Surya Dev Chalisa PDF Download | शास्त्रों में सूर्यदेव को ग्रहों का राजा कहा जाता हैं और रविवार का दिन भगवान सूर्यदेव को समर्पित होता हैं. रविवार के दिन सूर्यदेव की पूजा अर्चना करने पर वे प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा बरसाते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण भी करते हैं. रविवार के दिन सूर्योदय के समय तांबे के लोटे से सूर्यदेव को अर्ध्य देने के साथ गुड़ का भोग भी लगाना चाहिए और सूर्य चालीसा का पाठ करना चाहिए. धार्मिक मान्यता है कि रविवार के दिन सूर्य चालिसा का पाठ करना लाभकारी माना जाता हैं क्योंकि सूर्य चालीसा का पाठ करने से जीवन के सारे दुख दूर हो जाने से जीवन में खुशियां ही खुशियां आती हैं इसके अलावा सूर्य चालीसा का पाठ करने से मानसिक और शारीरिक सुख मिलता है. सूर्य नारायण का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करने के लिए सूर्य चालीसा का पाठ अवश्य करें जिससे लाभ और पुण्य की प्राप्ति के साथ सिद्धि बुद्धि, धन बल और ज्ञान विवेक की भी प्राप्ति हो.
गणेश स्तोत्र का पाठ रोजाना करने से परिणाम बहुत जल्दी मिलते हैं, परंतु अगर आप रोजाना पाठ नहीं कर सकते तो सिर्फ बुधवार के दिन इस 11 बार पढ़ें
Surya Dev Chalisa PDF Download | सूर्य देव चालीसा
सूर्य देव चालीसा (Surya Dev Chalisa – PDF Download) हिंदी PDF डाउनलोड करें, नीचे लिंक दिया हुआ है.
Surya Dev Chalisa In Hindi
॥ अथ श्री सूर्यदेव चालीसा ॥
॥ दोहा ॥
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग ।
पद्मासन स्थित ध्याइय, शंख चक्र के संग ॥
॥ चौपाई ॥
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर ।
भानु, पंतग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर ।
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन ।
अम्बरमणि, खग,रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते ।
सहस्त्रांशु, प्रघोतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि ।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर ।
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी ।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते ।
मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता, सूर्य,अर्क, खग,कलिहर,
पूषा, रवि, आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै ।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै ।
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै ।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह ।
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई ।
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते ।
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन ।
छन सुत जुत परिवार बढ़तू है, प्रबलमोह को फंद कटतु है ।
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते ।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत ।
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित ।
ओठ रहैं पर्जन्य, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजस: कांधे लोभा ।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा – वरुण रहम सुउषंकर ।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मह हंस,रहत मन मुदभर ।
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा ।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी ।
सहस्त्रांशु, सवांर्ग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे ।
अस जोजजन अपने न माहीं,भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं ।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै ।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता ।
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवै ताही ।
मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके ।
धन्य धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा ।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों ।
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी ।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय ।
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै ।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता ।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पुसहिं, पुरुष नाम रवि ह मलमासहिं ।
॥ दोहा ॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य ।
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य ॥
॥ इति श्री सूर्य चालीसा पाठ समाप्त ॥
PDF Name | Surya Dev Chalisa PDF |
No.of Page | 05 |
Page Content | Surya Dev Chalisa |
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