Secrets of Pind Daan in Gaya | भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के 15 दिन पितृ पक्ष कहलाती हैं. हिंदू धर्म के अनुसार जब कोई व्यक्ति अपना शरीर त्याग कर मृत्यु लोक से चले जाते हैं तब उनकी आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा से पिंडदान और तर्पण किया जाता हैं, यहीं श्राद्घ कहलाती हैं. धार्मिक मान्यतानुसार पितृ पक्ष (Pitru Paksha) में अपने पूर्वजों का मृत्यु तिथि में श्राद्ध करने से पिंडदान सीधे पितरों तक जाती हैं. माना गया है कि पितृ पक्ष के दिनों यमराज भी पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं जिससे कि वे धरती पर अपने वंशजों के बीच रहे और अन्न जल ग्रहण करके संतुष्ट हो जाये इसीलिए पितृ पक्ष के दिनों में लोग अपने पितरों को याद करके उनके नाम से पिंडदान, तर्पण और दान आदि किया करते हैं जिनसे कि उनकी आत्मा तृप्त होकर लौट जाये. पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने के लिए भारत के 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है लेकिन बिहार के गया (Gaya) तीर्थ को पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने के लिए सर्वोपरि माना गया है.
Secrets of Pind Daan in Gaya, Bihar | जानते हैं गया (बिहार) में पिंडदान करने के महत्व को : –
पितरों की आत्मा की शांति के लिए देश के कई जगहों में व स्थानों पर पितृ पक्ष के दिनों में पिंडदान और तर्पण किए जाते हैं किंतु गया (बिहार) में पिंडदान करने का अलग व विशेष महत्व होता है धार्मिक मान्यता के अनुसार गया में पिंडदान करने से 108 कुलों और 7 पीढ़ियों का उद्धार होने के साथ ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती हैं. गया में पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष मिलती हैं इसी वजह से गया को मोक्ष नगरी कहा जाता हैं कहा जाता हैं कि गया में भगवान विष्णु स्वंय पितृ देव के रूप में वास करते हैं.
गया में श्राद्ध कर्म और तर्पण विधि पूर्वक करने से कुछ नहीं शेष रहता अर्थात व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती हैं. गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण के अलावा वायु पुराण में भी इस तीर्थ के महत्व को बताया गया है. इस तीर्थ को मोक्ष की भूमि यानि कि मोक्ष स्थली कहते हैं यहां पर पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने पर पितरों को मोक्ष मिलने के साथ ही स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं.
माना गया है कि गया में फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म किया था. पितृ पक्ष के दौरान हर वर्ष यहां मेला लगता है जिसे पितृ पक्ष मेला कहते हैं. हिंदुओं के अलावा यह तीर्थ बौद्ध धर्म के लोगों का पवित्र स्थान हैं बोधगया को भगवान बुद्ध की भूमि कही जाती है क्योंकि इसी बोध गया में भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.
Secrets of doing Pind Daan with sand in Gaya | अब जानते हैं गया में बालू से पिंडदान करने के रहस्य को :
गया पिंडदान करने का धरती पर वह स्थान है जहां सच्चे मन से अगर किसी भी चीज से पिंडदान किया जाये तो उनके पूर्वजों को मोक्ष मिलने के साथ ही उनको सीधे स्वर्ग प्राप्त होता है. गया में बालू से भी पिंडदान किया जाता हैं. धार्मिक मान्यता है कि गया के फल्गु नदी के तट पर बालू से किया गया पिंडदान चावल के पिंडदान के बराबर माना जाता है इसलिए गया में नदी के बालू को पिंड बनाकर पिंडदान करने से पूर्वजों की मोक्ष की कामना पूरी हो जाती हैं. माना जाता हैं कि भगवान विष्णु गया में पितृदेव के रूप में स्वंय वास करते हैं इसलिए गया में श्राद्ध कर्म करना पितरों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण स्थान माना गया है. धार्मिक मान्यता है कि गया में श्राद्ध कर्म और तर्पण जिस पितर के नाम से किया जाता हैं उसे हमेशा के लिए गया में छोड़ दिया जाता हैं अर्थात फिर उसके नाम का श्राद्ध नही किया जाता हैं उसकी आत्मा को हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती हैं कुछ भी शेष नहीं रह जाता और श्राद्ध करने वाला व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है.
गया में सबसे पहले माता सीता ने बालू से पिंडदान किया था, धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध कर्म और पिंडदान करने के लिए भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण गया पहुंचे थे किंतु उनके पास श्राद्ध कर्म करने के लिए कुछ सामग्री नहीं थी जिसको लेने के लिए राम और लक्ष्मण कहीं चले गए थे कि तभी आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय थोड़ा ही शेष हैं और समय निकला जा रहा था किन्तु राम लक्ष्मण सामग्री लेकर नही लौटे तब राजा दशरथ ने माता सीता को दर्शन देकर पिंडदान करने को कहा.
इसके पश्चात माता सीता ने फल्गु नदी, वट वृक्ष, केतकी के पुष्प और गाय को साक्षी मानकर बालू का ही पिंड बनाकर फल्गु नदी के किनारे पिंडदान कर दिया. बालू के पिंडदान से राजा दशरथ की आत्मा को शान्ति मिली और वे सीता को आशीर्वाद देकर मोक्ष के लिए स्वर्ग को प्रस्थान किये. माता सीता के द्वारा बालू के पिंडदान करने के बाद से आज भी गया जी में बालू से पिंडदान करने की परंपरा हैं क्योंकि कहा गया है कि बालू के पिंडदान का महत्व भी उतना ही है जितना कि चावल के बने पिंडदान का है.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
पिंडदान करने का किस स्थान को सर्वोपरि माना गया है?
गया (बिहार)
गया में पिंडदान करने से कितने कुल और कितने पीढ़ी का उद्धार होता हैं ?
108 कुलों और 7 पीढियों का
गया में सबसे पहले किसने बालू से पिंडदान किया था ?
सीता माता
माता सीता ने किसका बालू से पिंडदान किया था ?
राजा दशरथ
माता सीता ने किसको साक्षी मानकर पिंडदान किया था ?
फल्गु नदी, वट वृक्ष, केतकी के पुष्प और गाय.
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