Narak Chaturdashi | नरक चतुर्दशी एक हिन्दू त्यौहार हैं जो कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. नरक चतुर्दशी दीवाली के एक दिन पहले और धनतेरस के एक दिन बाद मनाई जाती हैं. इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विधान है इस दिन शाम के समय दीपक जलाएं जाते है और चारों ओर रोशनी की जाती हैं कहा जाता हैं कि नरक चतुर्दशी की पूजाअकाल मृत्यु से मुक्ति और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किया जाता है. एक धार्मिक मान्यता के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चौदस को माता अंजना के गर्भ से हनुमानजी का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन हनुमानजी की भक्ति दुखों और कष्टों से छुटकारा पाने के लिए की जाती हैं.
नरक चतुर्दशी को नरक चौदस, छोटी दीवाली, रूप चौदस ,रूप चतुर्दशी और नर्क निवारण चतुर्दशी जैसे नामों से भी जाना जाता हैं और इन नामों के पीछे पौराणिक कथाएं प्रचलित है कि नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi Story) को इन नामों से क्यूं जाना जाता हैं.
Mythological story behind calling Narak Chaturdashi as Roop Chaudas| नरक चतुर्दशी को रूप चौदस कहने की पौराणिक कथा :
कई वर्षों पहले एक हिरण्यगभ नाम का राजा था जो कुछ सालों तक राज पाठ संभलने के बाद उसे छोड़कर तप में अपना जीवन बीतने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप उसने अपना राजपाठ छोड़कर वन में जाकर कई सालों तक घोर तपस्या किया जिसके कारण उसके शरीर पर कीड़े लग गए मानों की शरीर गल गया हो. हिरण्यगभ अपनी शरीर की ऐसा दुर्दशा से बहुत दुःखी हुआ तब उन्होंने अपनी इस व्यथा को नारद मुनि से कहा. उनकी व्यथा को सुनकर तब नारद मुनि ने राजा हिरण्यगभ से कहा कि आप योग साधना के समय अपनी शरीर की स्थिति सही नहीं रख पाते है इसी वजह से इस प्रकार का परिणाम सामने. आया है इस पर हिरण्यगभ ने इस का निवारण को जानना चाहा कि तब नारद मुनि ने इस कष्ट का निवारण बताते हुए कहा कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शरीर पर तेल और उबटन लगाकर सूर्योदय से पहले स्नान करके रूप के देवता भगवान श्री कृष्ण की श्रद्धा पूर्वक पूजा करके आरती करें, इससे आपको फिर अपना सौंदर्य प्राप्त हो जाएगा.
राजा हिरण्यगभ ने कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सूर्योदय से पहले तेल और उबटन लगाकर स्नान किया और फिर भगवान श्रीकृष्ण की भक्तिभाव से पूजा अर्चना किया जिसके कारण उनको शरीर पूर्ण स्वस्थ होने के साथ ही सौंदर्य को भी प्राप्त किया. इस तरह से इस दिन को रूप चतुर्दशी या फिर रूप चौदस (Roop Chaudas kya hota hai) कहा जाता हैं.
Mythology of calling Narak Chaturdashi as Narak Nivaran |नरक चतुर्दशी को नरक निवारण कहने की पौराणिक कथा :
बहुत साल पहले एक प्रतापी रन्तिदेव नाम का राजा था जोकि स्वभाव से बहुत ही शांत और पुण्यात्मा थे जिन्होंने कभी भी अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था किंतु मृत्यु के समय उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए, यमदूत को अपने सामने देखकर राजा आश्चर्य में पर गए तब उन्होंने यमदूत से कहा कि मैंने कभी भी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर भी आप लोग मुझे लेने आए हैं क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है मुझे नरक जाना पड़ेगा जबकि मैंने कोई अधर्म कार्य या फिर कोई अपराध नहीं किया है कृपा करके आप बताएं कि मेरा क्या अपराध हैं जिसके कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है. धर्मात्मा राजा के विनय अनुनय वाणी सुनकर यमदूत ने बताया कि हे राजन! एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है. दूतों की इस प्रकार से कहने पर राजा ने यमदूतों से प्रार्थना करते हुए कहा कि मैं आपसे विनती करता हूँ कि मुझे एक साल का और समय दे दो.
राजा को यमदूतों ने एक साल का समय दे दिया. राजा अपनी इस समस्या को लेकर ऋषियों के पास गए और उन्होंने अपनी सब वृतान्त उनको बताकर पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति को कोई उपाय हैं तो बता दें इस पर ऋषि ने कहा कि हे राजन! आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करके ब्राह्मणों को भोजन करवा के पूर्व में उनके प्रति हुए अपराधों के लिए क्षमा की प्रार्थना करें. राजा रन्तिदेव ने बिल्कुल वैसा ही किया जैसा कि ऋषियों ने उनको बताया था. इस तरह से राजा पाप मुक्त हुए और मृत्यु होने पर विष्णु लोक में स्थान को प्राप्त किया.उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति के लिए भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत की परंपरा शुरू हुआ इसलिए इस दिन को नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
नरक चतुर्दशी के दिन किस भगवान की पूजा का विधान ?
मृत्यु के देवता यमराज और भगवान श्रीकृष्ण.
नरक चतुर्दशी को और किस किस नाम से प्रचलित हैं ?
रूप चौदस और नरक निवारण.
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