Apara Ekadashi Vrat Katha | हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है पंचांग के अनुसार साल में 24 या फिर 25 एकादशी मनाई जाती है जिनमें से एक है अपरा एकादशी जो की ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष के एकादशी तिथि को मनाई जाती है और यह एकादशी भी भगवान श्री विष्णु को समर्पित है. मान्यता है की अपरा एकादशी का व्रत को रखने से पापों का अंत होने के साथ ही इस व्रत से मनुष्य को कई तरह के रोग दोष और आर्थिक परेशानियों से भी छुटकारा मिलती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार एकादशी की विधि भगवान विष्णु को बहुत प्रिय होती है और इस दिन विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है एकादशी के दिन एकादशी व्रत कथा को जरूर पढ़ना चाहिए अगर व्रत कथा पढ़ने में असमर्थ है तो अन्य माध्यम से व्रत कथा को जरूर सुने जिससे कि आपको व्रत का पूरा फल मिल सकें.
Apara Ekadashi Vrat Katha | अपरा एकादशी व्रत कथा :
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचे और कहने लगे की हे भगवान ! ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है और उसका माहात्म्य क्या है कृपा करके आप मुझसे विस्तार से कहिए. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि हे धर्मराज ! यह एकादशी अचला और अपरा दो नामों से जानी जाती है पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है क्योंकि यह अपार धन देने वाली है जो कोई व्यक्ति इस व्रत को करता है वह संसार में प्रसिद्ध हो जाता है. अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या भूत योनि दूसरों की निंदा आदि सब पाप दूर हो जाते हैं. जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए तो वे नरक गामी होते हैं किंतु अपरा एकादशी की व्रत करने से वह भी स्वर्ग को प्राप्त कर लेते हैं, जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या फिर गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है.
श्री कृष्ण अपरा एकादशी के महत्व को आगे बताते हुए कहा हे कुंती पुत्र ! अपरा एकादशी का व्रत पाप रूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है, पाप रूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि, पाप रूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को करने के लिए सिंह के समान है इसलिए मनुष्य को पापों से डरते हुए इस अपरा एकादशी व्रत को जरूर करना चाहिए क्योंकि इस व्रत और भगवान का पूजन करने से मनुष्य सभी पापों से छूटकर स्वर्ग को प्राप्त करता हैं तो धर्मराज युधिष्ठिर अपरा एकादशी व्रत कथा को मैं तुमसे कह रहा हूं तुम ध्यानपूर्वक इस व्रत कथा को सुनो.
पौराणिक कथा के अनुसार महिद्वाज नाम का एक राजा था जो बहुत ही धर्मपरायण और दयालु था किंतु उनका छोटा भाई वज्रध्वज उनके एकदम विपरीत स्वभाव का था और उसे अपने भाई का व्यवहार बिल्कुल भी पसंद नहीं था वह हमेशा ही इस फिराक में रहता था कि कैसे भी करके वो राज्य को हथिया लें यही कारण वह हमेशा अपने भाई को मारने और अपनी शक्ति और राज्य को प्राप्त करने के अवसर की तलाश में रहता था और एक दिन उसको अवसर मिल ही गया और वह मौका पाकर अपने भाई को मार दिया और पीपल के वृक्ष नीचे अपने भाई को दफना दिया. किंतु अकाल मृत्यु के कारण महिद्वाज मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाया इस कारण से वह वृक्ष पर ही एक आत्मा के रूप में रहता था और वृक्ष से गुजरने वाले हर व्यक्ति को डराता और परेशान करता था.
इस तरह कुछ समय गुजरने के बाद एक दिन अचानक धौम्य ऋषि उस रास्ते से गुजर रहे थे तो उन्होंने एक आत्मा की उपस्थिति को महसूस किया और अपने तपोबल और दिव्य शक्तियों के साथ से उसकी अतीत को जान लिया और उनकी स्थिति के पीछे का कारण जाना. तब धौम्य ऋषि ने महिद्वाज की आत्मा को उतार कर और उनको मोक्ष का मार्ग भी बताया. मोक्ष प्राप्त करने के लिए और आत्मा की सहायता करने के लिए ऋषि धौम्य ने स्वयं अपरा एकादशी व्रत का पालन किया और सभी गुणों को महिद्वाज को प्रदान किया. जिसके फलस्वरुप और भगवान विष्णु के व्रत और आशीर्वाद के प्रभाव से महिद्वाज की आत्मा मुक्त हुई और उनको मोक्ष की प्राप्ति भी हुई उसने ऋषि धौम्य को धन्यवाद देते हुए दिव्य देह धारण करके पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चले गए.
हे धर्मराज युधिष्ठिर ! यह अपरा एकादशी कथा मैंने लोकहित के लिए तुमसे कही है इसलिए इस कथा को पढ़ने या फिर सुनने से व्यक्ति सभी पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त करने के साथ ही स्वर्ग (heaven) को प्राप्त करता है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
पंचाग के अनुसार अपरा एकादशी कब मनाई जाती है ?
ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को.
अपरा एकादशी व्रत कथा को किसने किसको सुनाया है ?
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को.
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