Pitr Paksha | हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक कि अवधि पितृ पक्ष का होता हैं और यह समय पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने का श्रेष्ठ माना जाता है. मान्यता है कि हर साल इसी तिथि पर पितर अपने जीवित परिजनों को आशीर्वाद देने के लिए धरती लोक पर आते हैं तो वहीं इस दौरान जो अपने पितरों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध पूरी श्रद्धा भाव से विधिवत करते हैं तो उनके जीवन में सुख – समृद्धि बनी रहती है. पुराणों में तीन प्रकार के पितर और बारह प्रकार के श्राद्ध का उल्लेख किया गया है तो चलिए जानते है इनको विस्तार से.
जानते हैं पितर कितने प्रकार के होते हैं :
How many types of ancestors | पुराणों के अनुसार मृत्यु के पश्चात दशगात्र और षोडशी सपिण्डन से पहले आत्मा सूक्ष्म शरीर जो कि प्रेत योनि होती हैं को धारण करती हैं जिसके अंदर भौतिक शरीर के समान ही मोह, माया और प्यास होती हैं किंतु सपिण्डन कर्म के बाद यह प्रेत, पितरों में बदल जाया करती हैं सामान्य शब्दों में समझा जाएं तो पितृ पक्ष में पिता पक्ष के तीन पीढ़ियों तक के और माता पक्ष के तीन पीढ़ियों तक के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता है जो पितर कहलाते हैं और शास्त्रों में तीन (3) प्रकार के पितर को बताया गया है.
1) नित्य पितर :
नित्य पितर वो पितर होते हैं जिनको मोक्ष मिल चुका है और यह देवलोक या फिर पितृलोक में वास करती हैं इनकी आत्माएं पुर्नजन्म के बंधन के चक्र से मुक्त रहती हैं एवं साधना और पुण्य के प्रताप से उच्च लोकों में रहा करती हैं.
2) नैमित्तिक पितर :
नैमित्तिक पितर वो पितर होते हैं जो कि अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक में विश्राम करते हुए अपने पुनर्जन्म के इंतजार में रहते हैं.नैमित्तिक पितर के लिए श्राद्ध और तर्पण कर्म किए जाते हैं जिनसे की इनकी आत्मा को शांति मिले और इनका अगला जन्म सुखद रहें.
3) साप्तमिक पितर :
साप्तमिक पितर वो पितर होते हैं जिनका हाल में ही मृत्यु हुई हो और वह अभी तक पितृ लोक में पहुंच नहीं पाए हैं. साप्तमिक पितर के लिए मृत्यु के प्रथम वर्ष में विशेष तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं.
श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं :
पुराणों प्रेत और पितर के निमित्त इनकी आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए जो भी श्रद्धापूर्वक अर्पित किया जाता हैं वही श्राद्ध कहलाता है वैसे तो अलग – अलग पुराणों में अलग – अलग प्रकार के श्राद्ध का उल्लेख किया गया है किंतु भविष्य पुराण में मुख्य रूप से बारह (12) प्रकार के श्राद्ध को बताया गया है.
1) नित्य श्राद्ध :
यह नियमित रूप से किया जाना वाला श्राद्ध हैं यह श्राद्ध कोई भी मनुष्य कुशा, पुष्प, अन्न, जल, दूध और फल से प्रतिदिन करके अपने पितरों को प्रसन्न करता है माना जाता है कि इस श्राद्ध से पितरो को तृप्ति प्राप्त होने के साथ ही घर में सुख और समृद्धि बनी रहती हैं.
2) काम्य श्राद्ध :
काम्य श्राद्ध को किसी विशेष उद्देश्य या विशेष मनोकामनाएं की पूर्ति के लिए किया जाता हैं जैसे कि पुत्र प्राप्ति, किसी के दीर्घायु के लिए और सुख समृद्धि के लिए इसके अलावा पितरों की कृपा पाने के लिए काम्य श्राद्ध को किया जाता हैं.
3) नैमित्तिक श्राद्ध :
नैमित्तिक श्राद्ध विशेष अवसरों या फिर कारणों पर किया जाता हैं जैसे कि मृत्यु की वर्षगांठ, संक्रांति या फिर ग्रहण. इस श्राद्ध में विश्वदेवा का पूजन नहीं किया जाता हैं सिर्फ एक मात्र पिंडदान किया जाता हैं.
