Navratri | साल में दो बार नवरात्रि का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है ओर यह पर्व प्रतिपदा तिथि कलश स्थापना से लेकर नौ दिनों तक चलता है. नवरात्रि के पावन पर्व में कन्या पूजन का विशेष महत्व हैं जो कि नवरात्रि की अष्टमी – नवमी तिथि को छोटी कन्याओं को माता का स्वरूप मानकर उनकी पूजा करके उनको दक्षिणा देकर आशीर्वाद लिया जाता हैं मान्यता है कि कन्या पूजन की बिना नवरात्रि के व्रत पूर्ण नहीं माने जाते यही कारण है कि नवरात्रि में घर पर कन्या पूजन के समय कन्याओं को बैठाकर पूजा करने के बाद भोजन आदि कराया जाता हैं लेकिन कन्या पूजन में कन्याओं के साथ एक बालक का होना भी आवश्यक होता है और माना जाता है कि इसके बिना कन्या पूजन अधूरी मानी जाती हैं.
Navratri | नवरात्रि के कन्या पूजन में क्यों होता है एक बालक :
नवरात्रि का व्रत जिस तरह से कन्या पूजन (Kanya Pujan) के बिना अधूरी मानी जाती हैं वैसे ही कन्या पूजन में बालक न हो तो कन्या पूजन को भी पूर्ण नहीं माना जाता हैं. धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि में कन्या पूजन में नौ कन्याओं को देवी दुर्गा माता के नौ स्वरूप माना जाता है तो वहीं बालक को भैरव बाबा या हनुमानजी माना गया है और इनको दुर्गा माता का पहरेदार माना जाता हैं जिसको लंगूर या लांगुरिया भी कहा जाता हैं.
कन्या पूजन में नौ कन्याओं के साथ लंगूर को बैठाकर इनकी भी पूजा करने के अलावा इनकी थाली में वहीं भोग परोसे जाते हैं जो कि कन्याओं की थाली में परोसे जाते हैं और फिर इनके भी पैर को आशीर्वाद लेने के पश्चात दक्षिणा देकर विदा किया जाता हैं मान्यता है कि नवरात्रि में कन्या पूजन के साथ भैरव या हनुमानजी को पूजन करने के बाद ही नवरात्र व्रत सफल होता हैं और दुर्गा माता के आशीर्वाद व कृपा से घर में खुशहाली आने के साथ ही घर पर सुख – समृद्धि बनी रहती हैं.
Navratri | इन स्वरूपों में किया जाता नौ कन्याओं का पूजन :
कन्या पूजन में कन्या की उम्र दो (2) साल से लेकर दस (10) साल की होती हैं जिनको उम्र के हिसाब से देवी का स्वरुप माना जाता हैं. दो साल की कन्या को कन्या कुमारी, तीन साल की कन्या त्रिमूर्ति, चार साल की कन्या को कल्याणी, पांच साल की कन्या को रोहिणी, छह साल की कन्या को कालिका, सात साल की कन्या को चंडिका, आठ साल की कन्या को शांभवी, नौ साल की कन्या को दुर्गा और दस साल की कन्या को सुभद्रा के स्वरूप में पूजन किया जाता हैं.
Navratri | नवरात्रि में कन्या पूजन के साथ भैरव को पूजा करने के पीछे के कारण को :
पौराणिक कथा अनुसार आपद नामक एक राक्षस था जो की तीनों लोकों पर बहुत अत्याचार किया करता था यहां तक की देवी देवता भी उससे बहुत अधिक परेशान थे और वह सभी आपद राक्षस से मुक्ति पाने का हाल ढूंढते थे और एक दिन सभी देवी – देवताओं ने भगवान शिव से इस समस्या का हल निकालने को कहा ताकि आपद राक्षस से मुक्ति मिल सके. भगवान शिव ने सभी देवी – देवताओं की प्रार्थना सुनी और सभी देवी – देवताओं से कहा कि वह अपनी अपनी शक्तियों से एक बालक की उत्पत्ति करें क्योंकि आपद का अंत किसी बालक से ही हो सकता है और तब सभी देवी – देवताओं ने मिलकर एक बालक की उत्पत्ति कर दिया जिसका नाम बटुक भैरव रखा गया और इसी बटुक भैरव भगवान ने ही आपद रक्षस का वध किया.
पुराने के अनुसार भगवान बटुक भैरव के घुंघराले काले बाल थे, कमल के समान सुंदर हाथों वाले और अति सुंदर देह के थे. सभी देवी देवताओं ने अपनी शक्तियों से इस बालक की उत्पत्ति की यही कारण है नवरात्रि में कन्या पूजन के समय भैरव बाबा का भी पूजन किया जाता है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) नवरात्रि में कन्या पूजन के समय पूजे जाने वाले बालक क्या कहलाते हैं ?
भैरव बाबा.
2) कन्या पूजन में सात साल की कन्या किसका स्वरूप मानी जाती हैं ?
चंडिका.
3) भैरव बाबा को माता रानी का क्या माना जाता हैं ?
पहरेदार.
4) माता रानी के पहरेदार भैरव बाबा को क्या कहा जाता हैं ?
लंगूर या लांगुरिया.
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