Lambodar Ganeshji | विध्नहर्ता भगवान गणेशजी कैसे हुए लबोंदर, जानेंगे गणेशजी के लंबे पेट के रहस्य को.

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Lambodar Ganeshji | हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान गणेश का स्वरूप बहुत सुंदर और मंगलदायी हैं और विध्नहर्ता माने जाने वाले भगवान गणेश जी अपने भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी कर देते है. गणेशजी बुद्धि और तीव्र समझ के देवता कहे जाते हैं जिनकी पूजा से भक्त के जीवन में सुख, शांति, खुशहाली और समृद्धि का आगमन होने के साथ ही सभी दुःखों का अंत हो जाता हैं यही कारण है कि भक्त इनकी पूजा पूरी श्रद्धा और विधि विधान से करता है.

प्रथम पूज्यनीय गणेश गणों के ईश कहे जाते हैं यही कारण है कि इनको गणेश कहते हैं सभी प्रकार के विध्न – बाधाओं को हरने वाले देवताओं में गणेशजी प्रथम स्थान पर विराजित हैं और साथ ही भगवान गणेश अपने भक्तों को अबोधिता, निष्कलंकता और निष्कपटता का आशीर्वाद देने वाले देव कहे जाते हैं. भगवान शिव और भगवान विष्णु की तरह ही असुरी शक्तियों और दानवों का विनाश करने के लिए  गणेशजी ने भी अलग अलग अवतार लिए है जिनका वर्णन मूर्द्वल पुराण और गणेश अंक में किया गया है और इन्ही में है लंबोदर अवतार  जिनके महिमा के बारे में चलिये जानते हैं.

Lambodar Ganeshji | तो चलिए जानतें हैं इन कथाओं से गणेशजी के लंबे पेट यानि कि लंबोदर अवतार के रहस्य को ::

1) मुद्वल पुराण के अनुसार प्राचीन समय में महाशक्तिशाली राक्षस क्रोधासुर नाम का था जिसने भगवान सूर्य की कठिन तपस्या करके उनको प्रसन्न करने के बाद क्रोधासुर वरदान में मांगा कि उसे तीनों लोकों में कोई भी पराजित नहीं कर पाएं और भगवान सूर्य ने उसे अजेय होने का वरदान दे दिया और इस प्रकार उसे यह वरदान प्राप्त हो गया कि उसे तीनों लोकों में कोई भी पराजित नही कर पायेगा, इस वरदान को पाने के बाद क्रोधासुर अपने गुरु शुक्राचार्य के पास जाकर उनका आशीर्वाद लेने के बाद तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने के लिए निकल गया. थोड़े समय के बाद ही उसने अपनी समस्त सेना के साथ देवताओं पर आक्रमण कर दिया जिसका मुकाबला करने की पूरी कोशिश समस्त  देवताओं ने किया लेकिन वे सभी महाशक्तिशाली राक्षस क्रोधासुर को पराजित करने में असफल हुए.

सभी देवताओं को क्रोधासुर ने उनके ही साम्रज्य से बाहर कर दिया और स्वर्ग की राजगद्दी को अपने अधिकार में कर लिया. इससे इंद्र और सभी देवता बहुत चिंतित हो गए और क्रोधासुर से मुक्ति पाने के लिए सभी देवताओं और इंद्र ने विध्नहर्ता गणेशजी की आराधना किया और इस सभी की पुकार सुनकर भगवान गणेश अपने लंबोदर अवतार में देवताओं के समक्ष प्रकट हुए और देवताओं की व्यथा सुनकर बहुत गुस्से में आ जानें पर लंबोदर रूपी भगवान गणेश क्रोधित होकर क्रोधासुर के पास जाकर उसे युद्ध के लिए ललकारा.

