The Mystery of Ravana’s Birth | वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलत्स्य मुनि के पुत्र महर्षि विश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र था कहा जाता हैं कि रावण महाज्ञानी पंडित था जिसके अंदर सत्व, रज, और तम तीनों के गुण मौजूद थे लेकिन रावण में सत्व गुण की तुलना में तमोगुण अधिक था. धार्मिक कथा के अनुसार रावण का जन्म 3 श्राप के कारण हुआ था. जिसमें से एक श्राप सनकादिक बाल ब्राह्मणों ने दिया था इसी प्रकार कथा में अलग अलग जगह 2 (दो) श्राप को बताया गया है.
Ravana Janm Rahasy | जानते हैं रावण के जन्म का रहस्य और ब्राह्मण पुत्र होने के बाद भी उसमें कैसे आया राक्षसत्व वाले गुण :-
वाल्मीकि रामायण (Ramayana) की कथानुसार पौराणिक काल में 3 क्रूर दैत्य भाई थे माली, सुमाली व मलेवन और इस तीनों भाई ने ब्रह्मा की कठोर तपस्या करके उनको प्रसन्न कर दिया और प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन तीनों भाई को बलशाली होने का वरदान दिया और वरदान मिलते ही ये तीनो भाई स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और पाताललोक में देवताओं के साथ साथ ऋषि – मुनियों और मनुष्यों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया इन तीनो राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ जाने पर ऋषि – मुनि और देवतागण भगवान विष्णु के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई. भगवान विष्णु ने सभी को आश्वासन दिया कि मैं इन दुष्ट राक्षसों का विनाश अवश्य करूंगा.
जब यह बात माली, सुमाली और मलेवन के सुना तो वे अपनी सेना को लेकर इंद्रलोक पर हमला कर दिया तब भगवान विष्णु इंद्रलोक आकर राक्षसों का नरसंहार करने लगे और भगवान विष्णु रण क्षेत्र में आने के क्षण भर के बाद ही सेनापति माली सहित बहुत से राक्षस मारे गए और बचे हुए राक्षस लंका की तरफ भाग कर अपनी जान को बचाया उसके बाद शेष बचे हुए राक्षस सुमाली के प्रतिनिधित्व में लंका को छोड़कर पाताल में जा बसे और बहुत दिनों तक सुमाली और मलेवन अपने परिवार के साथ पाताल में ही छुपा रहा.एक दिन उन्होंने सोचा कि आखिर कब तक हम राक्षसों को देवताओं के डर और भय से यहां छुपकर रहना पड़ेगा? देवताओं पर विजय प्राप्त करने के लिए ऐसे में कौन सा उपाय किया जाय.
उसे कुछ क्षण के बाद कुबेर का ख्याल आया तभी उसके मन में यह विचार आया कि अगर वो अपनी पुत्री का विवाह ऋषि विश्रवा से कर दिया जाय तो उसे आसानी से कुबेर जैसा तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हो जाएगी यही सोचकर सुमाली अपनी पुत्री कैकसी के पास जाकर कहा – हे पुत्री! तुम विवाह के योग्य हो गई किन्तु मेरे भय से तुम्हारा हाथ मांगने मेरे पास कोई नहीं आता इसलिए मैं चाहता हूं कि राक्षस वंश के कल्याण के लिए तुम परम पराक्रमी महर्षि विश्रवा के पास जाकर उनसे विवाह करों ताकि तुम्हें पुत्र की प्राप्ति हो. कैकसी राक्षसी होने के बाद भी एक धर्म परायण स्त्री थी जिसके कारण उसने अपने पिता की इच्छा को पूरा करना अपना धर्म माना और विवाह के लिए स्वीकृति दे दिया.
