Secrets of Durga Saptashati | दुर्गा सप्तशती को माँ भगवती की आराधना और उपासना करने के लिए सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ माना जाता है जिससे कई भक्तों ने माँ भगवती को प्रसन्न करके अपने मनोरथ सिद्ध किये हैं. दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के नियमित पाठ करने से सभी प्रकार के मनोकामनाओं सिद्ध होने के साथ ही माँ भगवती की कृपा और मुक्ति भी आसानी से प्राप्त हो जाती हैं और इसके अलावा माँ अपने भक्तों को असीम शक्ति देती हैं जो भक्तों के सारे पाप, दुःख और दरिद्रता को नाश करती हैं यही कारण है कि माँ भगवती की उपासना जरूर करनी चाहिए क्योंकि इससे सुख, समृद्धि और पुण्य की प्राप्ति के साथ ही मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
Secrets of Durga Saptashati | जानते हैं दुर्गा सप्तशती से जुड़े रहस्यों को विस्तार से :
आइए जान लेते हैं कि दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ को किसने लिखा था (Who wrote Durga Saptshati) :
दुर्गा सप्तशती 18 प्रमुख पुराणों में से एक हैं जिसकी उत्पत्ति मार्कण्डेय पुराण से हुई है जिसकी रचना ऋषि मार्कण्डेय की थी इसमें 700 श्लोक होने के कारण ही इसे “दुर्गा सप्तशती” कहा जाता हैं मान्यता है कि यह मार्कण्डेय और ब्रह्माजी के बीच देवी की महिमा पर हुई ज्ञान चर्चा है.मार्कण्डेय पुराण के इस अंश को निकालकर अलग ग्रन्थ बना दिया गया है जिसे अब वेदव्यास के मार्कण्डेय पुराण से लिया गया है यही कारण है कि कुछ लोग वेदव्यास को दुर्गा सप्तशती का लेखक मानते हैं.
आइए जानते हैं कि दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ को कितने भागों में बांटा गया था (Durga Saptashati Granth was divided into how many parts):
दुर्गा सप्तशती को तीन भागों – प्रथम चरित्र (महाकाली) मध्यम चरित्र (महालक्ष्मी) और उत्तम चरित्र (महासरस्वती) में बांटा गया है.
हर चरित्र में सात देवियों के स्तोत्र में वर्णन मिलता है :
प्रथम चरित्र में काली, तारा, छिन्नमस्ता, सुमिखी, भुवनेश्वरी, बाला और कुब्जा मध्यम चरित्र में लक्ष्मी, ललिता, काली, दुर्गा, गायत्री, अरुन्धती व सरस्वती और उत्तम चरित्र में ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही व चामुंडा ( शिवा). इन तीन चरित्रों के द्वारा कुल 21 देवियों के महात्म्य और प्रयोग को बताये गये हैं.
सप्तशती पाठ की महाशक्तियां नन्दा, शाकम्भरी और भीमा को कहा जाता है तो वहीं दुर्गा, रक्तदन्तिका और भ्रामरी को सप्तशती स्तोत्र का बीज कहा गया है. तंत्र में शक्ति के तीन रूप प्रतिमा, यंत्र और बीजाक्षर माने जाते हैं और शक्ति की साधना के लिए इन तीन रूपों का संयोग होना आवश्यक माना गया है.
प्रथम चरित्र महाकाली का बीजाक्षर रूप है ॐ एं .मध्यम चरित्र महालक्ष्मी का बीजाक्षर रूप ह्रीं हैं और उत्तम चरित्र महासरस्वती का बीजाक्षर रूप क्लीं हैं जबकि तांत्रिक साधनाओं में ऐं मंत्र सरस्वती का, ह्रीं मंत्र महालक्ष्मी का और क्लीं महाकाली बीज हैं. तीनो बीजाक्षर ऐं ह्रीं क्लीं किसी भी तंत्र साधना के लिए आधार और आवश्यक माना गया है.
