Kurma Avatar | आखिर भगवान विष्णु ने किस उद्देश्य के लिए कूर्म अवतार लिया था? क्या है इस अवतार को लेने की पौराणिक कथा

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Kurma Avatar | जब जब धरती पर कोई संकट आता है तब तब भगवान अलग अलग अवतार में प्रकट होकर उस संकट का विनाश करते हैं. हिंदू धर्म को माने तो भगवान के अवतार की अवधारणा एक विशिष्ट विशेषता हैं. भगवान विष्णु ने अलग अलग अवतार में प्रकट होकर धर्म की रक्षा और बुराई को मिटाने के लिए पृथ्वी पर कई अवतार लिए है जिनमें से उनका द्वितीय अवतार कूर्म अवतार था. इस अवतार में भगवान विष्णु कछुयें के अवतार में प्रकट हुए थे यही कारण है कि इस अवतार को कच्छप अवतार या कछुआ अवतार के नाम से भी जाना जाता हैं.

इस अवतार में विष्णुजी का आधा शरीर मानव का था और आधा कछुए का था. भगवान विष्णु ने यह अवतार तब लिया था जब समुंद्र मंथन होना था. विष्णुजी के कछुआ अवतार लेने के पीछे उद्देश्य देव – दानवों को समुंद्र मंथन में सहायता करना और मंदार पर्वत का भार उठना था.

Kurma Avatar | भगवान विष्णु के कूर्म (कछुआ) अवतार की पौराणिक कथा :

एक समय जब देवताओं को अपनी शक्ति का अत्यंत घमंड हो गया था और इसी अहंकार में एक बार उन्होंने ऋषि दुर्वासा का अपमान कर दिया जिसके कारण ऋषि दुर्वासा क्रोधित होकर देवताओं को श्री (लक्ष्मी) हीन होने का श्राप दे दिया. इसके बाद देवताओं की शक्ति दानवों के सामने कम हो गयी जिसके वजह से दैत्यराज बलि ने देवराज इंद्र को पराजित कर दिया और तीनों लोकों पर दैत्यों व दानवों का अधिकार हो गया जिसके कारण चारो ओर अधर्म बढ़ने लगा था. यह सब देखकर देवता बहुत दुखी हो गए और इस संकट को दूर करने के लिए भगवान विष्णु के पास सहायता मांगने पहुंचे.

जब दुखी देवतागण अपनी परेशानी लेकर भगवान विष्णु के पास गए तब श्रीविष्णु ने उन्हें इस संकट से निकले के लिए समुंद्र मंथन का सुझाव दिया क्योंकि कुछ समय पहले पृथ्वी प्रलय से उबरी थी और सतयुग का फिर उदय हुआ था जिसके कारण बहुत सारे अनमोल रत्न समुंद्र की गहराई में छिपे हुए थे लेकिन समुंद्र मंथने का कार्य ना ही अकेले देवता कर सकते थे और ना ही दानव ही कर सकते थे इसलिए भगवान विष्णु ने इस कार्य को पूरा करने के लिए दानवों के साथ समुंद्र मंथन करने और उसमें से बहुमूल्य रत्न प्राप्त करने को कहा इसके साथ ही श्रीविष्णु ने देवताओं को ये भी बताया कि इसमे रत्नों के अलावा अमृत भी निकलेगा जिसको पीने से देवताओं की शक्ति दानवों की तुलना में अत्यधिक बढ़ेगी और देवता अमर हो जायेगे इसके साथ ही उन्हें अपना राज सिहांसन फिर से पुनः प्राप्त हो जायेगा.

भगवान विष्णु (Vishnu) की आज्ञा से सभी देवतागण देवराज इंद्र के साथ दैत्यराज बलि के पास गए और उनके सम्मुख समुंद्र मंथन का प्रस्ताव रखा वैसे तो दैत्यगुरु शुक्राचार्य को देवताओं पर विश्वास नहीं था इसके बावजूद भी उन्हें देवताओं का प्रस्ताव पसंद आया जिसकी उन्होंने अनुमति दे दी. इसके बाद देवता और दानव समुंद्र मंथन के लिए क्षीर सागर पहुंचे.

