष (भैंसा) के पीतल से बने कटे हुए सिर की पूजा किया जाता हैं. कहा जाता हैं कि देवी माँ ने त्रिशूल से महिषासुर का वध किया था जिससे पहाड़ में एक बड़ा छेद बन गया था जिससे आज भी देखा जा सकता हैं.
जानते हैं सप्तश्रृंगी मंदिर कैसे पंहुचे :
अगर आप 472 सीढ़ियों को चढ़ने में समर्थ है तो आप सप्तश्रृंगी देवी मंदिर पहुँच कर माँ भगवती दुर्गा माता का दर्शन कर सकते हैं. सप्तश्रृंगी देवी मंदिर जाने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन नासिक हैं जहां से मंदिर की दूरी 60 km हैं लेकिन अगर आप वायुमार्ग से आना चाहते हैं तो आप मुंबई या पुणे हवाई अड्डे तक आना होगा और आपका यहां से टैक्सी या बस से मंदिर तक पहुँच सकते हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) सप्तश्रृंगी देवी का मंदिर किस राज्य में स्थित है ?
महाराष्ट्र
2) सप्तश्रृंगी मंदिर कितने पर्वतों से घिरा हुआ है ?
सात.
3) सप्तश्रृंगी देवी मंदिर में किस राक्षस के कटे हुए सिर की पूजा होती हैं ?
महिषासुर राक्षस का.
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