तंत्र को मुख्य रूप से वेदों से लिया गया है जिसमें ऋग्वेद (rigved) से शाक्त (shaakt) तंत्र, यजुर्वेद (Yajurved) से शैव (shaiv) तंत्र और सामदेव (saamdev) से वैष्णव (vaishnav) तंत्र का उत्पत्ति हुआ है और यह तीनों वेद तीनों महाशक्तियों के स्वरूप हैं और यह तीनों तंत्र तीनों दवियों के स्वरूप को प्रकट करता है.
दुर्गा सप्तशती में कितने अध्याय हैं (How many chapters are there in Durga Saptashati) :
दुर्गा सप्तशती में कुल तेरह (13) अध्याय हैं जिनको तीन चरित्रों (हिस्सों) में बांटा गया हैं. प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र और उत्तम चरित्र. जिसके प्रथम चरित्र में मधु कैटभ की वध कथा है, मध्यम चरित्र में सेना सहित महिषासुर वध की कथा है और उत्तम चरित्र में शुम्भ निशुम्भ वध और सूरथ एवं वैश्य को मिले देवी के वरदान की कथा है. प्रथम चरित्र में केवल पहला अध्याय, मध्यम चरित्र में दूसरा अध्याय, तीसरा अध्याय चौथा अध्याय और उत्तम चरित्र में बाकी सारे अध्याय को रखा गया है.
आइए जानते हैं किस अध्याय में क्या लिखा गया है :
दुर्गा सप्तशती हिंदुओं का एक धार्मिक ग्रन्थ हैं जिसमें महिषासुर नाम के राक्षस के ऊपर देवी दुर्गा की विजय महिमा का उल्लेख है. इसमें और भी अलग राक्षसों के वध का वर्णन हैं. तो चलिए जान लेते हैं किस अध्याय में क्या लिखा है :
01) पहला अध्याय – मधु कैटभ वध.
02) दूसरा अध्याय – महिषासुर सेना का वध.
03) तीसरा अध्याय – महिषासुर का वध.
04) चौथा अध्याय – इंद्र देवता द्वारा देवी की स्तुति.
05) पांचवा अध्याय – अंबिका के रूप की प्रशंसा.
06) छठा अध्याय – धूम्रलोचन वध.
07) सातवां अध्याय – चंड और मुंड का वध.
08) आठवां अध्याय – रक्तबीज वध.
09) नवां अध्याय – निशुम्भ वध.
10) दसवां अध्याय – शुम्भ वध.
11) ग्यारहवां अध्याय – देवताओं द्वारा देवी दुर्गा की स्तुति.
12) बारहवां अध्याय – देवी चरित्रों के पाठ का माहात्म्य.
13) तेरहवां अध्याय – सूरथ और वैश्य को देवी दुर्गा का वरदान.
आइए जानते हैं दुर्गा सप्तशती के अध्यायों का पाठ कैसे करना चाहिए :
नवरात्र में भक्त दुर्गा सप्तशती के तेरह (13) अध्याय का पाठ किया करतें हैं. दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण अध्याय का पाठ करने में लम्बा समय लगता है जोकि सभी के लिए संभव नहीं हो पाता हैं तो इस तेरह अध्याय को इस तरह से बांटा गया है और इसके अनुसार पाठ करना चाहिए :
नवरात्रि का पहला दिन – पहला अध्याय.
नवरात्रि का दूसरा दिन – दूसरा और तीसरा अध्याय.
नवरात्रि का तीसरा दिन – चौथा अध्याय.
नवरात्रि का चौथा दिन – पांचवा, छठा, सातवां और आठवां अध्याय.
नवरात्रि का पांचवा दिन – नौवां और दसवां अध्याय.
नवरात्रि का छठा दिन – ग्यारवां अध्याय.
नवरात्रि का सातवां दिन – बारहवां और तेरहवां अध्याय.
इसके बाद दुर्गा सप्तशती की पूरी एक आवृति पूरी हो जाती हैं तो इस तरीके से सात (7) दिन में जो तेरह(13) अध्याय हैं, उसको विधिपूर्वक पूरा किया जाता हैं लेकिन पाठ के बाद हर दिन दुर्गा माता से क्षमा प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए.
