Mahakali | मां भगवती दुर्गा को शक्ति का साक्षात स्वरूप माना जाता है और मां देवी दुर्गा ने दैत्यों के व असुरों के संहार के लिए कई अवतार को लिया है. मां दुर्गा ने महिषासुर, धूम्रविलोचन, शुंभ – निशुंभ जैसे कई असुरों का वध करने के लिए अलग अलग अवतार लिया इन्हीं में से एक असुर था रक्तबीज जिसका वध सभी देवता भी मिलकर नही कर सकें और इस शक्तिशाली रक्तबीज असुर के बारे में दुर्गा सप्तशती के आठवें अध्याय और मार्कंडेय पुराण में भी उल्लेख मिलता है.
Who was Asura Raktbeej? कौन था असुर रक्तबीज और कैसे बना वह शक्तिशाली :
रक्तबीज दो शाब्दिक शब्दों से मिलकर बना है जिसमें “रक्त” शब्द का अर्थ खून तो वहीं “बीज” का अर्थ जीव है और इस प्रकार से रक्तबीज का अर्थ हुआ – “रक्त से उत्पन्न होने वाला एक नया जीव” और पौराणिक कथानुसार कई लाख वर्ष पूर्व रक्तबीज नाम का एक असुर था जो कि महर्षि कश्यप और दिति के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ था. मान्यता है कि असुर रक्तबीज पूर्व जन्म में सम्राट रंभ था और एक बार जब सम्राट रंभ तपस्या में लीन था तभी इंद्र ने छलपूर्वक उसे मार दिया और इस तरह से सम्राट रंभ का रक्तबीज के रूप में पुनर्जन्म हुआ .
रक्तबीज ने भगवान शिव की कठिन तपस्या करके शिवजी को प्रसन्न करके उनसे यह वरदान प्राप्त किया कि जहां-जहां उसके रक्त की बूंदे गिरेगी उससे उसी की तरह एक नया शक्तिशाली रक्तबीज असुर पैदा हो जाएगा. ऐसे में जब भी देवताओं के रक्तबीज का युद्ध होता और जैसे ही किसी देवता के प्रहार से रक्तबीज के शरीर से रक्त बहता तो एक ओर रक्तबीज उत्पन्न हो जाते इस तरह से सभी देवता मिलकर भी उसे पराजित नहीं कर पा रहे थे और धीरे धीरे रक्तबीज का आतंक बढ़ने लगा.
How did the demon Raktbeej end? रक्तबीज का कैसे अंत हुआ : –
रक्तबीज के आतंक से मुक्ति पाने के लिए सभी देवताओं ने माँ भगवती दुर्गा से प्रार्थना किया इस तरह रक्तबीज के संहार के लिए मां भगवती दुर्गा का अवतरण हुआ और फिर देवी दुर्गा ने रक्तबीज के साथ युद्ध किया लेकिन जब दुर्गा मां जैसे ही उसकी अंगों को कटने लगी तो उसके रक्त से नए असुर रक्तबीज उत्पन्न होने लगा इस तरह से असुर रक्तबीज की सेना खड़ी हो गई तब माँ भगवती दुर्गा ने चंडिका देवी को आदेश दिया कि, जब वह रक्तबीज असुर पर प्रहार करें तो उसका रक्त वह पी जाए इससे फिर नया रक्तबीज उत्पन्न नहीं हो पाएगा.
इसके बाद मां भगवती ने भद्रकाली महाकाली का रूप धारण किया मान्यता है कि माँ दुर्गा का यह स्वरूप संहार का प्रतीक होता हैं और इस स्वरूप में माँ दुर्गा की बड़ी-बड़ी आंखें शरीर का रंग काला, लंबी जीभ, आंखों में तेज, गले में मुंडमाला और असुरों के कटे हाथ थे मां काली के इस स्वरूप को सनातन धर्म में उन सभी देवी देवताओं में विकराल माना जाता है. माँ काली अपना विकराल रूप में रक्तबीज असुर से युद्ध करना आरंभ किया और फिर चंडिका देवी भी देवी माँ की आज्ञा से जहां – जहां रक्तबीज का रक्त गिरता माँ चंडिका उसका गिरता रक्त को धरती पर गिरने से पहले पीना शुरू कर दिया जिससे नया असुर उत्पन्न नहीं हो पाया कहा जाता हैं कि इससे माँ का स्वरूप बहुत विकराल हो गया और उन्होंने कई असुरों को निगल लिया और इस तरह से माँ भगवती दुर्गा ने रक्तबीज का संहार (अंत) किया.
सिंह पर सवार होने वाली दुर्गा माँ और देवी चंडिका का पूजन करने से भक्तों की रोगों से रक्षा होती है.माना जाता है कि संकट के समय और रोगों से मुक्ति पाने के लिए माँ महाकाली का विशेष पूजन करना चाहिए.
उम्मीद है कि आपको रहस्यों से भरी यहजानकारी पसंद आई होगी तो इसे अधिक से अधिक अपने परिजनों और दोस्तों के बीच शेयर करें और ऐसे ही रहस्यों से भरी जानकारी को पढ़ने के लिए जुड़े रहे हैं madhuramhindi.com के साथ.
FAQ – सामान्य प्रश्न
1) रक्तबीज असुर का संहार करने के लिए मां दुर्गा ने कौन सा रूप धारण किया था ?
महाकाली.
2) रक्तबीज असुर ने किस भगवान की कठिन तपस्या की थी ?
भगवान शिव.
3) रक्तबीज असुर के माता-पिता कौन थे ?
महर्षि कश्यप और देवी दिति.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.