Jitiya Vrat Jimutavahana ki Katha| हिन्दू धर्म में संतान की खुशहाली और दीर्घायु के लिए कई तरह के व्रतों और पर्वों का उल्लेख है इन्हीं व्रतों में से एक हैं जीवित्पुत्रिका व्रत या फिर जितिया व्रत. हिन्दू पंचाग के अनुसार हर साल अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत किया जाता हैं. माना जाता हैं कि जितिया व्रत करने से संतान की उम्र दीर्घायु होने के साथ उसके जीवन में कोई भी मुसीबतें नहीं आती हैं. ये व्रत निर्जला रखा जाता हैं कहीं कहीं शाम को नदी स्नान करके पूजा करने का रिवाज है पूजा के दौरान व्रत कथा पढ़ी या फिर सुनी जाती हैं मान्यता है कि व्रत कथा के बिना पूजा अधूरी रह जाती हैं.
Jitiya Vrat Jimutavahana ki Katha| जीवित्पुत्रिका जितिया व्रत कथा :
बहुत समय पहले की बात है. नैमिषारण्य क्षेत्र में सहस्त्रों ऋषि मुनि बैठकर धर्मचर्चा कर रहें थे. ऋषियों और मुनियों के साथ ही अनेक देवता भी उस सभा में उपस्थित थे. उन ऋषि मुनियों के मध्य सूतजी महाराज उसी प्रकार सुशोभित हो रहे थे जिस प्रकार से तारागणों के मध्य चंद्रमा सुशोभित होता हैं. इस धर्म चर्चा के बीच ही महर्षियों ने संसार के कल्याण हेतु हाथ जोड़कर सूतजी से कहा – महाराज! कलियुग में मनुष्यों की आयु और श्रद्धा दोनों ही काफी कम हो जाएगी, लोग अल्पायु होंगे. महिलाओं की संतानें बचपन में ही मरने लग जायेगी और माता पिता के जीवित रहते ही उनके पुत्र मर जाया करेंगे. एक ऋषि ने हाथ जोड़कर आगे कहा – महाराज! इस भीषण विपत्ति से बचने का कोई तो उपाय होगा. सूतजी बोले – आपने बहुत ही उत्तम प्रश्न पूछा हैं. कलिकाल में जब मनुष्यों की आयु कम होगी और श्रद्धा भक्ति उससे भी कम होगी तब कलिकाल में माता पिता के सामने उनके छोटे छोटे बच्चों और जवान पुत्रों का मरना एक सामान्य बात हो जाएगी. उस समय जो भी माता नियम पूर्वक इस जीवित पुत्रिका व्रत को करेगी उसके सभी पुत्र पूरी आयु तक जीवित रहेंगें. माता पिता के रहते हुए किसी भी पुत्र की मृत्यु नहीं होगी. संसार की भलाई के लिए मैं इस सम्पूर्ण व्रतांत को कहता हूँ.
सूतजी ने कहा – जब द्वापर।युग का।अंत होकर।कलियुग आरंभ हो रहा था उस काल में अपने अपने पुत्रों की मृत्यु से दुखी बहुत सी शोकाकुल स्त्रियों ने आपस में सलाह की वे सभी मिलकर महर्षि गौतम जी के पास गई. उन सभी स्त्रियों ने महर्षि गौतम की वंदना की और कहा – हे प्रभो ! अब कलियुग आ रहा है. कलियुग में लोगों के पुत्र किस तरह पूर्ण आयु तक जीवित रहेंगे और माता पिता के जीवित रहते मृत्यु को प्राप्त नहीं होंगे, इसके लिए कोई उपाय बतलाये कोई ऐसा व्रत,जप,तप अथवा पूजा हो तो हमसे कहिए. गौतम जी ने कहा – मैं आपको एक प्राचीन व्रतांत सुनाता हूँ ,ध्यान पूर्वक सुनिये. महर्षि गौतम बोले “महाभारत का युद्ध समाप्त हो जाने के बाद एक रात्रि में द्रौपदी के पाँच सोते हुए पुत्रों की द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने हत्या कर दी थी. द्रौपदी सहित पांचों पांडव बहुत ही अधिक दुखी हुए .कुछ समय बाद अपनी सखियों को साथ में लेकर द्रौपदी महर्षि धौम्य के पास गई. द्रौपदी ने महर्षि धौम्य से कहा – हे विप्रवर! कौन सा उपाय करने से बच्चे दीर्घायु हो सकते हैं, कृपा करके वह उपाय हमको बतलाये.
