Maa Kalratri | मां कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती हैं. मां कालरात्रि के नाम का अर्थ जिसमें काल यानी कि मृत्यु और रात्रि यानी कि रात है. इस देवी मां के नाम का शाब्दिक अर्थ है अंधेरे को खत्म करने वाली है. मान्यता है कि मां कालरात्रि को देवी पार्वती का समान माना जाता है जिसकी पूजा सात्विक ही नहीं बल्कि तामसिक पूजा भी की जाती हैं इसलिए इस दिन का नवरात्र के सभी दिनों से अधिक महत्व रहता है. कालरात्रि मां को सबसे भयंकर देवी कहा जाता हैं लेकिन भयंकर होने के बाद भी कालरात्रि माँ बहुत ही ममताप्रिय, कोमल हृदय वाली होती हैं. मान्यता है कि सप्तमी की रात्रि को सिद्धियों की रात कहा जाता हैं.
The mystery of the origin of Maa Kalratri | मां कालरात्रि की उत्पत्ति का रहस्य :
पौराणिक कथानुसार माँ कालरात्रि की उत्पत्ति दैत्य शुम्भ निशुम्भ और रक्तबीज का वध करने के लिए हुआ था. मान्यता है कि दैत्य शुम्भ निशुम्भ और रक्तबीज के अत्याचार से तीनों लोकों में हाहाकार मचा हुआ था इस बात से दुखी सारे देवतागण भगवान शंकर के पास गए और उनके रक्षा करने की प्रार्थना किया तब भगवान शंकर ने माता पार्वती से इन दैत्यों के वध करके अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा. माता पार्वती ने भगवान शंकर की बात मानकर दुर्गा का रूप धारण करके शुम्भ निशुम्भ दैत्यों के वध किया किन्तु जैसे ही दैत्य रक्तबीज को माँ दुर्गा को मारा तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हुआ इसे देखकर तब दुर्गा माँ ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया और जब दैत्य रक्तबीज का माँ दुर्गा ने वध किया तब उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को माँ कालरात्रि ने धरती पर गिरने से पहले ही उसे अपने मुंह में भर लिया करती और फिर इसी तरह से माँ दुर्गा ने सभी का गला काटते हुए रक्तबीज का भी वध किया.
Maa Kalratri | आइए जानते हैं माँ कालरात्रि के स्वरूप को :
देवी भागवत पुराण के अनुसार माँ कालरात्रि का शरीर अंधकार कें समान काला है और इनके श्वास से आग निकलती वह अपने गले में विधुत की माला को धारण किये हुए हैं उनके बाल खुले हुए हैं साथ ही माँ के एक हाथ में सिर हैं जिससे रक्त टपक रहा इनके तीन नेत्र हैं जो कि ब्रह्मांड के समान गोल हैं और इनकी आंखों से अग्नि वर्षा होती हैं. माँ कालरात्रि की सवारी गर्दभ यानि कि गधा हैं. इनको आसुरी शक्तियों का विनाश करने वाली कहा जाता हैं मान्यता है कि माँ कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड के सारे सिद्धियों के द्वार खुल जाया करते हैं और सारी असुरी शक्तियां इनके केवल नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर हो जाते है इसलिए जिस व्यक्ति के ऊपर माँ कालरात्रि कीकृपा होती हैं वह हर तरह के भय से मुक्त हो जाता हैं.
Maa Kalratri | नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि को नेत्र दान क्यों किए जाते हैं?
नवरात्रि की सप्तमी में साधक का मन सहस्त्रार चक्र में अवस्थित होता हैं कुंडलिनी जागरण के लिए जो साधक साधना में लगे होते हैं यह आज सहस्त्रसार चक्र का भेदन किया करते हैं. नवरात्रि का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने के लिए बहुत विशेष महत्वपूर्ण होता हैं क्योकि कालरात्रि की पूजा देर रात होती हैं जो निशा पूजा कहलाती हैं ये तांत्रिक पूजा की शुरुआत रात बारह बजे से होती हैं इसमें कई जगह पशु बलि भी दी जाती हैं. यही कारण है कि सप्तमी की रात्रि “सिद्धियों” की रात कही जाती हैं इस दिन आदिशक्ति की आंख खुलती है और भक्तों के लिए माँ का द्वार खुलता है इसी कारण तामसिक क्रिया और तांत्रिक साधना में इस दिन माँ कालरात्रि को नेत्र दान किए जाते हैं.
Maa Kalratri | आइए अब जानते हैं माँ कालरात्रि की पूजा का महत्व :
माँ कालरात्रि की पूजा जीवन में आने वाली संकटों से रक्षा किया करती हैं. शत्रु और विरोधियों को नियंत्रित करने के लिए माँ कालरात्रि की आराधना अत्यंत शुभ माना गया है. इनकी पूजा उपासना से भय, दुर्घटना, तनाव, रोगों और बुरी शक्तियों का नाश होने के साथ ही नकारात्मक ऊर्जा का असर नहीं होता हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि नाम ग्रह को नियंत्रित करने के लिए इनकी पूजा अलौकिक परिणाम दिया करती हैं मान्यता है कि माँ कालरात्रि भक्त के सर्वोच्च चक्र सहस्त्रार को नियंत्रित करती हैं और यह चक्र भक्त को अत्यंत सात्विक बनाता है और देवत्व तक ले जाता हैं इस चक्र का कोई मंत्र नही होता हैं. माँ कालरात्रि का सिर्फ नाम और स्मरण से भी भूत, प्रेत, राक्षस, दानव सारे पैशाचिक शक्तियां भाग जाया करती हैं कहते हैं की माँ कालरात्रि की आराधना और पूजा से ऊपरी बाधाओं समेत दूसरे के द्वारा किए गए तामसिक प्रयोगों से भी मुक्ति मिल जाती हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
नवरात्रि के सातवें दिन किस माता की पूजा आराधना की जाती हैं ?
माँ कालरात्रि.
माँ कालरात्रि की उत्पत्ति किन दैत्यों का वध के लिए हुआ था ?
शुंभ निशुंभ और रक्तबीज .
नवरात्रि का सातवां दिन किस क्रियाओं की साधना की जाती हैं ?
तांत्रिक क्रियाओं की.
नवरात्र का सातवां दिन कौन सी रात्रि कहलाती हैं ?
सिद्धियों की रात.
नवरात्र के किस दिन आदिशक्ति की आँख खुलती है ?
सातवां दिन.
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