Ghadi Parv 2023 | घड़ी पर्व मिथिला के लोक संस्कृति से जुड़ा हुआ एक ऐसा पर्व है जोकि पूरे बिहार (Bihar) में प्रसिद्ध होने के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है. यह एक बहुत ही अद्भुत लोक संस्कृति से जुड़ा पर्व है और ये घड़ी पर्व सावन के महीने में मनाया जाता है. भारत के हर राज्य और प्रान्त से जुड़ी हुई कई सारे रीति रिवाज और संस्कृति होते हैं जिसका अपना खास महत्व होता हैं ऐसे ही बिहार के मिथिला (Mithila) प्रान्त के लोक संस्कृति से जुड़े कई सारे पर्व होते है जो प्रसिद्ध होने के साथ अद्भुत भी होते हैं और इन सारे पर्वों में सबसे खास पर्व होता है घड़ी पर्व. घड़ी पर्व किसी कुल के कुलदेवता या कुलदेवी को समर्पित होता है इस पर्व की सबसे खास बात ये होती हैं कि इस पर्व पर बनने वाला प्रसाद को बहुत ही स्वच्छता से बनाया जाता हैं और प्रसाद के बारे में मान्यता यह है कि इसे घर की स्त्रियां तो बनाती हैं लेकिन कहीं कहीं इसे वो खा नहीं सकती उसे सिर्फ घर के मर्द ही खा सकते हैं. घड़ी पर्व सावन के महीने में मनाया जाता है.
Ghadi Parv 2023 | इस साल 2023 में कब मनाई जाएगी घड़ी पर्व :
घड़ी पर्व को हर साल सावन मास की शुक्ल पक्ष से लेकर सावन पूर्णिमा के बीच मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार 2023 में सावन मास की शुरुआत 4 जुलाई 2023 से हो रहा है. चुकी इस साल 2023, सावन दो मास यानि कि सावन में अधिकमास लग रहा है. सावन मास की शुरुआत 4 जुलाई 2023 से लेकर 31 अगस्त 2023 तक चलेगा ऐसे में इस बार सावन माह कुल मिलाकर 58 दिनों तक रहेगा जिसमें अधिकमास 18 जुलाई 2023 से 16 अगस्त 2023 तक रहेगा और 17 अगस्त 2023 से शुक्ल पक्ष शुरू होगा जो कि 31 अगस्त 2023 तक चलेगा. इस दिन यानी कि 31 अगस्त 2023 को सावन पूर्णिमा है और इसी तिथि के बीच मनाई जाएगी घड़ी पर्व.
घड़ी पर्व कुलदेवता और कूलदेवी पर समर्पित होता हैं और हर कुलों के अलग अलग कुलदेवता और कुलदेवी होते हैं जिनकी पूजा उनके खास दिन में किया जाता हैं लेकिन घड़ी पर्व खासकर सोमवार, बुधवार और शनिवार के दिन मनाया जाता हैं और अगले दिन रोट और भोग को खाया जाता हैं.
इस साल 2023 में मिथिला का खास पर्व यानि कि घड़ी पर्व 17 अगस्त 2023 से लेकर 31 अगस्त 2023 (सावन पूर्णिमा) के बीच अपने अपने कुलदेवता और कुलदेवी के दिन के अनुसार मनाई जाएगी.
Ghadi Parv 2023 | घड़ी पर्व को मनाने के विधि विधान को :
1) सबसे पहले घड़ी पर्व के पहले दिन घर के मंदिर को अच्छे से साफ सफाई करना चाहिए.
2) पर्व के दिन घर की महिलाएँ स्नान करने के बाद प्रसाद बनाती हैं. प्रसाद के रूप में रोट बनाया जाता हैं जोकि सवा किलो गेंहू के आटे को गुड़ और घी में मिलाकर बनाया जाता हैं यहां पर जोड़े में रोट को बनाया जाता हैं एक बड़ा रोट तो दूसरा छोटा रोट.
3) प्रसाद के रोट को बनाते समय ध्यान रखें कि रोट को घी या तेल में फ्राई करें तो वो न टूटे और न ही फ़टे ही, कहीं कहीं इस रोट को रोटी के तरह सेंका भी जाता हैं.
4) रोट के अलावा भोग के लिए सादा पूड़ी, मीठा पूड़ी और खीर भी बनाया जाता हैं.
5) जब सारे भोग बन जाता है तो इन सबका भोग कुलदेवता या कुलदेवी को लगाया जाता हैं जिसके लिए केले के पत्ते या फिर किसी थाल में बने हुए रोट को डालने के बाद रोट को सादा पूड़ी या फिर मीठा पूड़ी से पूरी तरह से ढक दिया जाता हैं इसके अलावा भोग में खीर और फलों का भी भोग लगाया जाता हैं यहां अगर कुलदेवता को भोग लगाएं तो तुलसी दल ज़रूर भोग में रखें.
6) सारे भोग कुलदेवी या कुलदेवता को अर्पित करने के बाद घी का दीपक और धूप जलाएं.
7) घी का दीप जलाने के बाद घर के सभी पुरूष सदस्य और बच्चे जलते हुए दीपक का दर्शन करते हैं और कुल के भगवान को प्रणाम करके आशीर्वाद लेते हैं.
8) ये पूजन शाम के समय की जाती हैं तो चढ़े हुए भोग को रात्रि में पूजा घर में कुलदेवता या कुलदेवी के सामने से हटाकर पूजा घर में ही साफ और स्वच्छ स्थान पर सुरक्षित ढक कर रखा जाता जिसको दूसरे दिन भगवान की पूजा व दीपक जलाकर वापस उसी भोग को चढ़या जाता हैं और थोड़े देर बाद चढ़े हुए भोग को वहाँ से उठाकर पूजा घर में ही रोट को ढके सादा पूड़ी और मीठा पूड़ी को घर के पुरुष और बच्चों के बीच बाँटा जाता हैं लेकिन चढ़े हुए रोट को तोड़कर उपभोग परिवार के वे पुरूष ही कर सकते हैं जो घर के या उस कुल के वंशज होते हैं.
9) घर के पूजा घर में ही सभी चढ़े हुए भोग को खाया जाता हैं अगर रोट और बाकी भोग बच गया हो तो उसे किसी पवित्र स्थान में जमीन के नीचे दबा दिया जाता हैं और पुरुषों को हिदायत दी जाती हैं कि रोट खाने के बाद नदी पार नही कर सकते.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
घड़ी पर्व का त्यौहार किस राज्य के प्रान्त से जुड़ा है ?
बिहार के मिथिला प्रान्त.
घड़ी पर्व में बनने वाला रोट भोग किन चीजों से बना होता है ?
सवा किलो गेहूँ के आटे को गुड़ और घी को मिलाकर बनाया जाता हैं.
इस साल 2023 में घड़ी पर्व कब मनाया जायेगा ?
17 अगस्त से लेकर 31अगस्त के बीच में मनाया जायेगा.
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