समुंद्र मंथन करने के लिए एक विशाल मथनी की आवश्यकता थी जो उसे मथ सके  इसके लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र की सहायता से मंदार पर्वत को काटकर समुंद्र में रख दिया ताकि इस पर्वत की मदद से देवता और दानव समुंद्र को मथने का कार्य कर सके. अब उन सभी को इस पर्वत को घुमाने के लिए एक मजबूत रस्सी की आवश्यकता हुई जिसके लिए भगवान शिव ने स्वयं अपना वासुकी नाग दिया जिसे मंदार पर्वत पर लपेटा गया, दैत्यों की ओर वासुकी नाग के मुख को और देवताओं की ओर वासुकी नाग की पूँछ को रखा गया. अब समुंद्र मंथन का कार्य शुरू हुआ लेकिन एक समस्या और आ गई  क्योंकि समुंद्र बहुत विशाल और गहरा होता है जिसकी कोई पक्की भूमि नहीं होती इसकी वजह से मंदार पर्वत अंदर गहराई में जा रहा था. यदि यह डूब जाए तो समुंद्र मंथन का कार्य अधूरा रह जायेगा.

यह देखकर भगवान विष्णु स्वमं देवता और दानव की मदद करने के लिए अपना द्वितीय अवतार कछुआ का अवतार लिया और मंदार पर्वत का भार अपनी पीठ पर उठाया क्योंकि कछुए की पीठ ठोस होती हैं जिसकी वजह से मंदार पर्वत उस पर टिक गया और इसके बाद देवता व दानव ने कई दिनों तक समुंद्र मंथन का कार्य किया.

इसके बाद समुंद्र मंथन से एक एक करके चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई जिसमें विष,घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कामधेनु गाय, पारिजात पुष्प, देवी लक्ष्मी, अप्सरा रम्भा, कल्पतरु वृक्ष, वारुणी देवी,पच्चजन्य शंख, चंद्रमा, भगवान धन्वंतरि और अमृत प्राप्त हुए लेकिन जैसे ही अमृत की प्राप्त हुई वैसे ही देवता और दानव में इसे पाने के लिए भयानक युद्ध छिड़ गया तब भगवान विष्णु ने अपना अंशावतार मोहिनी लेकर उस युद्ध का अंत किया तथा सृष्टि का उद्घार किया.

भगवान विष्णु के कच्छप यानि कूर्म अवतार (Kurma Avatar) लेने का उद्देश्य देवी लक्ष्मी को प्राप्त करना था इसके अलावा बहुमूल्य रत्न और औषधियां जो महाप्रलय के बाद समुंद्र की गहराइयों में चली गयी थी उसे भी प्राप्त करना आवश्यक था क्योंकि इसी सब के द्वारा सृष्टि का कल्याण होना था इसके अलावा इस अवतार में ये भी दिखाना था कि कैसे बुराई (दैत्यों) का इस्तेमाल अच्छाई के कार्य के लिए किया जा सकता हैं. 


FAQ – सामान्य प्रश्न

  • कूर्म अवतार किस भगवान ने लिया था ?

    भगवान विष्णु.

  • कूर्म अवतार – भगवान विष्णु का कौन सा अवतार था ?

    द्वितीय अवतार.

  • कूर्म का अर्थ क्या है ?

    कच्छप, कछुआ.

  • भगवान विष्णु के कच्छप यानि कूर्म अवतार लेने का उद्देश्य क्या था ?

    देवी लक्ष्मी को प्राप्त करना था.

  • समुंद्र मंथन से कितने रत्नों की प्राप्ति हुई ?

    चौदह (14) रत्न


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