इसके पश्चात महर्षि विश्रवा से मिलने कैकसी पाताल लोक से पृथ्वी लोक चल पड़ी लेकिन जब वो महर्षि विश्रवा के आश्रम पहुंची तो शाम हो चुकी थी. कैकसी आश्रम पहुँच कर सबसे पहले महर्षि विश्रवा का चरण वंदन किया और फिर मन की इच्छा को बतलाया इस पर महर्षि विश्रवा ने कहा – हे भद्रे ! मैं तुम्हारी इच्छा पूरा कर दूंगा किन्तु तुम मेरे पास कुबेला में आई हो जिससे मेरे पुत्र क्रूर कर्म करने वाले और उनकी सूरत भयानक राक्षसों जैसी होगी. महर्षि विश्रवा के इस वचन को सुनकर कैकसी उनको प्रणाम करके बोली – मैं आप जैसे ब्राह्मणवादी के काल मे ऐसे दुराचारी पुत्रों की उत्पत्ति नहीं चाहती इसलिए आप मेरे ऊपर कृपा कीजिए इस पर महर्षि ने कैकसी से कहा कि तुम्हारा तीसरा पुत्र मेरी ही समान धर्मात्मा होगा.
कैकसी ने महर्षि विश्रवा से विवाह करने के बाद पहले पुत्र रूप में वीभत्स राक्षस को जन्म दिया जिसके दस सिर थे शरीर का रंग काला और पहाड़ के समान आकार था जिसे महर्षि विश्रवा ने दशग्रीव रखा जो आगे रावण के नाम से तीनो लोकों में प्रसिद्ध हुआ उसके बाद कैकसी ने कुम्भकरण को जन्म दिया जिसकी तरह लम्बा चौड़ा कोई दूसरा प्राणी नही था इसके बाद बुरी सूरत की सुपर्णखा का जन्म हुआ और इन सबके बाद कैकसी के सबसे छोटे पुत्र विभीषण का जन्म हुआ जो अपने पिता महर्षि विश्रवा के समान धर्मात्मा हुए.
The Mystery of Ravana’s Birth | अब जान लेते हैं उन श्रापों को जो रावण जन्म का बड़ा कारण बना : –
यह है वो 3 (तीन) श्राप जो रावण जन्म का बड़ा कारण बना :
1) सनकादिक बाल ब्राह्मणों के श्राप से हुआ था रावण का जन्म –
माना जाता हैं कि पूर्व जन्म में रावण और उसका भाई कुम्भकरण भगवान विष्णु के द्वारपाल जय – विजय थे. एक बार बैकुंड जाने के लिए बाल ब्राह्मण प्रवेश द्वार पहुंचे जहां जय विजय पहले से ही मौजूद थे बाल ब्राह्मणों ने बैकुंड के भीतर जाने की इच्छा जाहिर किया जिसे जय विजय ने उन्हें जाने नही दिया और इसी से बाल ब्राह्मणों ने क्रोध में आकर दोंनो को मृत्यु लोक में जन्म लेने का श्राप दे दिया. लेकिन जय विजय ने इस श्राप का मार्ग जानना चाहा तो ब्राह्मणों ने भगवान विष्णु की शरण में जाने को कहा.
2) नारद मोह भी बना रावण का जन्म का कारण –
मान्यता के अनुसार एक बार नारद मुनि को अहंकार जो गया कि वे माया को जीत चुके हैं भगवान विष्णु को उनके अहंकार का ज्ञान था इसलिए उन्होंने माया से एक नगर बनाया और नारद मुनि माया के प्रभाव में आकर उस नगर में पहुँच कर वहां के राजा से मिले .राजा ने मुनि को अपनी कन्या का हाथ दिखाते हुए उसके विवाह योग्य वर के बारे में जानना चाहा. नारद मुनि ने जब उस कन्या को देखा तो उस पर मोहित हो गए और राजा से कहा कि कन्या का स्वयंवर रचायें योग्य वर मिल जायेगा यह कहकर नारदजी बैकुंड पहुंचे और अपने मन की बात भगवान विष्णु जी को बताकर कहा – प्रभु आपसे सुंदर कोई नही है मुझे हरिमुख यानि कि आप अपना रूप दे दीजिए इस पर भगवान ने दुबारा पूछा – क्या दे दूं और नारदजी वेग में आकर बोले – हरिमुख ! प्रभु हरिमुख और संस्कृति में हरी का एक अर्थ बंदर होता है.