क्रोधासुर ने पहले अपने दो पुत्रों हर्ष और शोक को लड़ने के लिए भेजा जिसे लंबोदर ने हर्ष को अपनी सूंड से उठाकर पटक दिया और अपने फरसे से शोक का सिर धड़ से अलग कर दिया अपने पुत्रों को मौत से व्याकुल होकर क्रोधासुर स्वंय युद्ध करने पहुंचा तब भगवान गणेश ने अपना शरीर पर्वतनुमा बना लिया और अपने पेट को जांघों तक लटका दिया और क्रोधासुर ने अपनी गदा से भगवान गणेश (Vighnaharta Ganeshji) पर वार किया जिसे भगवान लम्बोदर ने अपने फरसे से चीर कर रख दिया. इसके पश्चात लम्बोदर गणेश ने क्रोधासुर से कहा कि “समय व्यर्थ मत करो, तुम यह युद्ध हार चुके हों क्योकि मेरा तो कोई रूप ही नहीं है जिस पर किसी शस्त्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता हैं”. इसके बाद क्रोधासुर भगवान लम्बोदर के चरणों में गिरकर भक्ति भाव से उनकी स्तुति करने लगा इस पर भगवान लंबोदर ने भी क्रोधासुर को अभयदान दे दिया और फिर भगवान लम्बोदर का आशीर्वाद पाकर क्रोधासुर अपना शेष जीवन गुजारने के लिए पाताल लोक चले गया.

इसके पश्चात सभी देवतागण प्रसन्नता के साथ भगवान लंबोदर का गुणगान करने लगे और तभी से भगवान गणेश की लंबोदर अवतार के रूप में पूजा होने लगी.

2) भगवान गणेश के लंबोदर (Lambodar) बनने के पीछे एक ओर पौराणिक कथा है जिसके अनुसार एक बार भगवान शंकरजी अपनी पत्नी देवी पार्वती को जीवन और मृत्यु चक्र के बारे में बता रहे थे लेकिन नहीं चाहते थे कि उनकी और देवी पार्वती के बीच हो रही जीवन मृत्यु के चक्र को कोई और ही सुने इसके लिए उन्होंने कैलाश पर्वत पर एक गुप्त स्थान को ढूंढकर वहां आकर अपनी पत्नी देवी पार्वती को जीवन और मृत्यु से जुड़ी कहानियां सुनाने लगे लेकिन उस से पहले उन्हें गणेशजी को एक द्वारपाल के रूप में द्वार पर तैनात कर दिया जिससे कि कोई उनकी बातें सुन न सके और गुफा के अंदर न आने पाए. पिता भगवान शंकर की आज्ञा मानकर भगवान गणेश भी पूरी तत्परता के साथ द्वारपाल के रूप में द्वार पर तैनात हो गए.

कुछ देर के पश्चात वहां इंद्रदेव अन्य देवताओं के साथ पहुँचे और भगवान शंकर जी से भेंट करने के लिए बोलने लगे लेकिन पिता की आज्ञा नहीं होने के कारण से इंद्रदेव और बाकी देवता गण को रोकने लगे गणेश जी के इस व्यवहार को देखकर इंद्रदेव को क्रोध आ गया जिसके कारण उनके और गणेशजी के बीच युद्ध होने लगा और इस युद्ध में गणेश जी ने इंद्रदेव को पराजित कर दिया किन्तु युद्ध करते रहने से वे थक गए और उन्हें भूख भी लग गई जिसके फलस्वरूप उन्होंने ढेर सारा फल खाएं और खूब सारा गंगाजल भी पिया गणेशजी को भूख प्यास इतनी अधिक लगी थी की वह खाते गए और पानी पीते गए और देखते ही देखते उनका उदर (पेट) बड़ा होता गया और जब उनके पिता भगवान शंकर जी की नजर पड़ी तो उनके लंबे उदर को देखकर लम्बोदर पुकारने लगे और तब से भगवान गणेशजी के कई नामों में यह लंबोदर नाम भी जुड़ गया और गजानन गणेशजी लंबोदर कहलाने लगे.

इन पौराणिक कथाओं से जान ही चुके हैं कि भगवान गणेशजी के लंबोदर होने के रहस्य के.


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FAQ – सामान्य प्रश्न

क्रोधासुर राक्षस ने किस भगवान की कठिन तपस्या किया था ?

भगवान सूर्यदेव.

क्रोधासुर के पुत्रों के क्या नाम थे ?

हर्ष और शोक.

गजानन लंबोदर ने किसके पुत्रों का वध किया था ?

क्रोधासुर के पुत्रो का.

भगवान शंकरजी माता पार्वती को किस चक्र के बारे में बता रहे थे ?

जन्म और मृत्यु का चक्र.

भगवान गणेशजी को सबसे पहले लंबोदर किसने पुकारा था ?

भगवान शंकरजी.


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