महर्षि धौम्य बोले – सतयुग में हमेशा सत्य बोलने वाला और सभी के साथ समान व्यवहार करने वाला जीमूतवाहन नामक एक राजा था हमेशा सत्य आचरण करने वाला राजा जीमूतवाहन बहुत ही साहसी और रहमदिल भी था. एक बार राजा जीमूतवाहन अपनी रानी सहित अपने ससुराल गया. वह एक रात ससुराल में सो रहा था कि उसे एक स्त्री के बिलख बिलखकर रोने की आवाज सुनाई दी. वह अपने पुत्र के लिए विलाप कर रही थी वह बूढ़ी स्त्री बुरी तरह रोते हुए बार बार एक ही बात कर रही थी कि मुझ बुढ़िया के जीवित रहते मेरा युवा पुत्र मारा जाएगा! हाय मैं क्या करूँ.
उस बुढ़िया का विलाप सुनकर राजा जीमूतवाहन को बहुत दुःख हुआ राजा ने बुढ़िया के पास जाकर उसे ढाढ़स बँधाया और रोने का कारण पूछा. बुढ़िया ने रोते हुए कहा – “गांव में प्रतिदिन एक गरुड़ आता है और एक युवक को खा जाता हैं, आज मेरे पुत्र की बारी है अब मेरा पुत्र उस स्थान पर जाएगा जहां गरुड़ आता है वो मेरे पुत्र को खा जाएगा, मेरे जीते जी मेरा बेटा मर जायेगा “. यह कहकर बुढ़िया जोर जोर से रोने लगी. राजा जीमूतवाहन ने कहा – माता ! तुम रोओ मत आज मैं तुम्हारे पुत्र के स्थान पर वहां चला जाता हैं इस प्रकार गुरुड़ मुझे खा जाएगा और तुम्हारा पुत्र बच जाएगा. इतना कहकर राजा उस स्थान पर जाकर लेट गया जहां गरुड़ प्रत्येक रात्रि को आता था.
तय समय पर पक्षीराज गरुड़ आएं और चोंच से नोंच नोंच कर उसका मांस खाने लगा जब गरुड़ ने उसका सम्पूर्ण बायां अंग खा लिया तब जीमूतवाहन ने करवट बदलकर अपना दाहिना अंग गरूड़ के सम्मुख कर दिया ये देखकर पक्षीराज गरुड़ बड़े आश्चर्य हुआ. गरुड़ के मांस खाते समय जीमूतवाहन न तो रोया न ही चिल्लाया था और न ही उसने बचने की कोई चेष्टा की थी. आधा शरीर खाया जाने के बाद भी राजा अभी तक जिंदा था गरुड़जी को बड़ा आश्चर्य हुआ. गरुड़जी सोचने लगे कि यह आदमी कोई साधारण मनुष्य नहीं या तो देवता हैं या फिर कोई महान ऋषि होना चाहिए.
गरुड़जी ने राजा से कहा – ” तुम मनुष्य तो नहीं जान पड़ते ! क्या कोई देवता हो,तुम कौन हो ? अपना नाम, कुल और निवास स्थान आदि बतलाओ “. पीड़ा से व्याकुल राजा जीमूतवाहन ने कहा – पक्षीराज ! आपके ये प्रश्न व्यर्थ है ,आप अपनी इच्छानुसार मेरा मांस खाइए और अपनी भूख मिटाइए .यह सुनकर गरुड़जी को और भी अधिक आश्चर्य हुआ . गरुड़जी ने अपने चमत्कार से राजा के शरीर को पूरा कर दिया अब जीमूतवाहन पहले से भी अधिक स्वस्थ और सुंदर युवक बन गया था. अब गरुड़जी ने आदरपूर्वक राजा से उसका परिचय एक बार फिर पूछा.
