Rangbhari Ekadashi Vrat Katha | फागुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी कहा जाता है आमलकी (रंगभरी एकादशी) यानी आंवला को शास्त्रों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है. धार्मिक मान्यता है कि जब विष्णु जी ने सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा जी को जन्म दिया तो इस समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को भी जन्म दिया और आवलें को भगवान विष्णु आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया जिसके हर अंग में भगवान विष्णु का स्थान माना जाता है यही कारण है कि आमलकी एकादशी में भगवान विष्णु के साथ आंवला के वृक्ष की भी पूजा होती है इसीलिए इस व्रत को आंवला एकादशी भी कहा जाता है. इस एकादशी व्रतके दिन आंवले का भोग लगाया जाता है, आंवला को खाया जाता हैं और इस वृक्ष की परिक्रमा करके लाल सुत को लपटा जाता हैं.
आमलकी एकादशी के दिन व्रत रखकर पूजा करने के बाद आमलकी एकादशी व्रत कथा को जरूर सुनना चाहिए जिससे की व्रत का पूरा फल मिलता हैं मान्यता है की आमलकी एकादशी के दिन इस व्रत कथा को सुनने से हजारों गौदान के बराबर पुण्य, मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
Rangbhari – Amalaki Ekadashi Vrat Katha | आमलकी एकादशी व्रत कथा :
Amalaki Ekadashi Vrat Katha | आमलकी एकादशी व्रत कथा को महर्षि वशिष्ठ ने राजा मांधाता को सुनाया था और कथानुसार वैदिश नाम का एक नगर था उस नगर का राजा का नाम था चैतरथ था. राजा चैतरथ विद्वान और बहुत ही धार्मिक थे और साथ ही उसके नगर में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र भी रहते थे और यह सभी वर्ग के लोग धर्म पूर्ण किया करते थे साथ ही सभी भगवान विष्णु के परम भक्त थे वहां पर ना तो कोई भी नास्तिक ही था और ना ही कोई दरिद्र ही था नगर में रहने वाला हर कोई व्यक्ति एकादशी व्रत रखता और पूजन करता था.
एक बार फाल्गुन महीने में आमलकी एकादशी आई और सभी नगरवासी और राजा ने यह व्रत किया और सभी मंदिर जाकर आंवले वृक्ष की पूजा भी किया और वहीं पर रात्रि जागरण किया तभी रात के समय वहां एक शिकारी आया जो कि घोर पापी था लेकिन उसे भूख और प्यास दोनों लगी थी इसलिए वह मंदिर की कोने में बैठकर जागरण को देखने लगा और भगवान विष्णु और एकादशी महात्मय की कथा सुनने लगा इस तरह से पूरी रात बीत गई और नगर वासियों के साथ शिकारी भी पूरी रात जागरण किया. सुबह होने पर सभी नगरवासी अपने घर चले गए और शिकारी भी अपने घर जाकर भोजन किया इस तरह कुछ समय पश्चात उस शिकारी की मृत्यु हो गई.
उसे शिकारी ने आमलकी एकादशी व्रत कथा सुनी थी और जागरण भी किया था और इसी पुण्य फल के कारण वह राजा विदुरथ के घर जन्म लिया और राजा ने उसका नाम वासुरथ रखा. बड़ा होकर वासूरथ नगर का राजा बन गया और एक दिन वह शिकार पर निकाला लेकिन बीच में ही वह रास्ता भूल गया और रास्ता भूल जाने के कारण वह एक वृक्ष के नीचे सो गया. थोड़ी देर बाद वहां कुछ जंगली लोगों का आगमन हुआ और उन लोगों ने राजा को अकेला देखकर उसे मारने की योजना बनाने लगे उन्होंने कहा कि इसी राजा के कारण उन्हें देश से निकाला गया है इसलिए इसे हमें मार देना चाहिए इस बात से अंजान राजा सोता रहा और जंगली आदमियों ने राजा पर हथियार फेंकना शुरू कर दिया लेकिन उसके शस्त्र राजा पर फूल बनकर गिरने लगे कुछ देर के बाद सभी जंगली मनुष्य जमीन पर मृत पड़े थे.
जब राजा की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग जमीन पर मृत पड़े हैं राजा समझ गया कि वह सभी उसे मारने के लिए आए थे लेकिन किसी ने उन्हें ही मौत की नींद सुला दिया यह देखकर राजा ने कहा जंगल में ऐसा कौन है जिसने उसकी जान को बचाई है. तभी वहां एक आकाशवाणी हुई कि हे राजन ! भगवान विष्णु ने तुम्हारी जान बचाई है क्योंकि तुमने पिछले जन्म में आमलकी एकादशी व्रत कथा को सुना था और उसी का फल है कि आज तुम शत्रुओं से घिरे होने के बावजूद जीवित हो इसके पश्चात राजा वासुरथ अपने नगर को लौटा और सुख पूर्वक राज करने लगा और धर्म व पुण्य के कार्य भी करने लगा.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
पंचाग के अनुसार आमलकी एकादशी कब मनाई जाती है ?
फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को
आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ किस वृक्ष की पूजा की जाती है ?
आंवले के वृक्ष की.
आमलकी एकादशी व्रत कथा को किसने किसको सुनाया था ?
महर्षि वशिष्ठ ने राजा मांधाता को.
आमलकी एकादशी को ओर किस एकादशी के नाम से जाना जाता हैं ?
रंगभरी एकादशी और आंवला एकादशी.
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