Jagannath Rath Yatra | ओडिशा पुरी की विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से लेकर आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवें (11) दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ इस यात्रा का समापन होता है और इस यात्रा में शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर चार पवित्र धामों में से एक है जहां श्रीहरि विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की विराजित मूर्तियां की पूजा होती है.
हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा के साथ तीन रथों में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और इस भव्य आयोजन के साक्षी लाखों लोग बनते हैं ऐसी धार्मिक मान्यता है कि जो भी व्यक्ति एक बार भगवान जगन्नाथ की रथ की रस्सी को हाथ लगा देता है तो वह भव सागर से तर जाता है लेकिन हर साल जब भी भगवान जगन्नाथ का रथ नगर भ्रमण के निकलता है तो उनके रथ का पहिया एक मजार (Mazar) के सामने आकर रुक जाते हैं. इस रहस्यमयी घटना से हर कोई आश्चर्य में पड़ जाता हैं कि आखिर क्यों जगत के पालनहार का रथ एक मजार के सामने रुक जाता हैं, क्या है इसके पीछे की कहानी.
Story of Jagannath Rath Yatra | जानते हैं उस रहस्यमय कहानी को क्यों मजार पर रुकता है भगवान जगन्नाथ का रथ :
पौराणिक कथानुसार, जहांगीर के समय एक मुस्लिम सूबेदार ने एक ब्राह्मण विधवा महिला से शादी कर लिया और उससे एक पुत्र हुआ जिसका नाम सालबेग रखा गया चुकी सालबेग की माँ हिन्दू होने के कारण से शुरुआत से ही भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्ति और आस्था सालबेग को थी लेकिन उसका पिता मुस्लिम होने के वजह से वह मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाता था इसके बावजूद भी भगवान जगन्नाथ के प्रति उसकी भक्ति कम नहीं हुई.
सालबेग बहुत समय तक वृंदावन में रहा और एक बार रथ यात्रा में शामिल होने के लिए ओडिशा पुरी आएं और जब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बहुत ही उत्साह के साथ निकाली गई तो भगवान जगन्नाथ का मुस्लिम भक्त सालबेग मुस्लिम होने की वजह से उनको भगवान जगन्नाथ के मंदिर में जाने और रथ यात्रा में शामिल होने नहीं दिया उसकी इच्छा होते हुए भी वह मंदिर और रथ यात्रा में शामिल नहीं हो पाया. कुछ दिन गुजरने के बाद सालबेग बीमार हो गया और इसी बीमारी में उसने भगवान को मन से याद किया और एक बार दर्शन की इच्छा जताई. इच्छा होते हुए भी वह भक्त मंदिर में दर्शन के नहीं पहुंच पाया और ऐसे में उसकी मृत्यु हो गई.
सालबेग की मृत्यु के बाद जब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली गई तो रथ उनके इसी मुस्लिम भक्त के मजार पर आकर थम गया लोगों ने बहुत कोशिश की लेकिन रथ मजार के सामने से हिला भी नहीं यहां तक कि उनका पहिया भी हिल नहीं पाया. इसके पश्चात लोगों ने उस भक्त की आत्मा की शांति के लिए भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की और तब जाकर भगवान जगन्नाथ के रथ का पहिया आगे बढ़ा. उस दिन से लेकर आज तक जब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती हैं तो कुछ समय के लिए सालबेग के मजार में रोका जाता है जिसे आज भी एक परंपरा के तौर पर निभाया जा रहा है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) जगन्नाथ मंदिर में किन भगवानों की मूर्तियां विराजित है ?
श्री कृष्ण उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की.
2) भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा कब से शुरू होकर कब तक चलती है ?
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से लेकर शुक्ल पक्ष के ग्यारवें दिन.
3) भगवान जगन्नाथ का रथ किसके मजार के सामने आकर रूकती है ?
मुस्लिम भक्त सालबेग.
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