आइए जानते हैं दुर्गा सप्तशती के पाठ का सही समय :
दुर्गा सप्तशती पाठ के लिए सबसे सही और उत्तम समय सुबह का माना जाता हैं लेकिन पाठ करते समय राहुकाल का परित्याग करके करना चाहिए क्योंकि राहुकाल में पाठ करने से अशुभ फल की प्राप्ति होती हैं इसलिए राहुकाल का ध्यान रखना चाहिए अगर दुर्गा सप्तशती का पाठ सही समय पर किया जाएं तो भगवती माँ की अति विशेष कृपा मिलने के साथ ही घर में नकारात्मकता ऊर्जा प्रवेश नही कर पाती हमेशा सकारात्मकता बनी रहती हैं.
आइए अब जानते हैं दुर्गा सप्तशती पाठ करने के नियम :
1) दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले गणेश पूजन करें और अगर नवरात्रि में कलश स्थापना की गई है तो कलश पूजन, नवग्रह पूजन और ज्योति पूजन के बाद ही सप्तशती का पाठ शुरू करना चाहिए.
2) इसके पश्चात माँ दुर्गा के समक्ष पूर्व की ओर मुख करके बैठें, शुद्धि के लिए चार (4) बार आचमन करके घी का दीपक जलाएं और पुस्तक को लाल कपड़े या फिर व्यासपीठ के ऊपर रखकर पाठ करना चाहिए. दुर्गा सप्तशती की पुस्तक को हाथ में लेकर पाठ करने से आधा ही फल मिलता हैं.
3) दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच इसके बाद कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिए इसके बाद ही दुर्गा सप्तशती के पाठ को शुरू करना चाहिए माना जाता है कि इस तरह से पाठ करने से मनोकामनाएं जल्दी पूर्ण होती हैं.
4) दुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नर्वाण मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” का पाठ अवश्य करना चाहिए क्योकि इस एक मंत्र में ऊंकार, माँ सरस्वती माँ लक्ष्मी और माँ काली का बीजमंत्र निहित है
5) दुर्गा सप्तशती पाठ के बीच में नहीं उठाना चाहिए इसके साथ ही पाठ के बीच में रुकना अशुभ माना गया है अगर संपूर्ण पाठ करते हैं तो चतुर्थ अध्याय पूरा होने के बाद विराम ले सकते हैं.
6) दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय इस बात का ध्यान रखें कि पाठ की गति ना तो बहुत अधिक तेज हो और ना ही बहुत धीमी हो और इसके अलावा पाठ करते समय शब्दों का उच्चारण स्पष्ट और मधुर स्वर में होना चाहिए.
7) श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ के समय किसी भी अध्याय को अधूरा नहीं छोड़ें. सप्तशती के प्रथम, मध्यम और उत्तम चरित्र का क्रम से पाठ करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं इसे महाविद्या क्रम कहा जाते है.
8) दुर्गा सप्तशती पाठ को अगर संस्कृत पढ़ने में कठिनाई हो रही हो तो हिंदी में पाठ करनी चाहिए.
दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण पाठ करने में तीन (3) घंटे का समय लगता है लेकिन अगर समय की कमी या फिर अभाव रहें तो नवरात्रि के प्रतिदिन पहले कवच, कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करके कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना चाहिए मान्यता है कि इससे दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का फल मिलता है पुराणों के अनुसार इस उपाय को स्वयं भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
श्रीदुर्गा सप्तशती को कितने भागों में बांटा गया है ?
तीन भागों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती.
दुर्गा सप्तशती के अध्याय को कितने हिस्सों में बांटा गया है ?
तीन चरित्रों में- प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र और उत्तम चरित्र
दुर्गा सप्तशती के प्रथम चरित्र में किसकी वध कथा है ?
मधु कैटभ की वध कथा.
सप्तशती के किस चरित्र में सूरथ और वैश्य को देवी से मिले वरदान की कथा है?
उत्तम चरित्र में
महिषासुर का वध किस अध्याय में लिखा गया है?
तीसरा अध्याय.
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