4) वृद्धि श्राद्ध :
वृद्धि श्राद्ध मुंडन, विवाह, उपनयन जैसे अवसरों पर किया जाना वाला श्राद्ध हैं जिसे नान्दीमुख भी कहा जाता हैं माना जाता है कि यह श्राद्ध सौभाग्य वृद्धि के लिए भी किया जाता हैं.
5) पार्वण श्राद्ध :
पार्वण श्राद्ध अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति या फिर श्राद्ध पक्ष यानि कि पितृ पक्ष में किया जाता हैं इस श्राद्ध को पारिवारिक श्राद्ध भी कहा जाता हैं क्योंकि इस श्राद्ध में सारे पितरों के लिए तर्पण और पूजा किया जाता हैं. पार्वण श्राद्ध में दो विश्वदेवा की पूजा करने का विधान है.
6) सपिंडन श्राद्ध :
सपिण्डन श्राद्ध मृत्यु के बारहवें (12) दिन तो कुछ स्थानों पर यह श्राद्ध मृत्यु के तेरहवें (13) दिन किया जाता हैं. इस श्राद्ध के द्वारा पितरों का सम्मिलन पूर्वजों की पिंडियों में होता हैं जिससे कि पितरों को मोक्ष मिलने में मदद मिलती हैं. शास्त्रों के अनुसार इस श्राद्ध को स्त्रियां भी कर सकती हैं.
7) गोष्ठी श्राद्ध :
शास्त्रों के अनुसार गोष्ठी श्राद्ध गौशाला में वंशवृद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध होता है जिसको परिवार के सभी लोगों के एकत्र होने पर किया जाता हैं.
8) कर्मागं श्राद्ध :
कर्मागं श्राद्ध किसी विशेष संस्कार के अवसर पर किया जाने वाला श्राद्ध हैं जैसे कि गर्भधान संस्कार, सीमंत संस्कार और पुंसवन संस्कार.
9) दैविक श्राद्ध :
पंचाग के अनुसार सप्तमी तिथियों में हविष्यान्न से देवताओं के लिए किया जाने वाला श्राद्ध दैविक श्राद्ध कहलाता है.
10) पुष्टयर्थ श्राद्ध :
पुष्ट्यर्थ श्राद्ध त्रयोदशी तिथि, मघा नक्षत्र, वर्षा ऋतु एवं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में शरीर के स्वास्थ्य और सुख – समृद्धि के लिए उत्तम माना गया है. शास्त्रों के अनुसार इस श्राद्ध को करने से वंश और कारोबार में वृद्धि होती हैं.
11) त्रिपिंडी श्राद्ध :
त्रिपिंडी श्राद्ध उन पितरों के लिए किया जाने वाला श्राद्ध हैं जिनकी मृत्यु अज्ञात तिथि पर हुआ हो या फिर जिनका श्राद्ध कई सालों से किया नहीं गया हो.त्रिपिंडी श्राद्ध खासकर तीन पीढ़ियों तक के पितरों के लिए किया जाता हैं.
12) शुद्धि श्राद्ध :
शुद्धि श्राद्ध पवित्रता और शुद्धि के लिए तब किया जाता हैं जब किसी अशुभ या फिर अपवित्र स्थिति के पश्चात शुद्धिकरण की आवश्यकता पड़ती हो. पुराणों के अनुसार यह शुद्धि श्राद्ध घर या फिर परिवार के शुद्धिकरण के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) पुराणों में कितने प्रकार के पितर होते हैं ?
तीन पितर.
2) भविष्य पुराण के अनुसार कितने प्रकार के श्राद्ध होते हैं ?
बारह श्राद्ध.
3) मनोकामनाएं को पूर्ण करने वाला कौन सा श्राद्ध हैं ?
काम्य श्राद्ध.
4) किस श्राद्ध को स्त्रियां कर सकती हैं ?
सपिंडन श्राद्ध.
5) मृत्यु को वर्षगांठ में कौन सा श्राद्ध किया जाता हैं ?
नैमित्तिक श्राद्ध.
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