Lord Shiva’s Third Eye | सनातन धर्म में हर भगवान के महत्व को और उनकी महिमा का वर्णन किया गया है कुछ अति दुर्लभ है तो कुछ अत्यंत सौम्य स्वभाव के कहे गए हैं साथ ही उनसे जुड़ी हुई कहानी को भी बताया गया है. सप्ताह के सातों दिन अलग-अलग भगवान को समर्पित है और सोमवार का दिन भगवान शिव का दिन माना गया है. भगवान शिव त्रिदेव में एक देव है जिनको शंकर, महेश नीलकंठ और गंगाधर कई नाम से जाना जाता है और कहा जाता है कि भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से सभी संकटों और कष्टों से मुक्ति मिलती है. भगवान शिव की लीला भी अद्भुत है भगवान शिव की वेशभूषा वाहन आदि को लेकर कई तरह की रहस्य भरी कहानी है उन्हें में से एक है भगवान शिव की तीसरी आंख की कहानी. मान्यता है कि जब भगवान शिव रौद्र रूप धारण करते हैं तो उनकी तीसरी आंख खुलती है जिससे की पूरी पृथ्वी पर हाहाकार मच जाता है.
कहते हैं जब-जब भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली है तब तक सृष्टि का विनाश हुआ है या फिर भगवान शिव अपनी तीसरी आंख अधिक क्रोधित होने पर ही खोलते है माना जाता है कि एक बार कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या को भंग किया था तब भगवान शिव ने क्रोध से अपनी तीसरी आंख को खोला तब उनके क्रोध का शिकार कामदेव को होना पड़ा था. भगवान शिव की तीसरी आंख उनकी दिव्य दृष्टि कहलाती है और यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव अपनी तीसरी आंख से आत्म ज्ञान को प्राप्त करते हैं.
Lord Shiva’s Third Eye | भगवान शिव की तीसरी आंख के प्रकट होने के रहस्य :
महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व में यह बताया गया है कि भगवान शिव को तीसरी आंखें कैसे मिली थी. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव हिमालय पर्वत पर एक सभा कर रहे थे जिसमें सभी देवता, ऋषि, मुनि और ज्ञानी गण उपस्थित कि तभी उसी सभा में माता पार्वती आई उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए अपने हाथों को भगवान शिव की दोनों आंखों पर रख दिया. जैसे ही माता पार्वती ने भगवान शिव की आंखों को ढका सृष्टि में अंधेरा फैल गया ऐसा लगा जैसे कि सूर्य देव की कोई अहमियत ही नहीं है इसके बाद धरती पर मौजूद सभी प्राणियों में खलबली और हलचल मच गई संसार की हालत देखकर भगवान शिव व्याकुल हो गए और उन्होंने उसी समय अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज को प्रकट किया और यही भगवान शिव की तीसरी आंख बनी. माता पार्वती ने भगवान शिव की तीसरी आंख की उत्पत्ति होने का कारण पूछा तो भगवान शिव ने उन्हें बताया कि अगर वह ऐसा नहीं करते तो संसार का नाश हो जाता है क्योंकि उनकी आंखें ही जगत की पालनहार है.
Importance of Lord Shiva’s Third Eye | आइए जानते हैं भगवान शिव की आँखों की विशेषता :
मान्यता है कि भगवान शिव के तीनों नेत्र अलग-अलग गुणों के प्रतीक होते हैं जिसमें दाएं नेत्र सत्गुण बाएं नेत्र रजोगुण और तीसरे नेत्र में तमोगुण का वास होता है. भगवान शिव एक ऐसे देव हैं जिनकी तीसरी आंख उनके ललाट पर दिखाई देती है यही कारण है कि इनको त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है जिसमें एक आंख में चंद्रमा दूसरी नेत्र में सूर्य तीसरी आंख को विवेक माना जाता है भगवान शिव के मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच विराजित उनका तीसरा नेत्र उनकी एक विशिष्ट पहचान को भी बताता है.
पुराणों के अनुसार भगवान शिव के तीनों नेत्रों को त्रिकाल का प्रतीक कहा जाता है जिसमें भूत वर्तमान और भविष्य का वास होता हैं तो वही स्वर्ग लोक, मृत्यु लोक और पाताल लोक भी इन्हीं तीनों नेत्रों के प्रतीक होते हैं भगवान शिव ऐसे देव है जिनको तीनों लोगों का स्वामी कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान शिव की तीसरी आंख अग्नि की तरह है जो कि पापियों को कहीं से भी खोज निकाल कर उन्हें नष्ट कर देती है यही कारण है की दुष्ट आत्माएं उनकी तीसरी आंख से भयभीत रहती है इसके अलावा भगवान शिव की तीसरी आंख अधिक शक्तिशाली मानी जाती है कहा जाता है कि वह तीसरी आंख से सब कुछ देख सकते हैं जितना कि वह दोनों आंखों से नहीं देख सकते हैं.
मान्यता है कि जब भगवान शिव की तीसरी आंख खुलती है तो एक नए युग का निर्माण होता है तीसरी आंख यह भी संकेत देती है कि सारे जगत की क्रिया ना तो आदि है और नहीं अंत यह तो अनंत है. पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने सबसे पहले तीसरी आंख खोली थी. कहा जाता है कि भगवान शिव की तीसरी आंख उनकी शक्ति का केंद्र भी है इसे उनकी छवि अत्यधिक प्रभावशाली हो जाती है माना जाता है कि भगवान शिव की तीसरी आंख खुलते ही समय सृष्टि भस्म हो जाएगी यानी कि महादेव के क्रोध के सामने किसी की भी नहीं चल सकती हैं.
उम्मीद है कि आपको भगवान शिव की तीसरी नेत्र से जुड़ा हुआ यह लेख पसंद आया होगा, तो इसे अधिक से अधिक अपने परिजनों और दोस्तों के बीच शेयर करें और ऐसे ही धर्म से जुड़े लेख को पढ़ने के लिए जुड़े रहे हैं madhuramhindi.com के साथ.
FAQ – सामान्य प्रश्न
भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी किसके कारण कहा जाता हैं ?
तीसरी नेत्र के कारण
भगवान शिव के तीसरी नेत्र में कौन सा गुण का वास होता है ?
तमोगुण का वास.
भगवान शिव को तीसरी नेत्र से क्या प्राप्त होता है ?
आत्मज्ञान
भगवान शिव के तीनों नेत्रों को किसका प्रतीक कहा जाता हैं ?
त्रिकाल
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.