Gayatri Chalisa PDF Download : हिंदू सनातन धर्म में गायत्री मां को सनातन संस्कृति की जन्मदात्री कहा गया है. गायत्री माता से चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां की उत्पत्ति मानी जाती है. गायत्री माता को ब्रह्मा, विष्णु, महेश की आराध्य भी कहा गया है इसलिए इन्हें देव माता के रूप में भी पूजा जाता है. गायत्री माता की पूजा अर्चना व साधना करने से भक्ति को मां गायत्री की असीम कृपा प्राप्त होती है, तथा भक्त को ऊर्जावान, धैर्य और साहस से अपने क्रोध व चिंता पर विजय दिलाने में उसे सही राह और मार्ग दर्शन कराती है. जो व्यक्ति मां गायत्री की चालीसा का पाठ सच्चे श्रद्धा भाव से करता है उसे जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता उसके मन की हर मनोकामना पूरी होती है और जीवन में सुख और वैभव की प्राप्ति होती है. मां गायत्री की स्तुति करते हुए हम अपने गुना की भी इस चालीसा के जरिए गुणगान करते हैं तथा पाठ करने से भक्तों को सद्गुणों की प्राप्ति होती है.
आइए पढ़ते हैं गायत्री चालीसा और आप इसे PDF के रूप में डाउनलोड भी कर सकते हैं और अपने मोबाइल या लैपटॉप में रख सकते हैं और नियमित तौर पर इसे पढ़ सकते हैं लिंक नीचे दिया हुआ है वहां से आप उसे जरूर डाउनलोड कर ले.
Gayatri Chalisa PDF Download : गायत्री चालीसा
गायत्री चालीसा (Gayatri Chalisa – PDF Download) हिंदी PDF डाउनलोड करें, नीचे लिंक दिया हुआ है.
॥ गायत्री चालीसा ॥
॥ दोहा ॥
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ॥
॥ चालीसा ॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी । गायत्री नित कलिमल दहनी ॥
अक्षर चौबिस परम पुनीता । इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥
शाश्वत सतोगुणी सतरुपा । सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥
हंसारुढ़ सितम्बर धारी । स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला । शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥
ध्यान धरत पुलकित हिय होई । सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया । निराकार की अदभुत माया ॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई । तरै सकल संकट सों सोई ॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली । दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥
तुम्हरी महिमा पारन पावें । जो शारद शत मुख गुण गावें ॥
चार वेद की मातु पुनीता । तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥
महामंत्र जितने जग माहीं । कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै । आलस पाप अविघा नासै ॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी । काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥
ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते । तुम सों पावें सुरता तेते ॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे । जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी । जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना । तुम सम अधिक न जग में आना ॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा । तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥
जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई । पारस परसि कुधातु सुहाई ॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई । माता तुम सब ठौर समाई ॥
ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे । सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥
सकलसृष्टि की प्राण विधाता । पालक पोषक नाशक त्राता ॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी । तुम सन तरे पतकी भारी ॥
जापर कृपा तुम्हारी होई । तापर कृपा करें सब कोई ॥
मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें । रोगी रोग रहित है जावें ॥
दारिद मिटै कटै सब पीरा । नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥
गृह कलेश चित चिंता भारी । नासै गायत्री भय हारी ॥
संतिति हीन सुसंतति पावें । सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥
भूत पिशाच सबै भय खावें । यम के दूत निकट नहिं आवें ॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई । अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी । विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी । तुम सम और दयालु न दानी ॥
जो सदगुरु सों दीक्षा पावें । सो साधन को सफल बनावें ॥
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी । लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥
अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता । सब समर्थ गायत्री माता ॥
ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी । आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें । सो सो मन वांछित फल पावें ॥
बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ । धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥
सकल बढ़ें उपजे सुख नाना । जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥
॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय । तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥
PDF Name | Gayatri Chalisa PDF |
No of Pages | 05 |
Page Content | Gayatri Chalisa |
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