Sindoor Khela | हिंदू धर्म में हर साल शारदीय नवरात्रि का पर्व बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है और इसी पर्व में जगह जगह माँ दुर्गा के भव्य पंडाल लगाने के बाद इसमें माँ दुर्गा की मूर्ति (प्रतिमा) को विराजित करके माँ दुर्गा की विधिवत पूजा अर्चना किया जाता हैं. शारदीय नवरात्रि का पर्व में भक्ति भाव से नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजन करने का महत्व है तो वहीं दशहरे के दिन सिंदूर उत्सव खेलने का भी महत्व हैं वैसे तो देश भर में दशहरे के दिन सिंदूर उत्सव मनाई जाती हैं लेकिन पश्चिम बंगाल में इस उत्सव को बहुत अधिक संख्या में लोग मनाते हैं.
Why is Sindoor Khela celebrated on Dussehra? दशहरे के दिन क्यों मनाई जाती है सिंदूर उत्सव : –
दशहरा के दिन पंडालों में विराजित देवी माँ की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता हैं और इसी दिन सुहागिनें महिलाएं माँ दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती है और पंडाल में मौजूद सभी सुहागिनें महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं देती है इसी उत्सव को सिंदूर उत्सव या फिर सिंदूर खेला कहा जाता हैं और यह उत्सव माँ की विदाई के रूप में मनाया जाता है. इस उत्सव में केवल सुहागिन महिलाओं ही शामिल होती है क्योंकि माँ दुर्गा को सिंदूर अर्पित कर आशीर्वाद लेकर सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं.
How is Sindoor Utsav celebrated | सिंदूर उत्सव कैसे मनाई जाती हैं :
सिंदूर उत्सव की शुरुआत पान के पत्तों से देवी माँ के गालों का स्पर्श कराकर उनके मांग को सिंदूर से भर कर और माथे पर भी सिंदूर का टीका लगाने के बाद माँ को पुष्प, पान व मिष्ठान का भोग लगाकर आशीर्वाद लिया जाता हैं इसके बाद फिर सभी सुहागिन महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और लंबे सुहाग की कामना करती है. बंगाली समुदाय सिंदूर खेलने के साथ ही धुनुची नृत्य करती हैं मान्यता है कि माँ दुर्गा की प्रसन्नता के लिए धुनुची नृत्य किया जाता हैं.
Significance of Sindoor Utsav | सिंदूर उत्सव का महत्व :
सिंदूर उत्सव की शुरुआत करीब 450 वर्ष पहले पश्चिम बंगाल में माँ दुर्गा की प्रतिमा के विसर्जन से पहले सिंदूर खेलकर उत्सव को मनाया गया था और तब से इस परंपरा को हर साल मनाएं जाने लगा वैसे धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्र के समय माँ दुर्गा मायके आती हैं और दस (10) दिन रुकने के पश्चात वापस अपने ससुराल लौट जाती हैं. माँ का अपने मायके में रुकने के उपलक्ष्य में दुर्गा पूजा मनाई जाती हैं और जब दसवें दिन माँ अपने ससुराल कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के पास चली जाती हैं. जैसे कि बेटियों की विदाई में बेटियां को खाने पीने के साथ और भी सामान दिया जाता हैं ठीक वैसे ही देवी माँ को भी एक पोटली दिया जाता हैं जिसमें खाने की वस्तुओं के अलावा श्रृंगार का सामान रखा जाता हैं जिससे कि माँ को कैलाश पर्वत पंहुचने के रास्ते में खाने पीने की कोई समस्या नहीं हो और इस प्रथा को देवी का बोरन कहा जाता हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) सिंदूर उत्सव कब मनाया जाता हैं ?
दशहरे के दिन.
2) सिंदूर उत्सव के दौरान कौन सा नृत्य किया जाता हैं ?
धुनुची नृत्य.
3) सिंदूर उत्सव दुर्गा पूजा में किसका प्रतीक हैं ?
दुर्गा माँ की विदाई.
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