राजा जीमूतवाहन बोला – ” है गरुड़देव! मेरा नाम जीमूतवाहन है मेरे पिताजी का नाम महाराज शालिवाहन और माता का नाम महारानी शैव्या हैं हम सूर्यवंशी क्षत्रिय है ” यह सुनकर गरुड़जी ने कहा – है राजन ! मैं तुम्हारी दयालुता और त्याग की भावना देखकर बहुत प्रसन्न हूँ तुम मुझसे कोई भी मनचाहा वरदान मांग लो. राजा ने कहा – है पक्षिराज! यदि आप मुझे कोई वरदान देना चाहते है तो यह वरदान दीजिए कि आपने अभी तक जितने भी मनुष्यों को खाया है, वे सभी जीवित हो जाएं. अब आगे से आप यहां की युवकों को न खायें यहां उत्पन्न होने वाले सभी बालक लंबी आयु को प्राप्त करें. गरुड़जी ने तथास्तु कहा और उड़कर नाग लोक चले गए. नागलोक से अमृत लाकर उन्होंने खाए हुए मनुष्यों की हडिडयों के ढेर पर डाल दिया जिससे वे सभी मनुष्य जीवित हो गए.
राजा जीमूतवाहन अभी भी वही खड़े थे. गरुड़जी ने राजा से कहा – ” मैं आज संसार के कल्याण हेतु एक और वरदान दे रहा हूँ, आजअश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी है यह अष्टमी सप्तमी रहित और अत्यंत शुभ है. आज तुमने यहां की प्रज्ञा को जीवन दान दिया है और मेरे द्वारा खाए गए हजारों युवकों को पुनर्जीवित कराया है आज से यह तिथि अत्यंत पवित्र और ब्रह्मभाव से युक्त हो गई हैं. मैं यह अमृत तीनों लोकों द्वारा पूजित भगवती दुर्गाजी से लाया हूँ. भगवती दुर्गाजी के द्वारा दिए गए अमृत द्वारा ही इन सभी मनुष्यों को जीवन दान मिला है यही कारण है कि मातेश्वरी दुर्गाजी का एकं नाम जीवितपुत्रिका भी है. गरूड़जी ने आगे कहा – राजन ! आज के बाद इस तिथि को जो स्त्रियां जीवितपुत्रिका माता के रूप में दुर्गाजी की तथा कुशा नामक घास से तुम्हारी आकृति बनाकर दुर्गाजी के साथ साथ तुम्हारी भी पूजा करेगी उसका सौभाग्य और वंश निरन्तर बढ़ता रहेगा इस बात में जरा भी संशय नहीं “” अपनी बात को स्पष्ट करते हुए गरुड़जी ने आगे कहा – है राजा जीमूतवाहन! जिस दिन उदय तिथि अष्टमी हो अर्थात सप्तमी से रहित अष्टमी को ही ये व्रत करना चाहिए. सप्तमी युक्त अष्टमी को यह व्रत करने से इसका कोई फल नहीं मिलेगा अतः शुद्व अष्टमी को यह व्रत करके अगले दिन नवमी तिथि में ही इसका परायण करना चाहिए. यदि इन बातों का ध्यान न रखा जाए तो व्रत का प्रभाव तो नष्ट हो जाएगा ,करने वाली के सौभाग्य पर भी घातक असर पड़ेगा.
जीमूतवाहन को यह वरदान देकर गरुड़जी भगवान विष्णु के पास बैकुंठ चले गए. राजा जीमूतवाहन पहले तो अपने ससुराल आए और वहाँ से विदा लेकर अपनी पत्नी सहित अपने नगर में आ गए. महर्षि धौम्य ने द्रौपदी को यह सम्पूर्ण व्रतांत सुनाने के पश्चात कहा – हे देवी! मैंने यह अतिशय दुर्लभ वृत्तांत तुमको सुनाया है. तुम भी मेरे द्वारा वर्णित विधि विधान से पूरी भक्ति भावना के साथ यह व्रत करो. इस व्रत में तुम दुर्गाजी तथा कुशा घास से बनाई गई राजा जीमूतवाहन की पूजा करो और नवमी को ही व्रत खोलों तुम्हारी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होगी.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
जीमूतवाहन और गरुड़देव की कथा किसने किसको सुनाया ?
महर्षि धौम्य ने द्रौपदी को
मातेश्वरी दुर्गाजी का दूसरा क्या नाम है?
जीवितपुत्रिका
जितिया का व्रत किस तिथि में करना चाहिए ?
अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की शुद्व अष्टमी तिथि, अर्थात सप्तमी से रहित अष्टमी.
मातेश्वरी दुर्गाजी के साथ कुशा घास से किसकी आकृति बनाकर पूजा करनी चाहिए ?
राजा जीमूतवाहन.
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