Sutak and Patak Kaal | जानते हैं आखिर सूतक और पातक काल क्या होता है ? और इसका जन्म मृत्यु और ग्रहण से संबंध क्या है.

sutak and patak kaal

Sutak and Patak Kaal | हिंदू सनातन धर्म में परंपराओं का विशेष महत्व है. इन परंपराओं में मनुष्य को जीवन जीने के कई सिद्धांत और नियम बताए गए हैं. धर्म में जन्म – मरण और ग्रहण के समय सूतक को माना जाता है. हिंदू धर्म की परंपरा और मान्यताओं के अनुसार जन्म और मृत्यु अथवा सूर्य ग्रहण के दौरान सूतक और पातक जैसे नियमों का पालन किया जाता है. बहुत कम लोग जानते हैं कि सूतक और पातक काल क्या होते हैं. सूतक काल ग्रहण और जन्म के समय उत्पन्न अपवित्रता (अशुद्धि) से है. पातक का संबंध मरण के समय हुई अशुद्धि से है. हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार किसी परिजन की मृत्यु पर शोक संवेदना व्यक्त करने के लिए पूरे 13 दिनों तक पातक होता है और इसी प्रकार घर में किसी नवजात के जन्म होने पर सूतक होता है. आइए विस्तार से जानते हैं क्या होता है सूतक और पातक काल (Sutak and Patak Kaal) इस लेख में.

What is Sutak Kaal? क्या होता हैं सूतक काल?

सूतक यानि कि ऐसा अशुभ काल जिस समय में प्रकृति संवेदनशील हो जाती हैं ऐसे काल या समय में अनहोनी होने की संभावना अधिक होती हैं यही कारण हैं कि इस समय कई कार्यों को करने की मनाही होती हैं. हिंदू धर्म की माने तो सूतक का बहुत ही महत्व होता है सूर्य ग्रहण हो या फिर चंद्र ग्रहण दोनों में ही सूतक लगता हैं किंतु सूर्य ग्रहण के समय सूतक 12 घंटे पहले लगता है तो वहीं चंद्र ग्रहण में सूतक 9 घंटे पहले लगता हैं. मान्यता है कि सूतक काल में देवी देवताओं की पूजा नही होती और इसके अलावा कई कार्य वर्जित हो जाते हैं.

सूतक काल ग्रहण और जन्म के समय उत्पन्न अपवित्रता से है. जब घर में किसी बच्चे का जन्म होता हैं तो जन्म लेने वाले बच्चे के परिवार पर सूतक लग जाता हैं. सूतक की यह समय दस दिनों की होती हैं इन दस दिनों में बच्चे के माता पिता और घर के अन्य सदस्य किसी धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा नही लेते हैं यहां तक बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री के लिए रसोईघर में जाना और दूसरे कार्य करने की भी मनाही रहती हैं जब तक की घर में हवन न हो जाए, लेकिन सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के सूतक काल में मंदिर के कपाट बंद होने के साथ ही पूजा अर्चना नहीं किया जाता हैं.

What is Patak Kaal? क्या होता है पातक काल?

जिस तरह किसी बच्चे के जन्म होने से सूतक काल लगती हैं उसी तरह गरुड़ पुराण के अनुसार परिवार में किसी की मृत्यु होने से लगने वाले सूतक को  “पातक” कहा जाता हैं.इसमें मृत व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को 12 या फिर 13 दिन तक पातक के नियमों का पालन करना पड़ता हैं, इसमें घर के सदस्यों को रसोई में जाने या फिर कुछ भी पकाने की मनाही होने के साथ पातक काल में पूजा अर्चना और शुभ या फिर मांगलिक कार्य भी नहीं किये जाते है.

किसी व्यक्ति की मृत्यु से फैली अशुद्धि के कारण पातक काल लग जाता हैं धार्मिक मान्यता के अनुसार पातक काल सवा महीने का होता है लेकिन दाह संस्कार से लेकर 13 दिन पातक का सख्ती के साथ पालन करना होता हैं. अस्थि विसर्जन, पवित्र नदी में स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को भोज कराने और अंत में हवन करने के बाद ही पातक समाप्त हो जाता हैं.

ज्योतिष शास्त्र की माने तो सूतक और पातक दोनों ही बीमारियों से बचने के उपाय होते हैं जिसमें घर और शरीर की शुद्धि की जाती हैं. जब ‘सूतक’ और ‘पातक’ की समय खत्म हो जाया करती हैं तो घर में हवन यज्ञ करके घर और वातावरण को पवित्र किया जाता हैं इसके पश्चात परम् पिता परमेश्वर से नई शुरुआत के लिए प्रार्थना किया जाता हैं.


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FAQ – सामान्य प्रश्न

सूतक कब कब लगता है ?

सूर्य व चंद्र ग्रहण और घर में किसी बच्चे के जन्म पर.

पातक किसे कहा जाता हैं ?

गरुड़ पुराण के अनुसार घर में किसी के मृत्यु के सूतक को पातक कहा जाता हैं.

सूर्य ग्रहण में सूतक कब लगता हैं ?

सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले.

चंद्र ग्रहण में सूतक कब लगाता हैं ?

चंद्र ग्रहण से 9 घंटे पहले.

सूतक और पातक में किन कार्यों की मनाही होती हैं ?

 पूजा पाठ और मांगलिक कार्य की. 


अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.