भगवान विष्णु जो माया रच रहे थे तो उन्होंने नारद मुनि को बन्दर बना दिया और नारदजी बिना देखे यही रूप लेकर स्वयंवर में चले गए. विष्णुजी के कहने पर शिवजी ने अपने दो गणों को भी स्वयंवर में भेजा था. नारद मुनि स्वयंवर में उछल उछल कर अपनी गर्दन आगे कर रहें थे जिससे कि कन्या उन्हें देखें और वरमाला उनके गले में डाल दें उनकी ऐसी हरकत देखकर कन्या हंस पड़ी और शिवजी के गण जो भेष बदलकर पहुचे थे वे गणों ने उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया और कहने लगे – बंदर भी कन्या को देखकर स्वयंवर में आने लगे अपना उपहास उड़ते देख नारदजी ने दोनों को श्राप दिया कि तुमने मुझे बंदर कहा जाओ तुम दोनो को बंदर ही सबक सिखाएंगे.
कहा जाता है कि शिवजी के ये दोनों गण रावण और कुम्भकरण बने. इसके बाद नारद ने देखा कि कन्या जिसके गले में वरमाला डाला है वो साक्षात श्रीहरि है तब नारदजी ने उन्हें भी श्राप दिया कि जिस प्रकार से आपने मेरी होने वाली पत्नी को ले गए और मैं वियोग विलाप कर रहा हूँ एक दिन आपकी पत्नी का भी हरण होगा और आप भी विलाप में वन वन भटकोगे इसी तरह से राम और रावण का जन्म होना तय हुआ.
3) प्रतापभानु के कारण रावण बना राक्षस –
सतयुग के अंत में प्रतापभानु नामक राजा थे.जो कि एक बार जंगल में रास्ता भटक गए और एक कपटी मुनि के आश्रम में पहुँचे, यह कपटी मुनि प्रतापभानु से हराया हुआ एक राजा था उस कपटी ने तो राजा को पहचान लिया किन्तु राजा प्रतापभानु उसे पहचान नही पाए और फिर उस कपटी मुनि ने राजा को ऐसी ऐसी बातें बताई जो केवल राजा और उसके जानने वाले को ही ज्ञात था इससे राजा को लगा कि यह जरूर कोई सिद्ध पुरूष है इसलिए राजा ने उससे चक्रवर्ती होने का उपाय पूछा. कपटी मुनि ने कहा कि तीन दिन बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें प्रसन्न कर दो उनके आशीर्वाद से तुम चक्रवर्ती बन जाओगी और मैं खुद आकर ब्राह्मणों का भोजन बना दूंगा.
ठीक तीन दिन के बाद वह कपटी मुनि राजा के यहां पंहुचा राजा में एक लाख ब्राह्मणों को भोजन पर बुलाया था लेकिन जैसी ही भोजन को परोसा जाने लगा तो तभी आकाशवाणी हुआ कि भोजन में मांस मिला हुआ है यह अभक्ष्य हैं इस पर सभी ब्राह्मण राजा प्रतापभानु से नाराज़ होकर उसे कुटुंब सहित राक्षस होने का श्राप दे दिया .यही प्रतापभानु ने रावण का जन्म लिया उसका भाई कुम्भकरण बना और प्रतापभानु का मंत्री वरुरुचि विभीषण बनकर जन्म लिया .विभीषण को केवल राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप मिला था इसलिए वह राक्षस होने के बाबजूद धर्मपरायण था.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
रावण के माता पिता का नाम क्या है ?
कैकसी माता और महर्षि विश्रवा पिता.
रावण का जन्म कितने श्राप के कारण से हुआ था ?
तीन (3)
भगवान विष्णु के द्वारपाल कौन थे ?
जय और विजय.
नारदजी ने भगवान विष्णु से क्या मांगा था ?
हरिमुख.
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