Lord Vishnu and Narad Muni | भगवत गीता के अनुसार नारद मुनि अपने पिछले में एक गंधर्व थे और उनको धरती पर जन्म लेने का श्राप मिला था जिससे कि उनका जन्म एक नौकर के पुत्र में हुआ था जो संत और पुजारियों के लिए कार्य किया करते थे.पुजारियों की सेवा नारद जी ने बहुत ही समर्पण के साथ किया जिसे कि पुजारियों ने प्रसन्न होकर उनको भगवान विष्णु का प्रसाद अर्पित किया साथ ही उनको आशीर्वाद भी दिया. स्वयं नारद जी भी पुजारियों द्वारा सुनाई गई भगवान विष्णु की कहानियों में डूबे रहते और जब उनकी माता जी का निधन हुआ तब वह आत्मज्ञान की तलाश में जंगल में घूमने लगे. एक बार नारद जी भगवान विष्णु के ध्यान में एक वृक्ष के नीचे बैठे तब भगवान विष्णु ने उनके सामने प्रकट होकर दर्शन दिए माना जाता है कि तब से नारद जी ने अपना जीवन भगवान विष्णु की भक्ति में व्यतीत किए और नारद की मृत्यु के बाद भगवान उन्हें नारद के आध्यात्मिक रूप का आशीर्वाद दिया तब से नारदजी भगवान विष्णु के परम भक्त हो गए और सारे ब्रह्मांड में कहीं भी घूमते रहते और हर स्थिति में किसी भी अवस्था में हो नारायण का नाम जाप ना नहीं भूलते किंतु एक ऐसी पौराणिक कथा जिसके अनुसार एक बार भगवान विष्णु को अपने परम् भक्त देवर्षि नारद जी के श्राप का भागीदार होना पड़ा.
Lord Vishnu and Narad Muni | भगवान विष्णु को नारद मुनि ने क्यों दिया श्राप :
Why did Narad Muni curse Lord Vishnu | पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवर्षि नारद जी को इस बात का घमंड हो गया की उनकी तपस्या और ब्रह्मचर्य को कामदेव भी भंग नही कर सकें यह बात देवर्षि नारद ने भगवान शिव को बताई किंतु भगवान शिव ने कहा कि इस बात को भगवान श्री विष्णु के सामने अभिमान के साथ मत कहना पर भगवान शिव के मना करने के बावजूद भी नारद मुनि ने भगवान विष्णु को यह बात बता दिया और भगवान विष्णु नारद जी के बातों को सुनकर समझ गए कि नारद मुनि में अहंकार आ गया है और इसे दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने योजना बनाई.
देवर्षि नारद जी भगवान विष्णु को प्रणाम करके आगे बढ़ गए तो उनको रास्ते में एक सुंदर भवन दिखाई दिया और जहां पर वहां की राजकुमारी विश्वमोहिनी का स्वयंवर का आयोजन हो रहा था. नारद जी उस स्थान पर जब पहुंचे तो वहां की राजकुमारी को देखकर वह बहुत मोहित हो गया लेकिन वो नहीं समझ पाएं की यह सब भगवान विष्णु की माया के कारण हो रहा है. राजकुमारी का सुंदर रूप नारद मुनि की तपस्या को भंग कर चुका था इसी कारण से नारद मुनि ने इस स्वयंवर में हिस्सा लेने का मन बना लिया और राजकुमार को पाने की इच्छा में वह अपने स्वामी भगवान विष्णु के शरण में पहुंचे और उन्हीं के समान सुंदर रूप पाने की इच्छा उनसे जाहिर की तब नारद जी की इच्छा के अनुसार भगवान विष्णु ने उन्हें अपना एक रूप दे दिया लेकिन नारद मुनि नहीं जानते थे कि भगवान विष्णु का एक रूप वानर भी है जो की हरिरूप से प्रचलित हैं. नारद मुनि हरि रूप लेकर उस स्वयंवर में पहुंच गए उन्हें अपने आप पर इतना घमंड था कि उन्होंने एक बार भी अपना चेहरा नहीं देखा और उन्हें इस बात का भी विश्वास था कि उनके हरि रूप को देखकर राजकुमारी विश्व मोहिनी उनके गले में ही वरमाला डालेगी किंतु ऐसा नहीं हुआ राजकुमारी विश्व मोहिनी ने उनको छोड़कर भगवान विष्णु के गले में माला डाल दी.
जब नारद जी के रूप को देखकर उनकी हंसी उड़ाई गई तो वे तुरंत सरोवर में जाकर अपना चेहरा देखा तब उनको भगवान विष्णु पर बहुत ही क्रोध आया और क्रोध के वश में आकर नारद जी ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि आपकी वजह से मेरा मजाक बना इसलिए मैं आपको श्राप देता हूं कि आप धरती पर मनुष्य के रूप में जन्म लेंगे और आपके कारण से ही मुझे अपने प्रिय स्त्री से दूर होना पड़ा इसलिए आप भी स्त्री वियोग को सहेंगे और व्याकुल होकर धरती पर भटकेंगे तब उस समय आपकी सहायता वानर ही करेंगे लेकिन जब भगवान की माया का प्रभाव दूर हुआ तब नारद जी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने तत्काल ही भगवान विष्णु से क्षमा भी मांगी. मान्यता है कि देवर्षि नारद के तीनों ही श्राप फलीभूत हुए जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु को राम के रूप में धरती पर अवतार लेना पड़ा, माता सीता का वियोग सहना पड़ा और उनको वानरों की भी सहायता लेनी पड़ी.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) नारद मुनि पिछले जन्म में क्या थे ?
गंधर्व
2) नारद मुनि ने किनको श्राप दिया था ?
भगवान विष्णु
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.