Vamana Avatar | भागवत पुराण के अनुसार अत्यंत बलशाली दैत्य राजा बलि जो भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद के पौत्र और दानवीर होने के बावजूद एक अभिमानी राक्षस था. बलि अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके देवताओं और ब्राह्मणों को डराया व धमकाया करता था. एक बार देवताओं और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें दैत्य पराजित हुए तथा जीवित दैत्य मृत दैत्यों को लेकर अस्ताचल की ओर चले गए. दैत्यराज बलि इंद्र व्रज से मृत्यु को प्राप्त हो गए तब दैत्यराज गुरु शुक्राचार्य ने अपनी मृत संजीवनी विद्या से दैत्यराज बलि को जीवित कर दिया और इसके साथ ही अन्य दैत्यों को भी जीवित और स्वस्थ कर दिया इसके बाद गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया और अग्नि से एक दिव्य बाण और कवच प्राप्त किया. दिव्य बाण की प्राप्ति के बाद राजा बलि स्वर्ग लोक पर एक बार फिर आक्रमण करने के लिए चल दिये. असुर सेना को आते हुए देख इंद्रराज समझ गए कि इस बार देवतागण असुरों का सामना नहीं कर पायेंगे. यहीं सोचकर देवराज इंद्र सभी देवताओं के साथ स्वर्ग छोड़कर चले गए फिर स्वर्ग पर दैत्यराज बलि का अधिकार हो गया और दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने दैत्यराज बलि के स्वर्ग पर हमेशा के लिए राज हो इसके लिए उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया.
देवराज इंद्र को दैत्यराज बलि की इच्छा पहले से ही जानते थे,उन्हें भलीभांति पता था कि यदि बलि का यज्ञ पूरा हो गया तो दैत्यों को स्वर्ग से कोई नहीं निकाल सकता और सभी देवी देवता दुखी होकर मदद के लिये भगवान विष्णु की शरण मे गए. इंद्र देव ने अपनी पीड़ा बताकर विष्णुजी से सहायता की प्रार्थना की. देवताओं को इस प्रकार से दुखी और परेशान देख भगवान विष्णु ने कहा कि “मैं देवराज इंद्र की माता अदिति के गर्भ से वामन अवतार में जन्म लेकर तुम सभी को बलि के अत्याचार से मुक्ति और स्वर्ग का राज्य दिलाऊँगा”. कुछ समय बाद भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को भगवान विष्णु ने वामन अवतार के रूप में जन्म लिया और इधर दैत्यराज बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य और मुनियों के साथ लंबे समय तक चलने वाले यज्ञ का आयोजन किया.
बलि के इस महायज्ञ में विष्णु जी वामन के रूप में गये. दैत्य गुरु शुक्राचार्य अपने तपो बल से जान लिया कि वामन रूप में स्वंय विष्णु है और उसने बलि को बताया भी की वामन रूपी अवतार में भगवान विष्णु है. बलि से उन्होंने कहा राजा मुझे दान दीजिये. बलि ने कहा मांग लीजिए. वामन रूपी विष्णुजी ने कहा “मुझे तीन पग धरती चाहिए”. दैत्यराज बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान विष्णु की लीला को जान गए और उन्होंने दैत्यराज बलि को दान देने से मना किया लेकिन फिर भी बलि ने भूमि दान के संकल्प के लिए कलश उठाया किन्तु गुरु शुक्राचार्य उस कलश में घुस गए. भगवान विष्णु यह जान गए कि गुरु शुक्राचार्य कलश में घुसकर जल की धारा को रोक रहे है फिर उनके कुश के अग्र भाग को कलश के मुख में घुसेड़ दिया जिसने गुरु शुक्राचार्य की एक आंख को नष्ट कर दिया. दर्द से व्याकुल होकर गुरु शुक्राचार्य उस कलश से बाहर निकल गए.तब बलि ने तीन पग धरती दान का संकल्प लिया. भगवान विष्णु ने एक पग से सारी धरती को नाप लिया तथा अपने दूसरे पग से पूरे स्वर्गलोक को नाप लिया. जब तीसरे पग रखने की कोई जगह नहीं बची तो बलि के सामने धर्म संकट पैदा हो गया कि अगर वो अपना संकल्प पूरा नहीं किया तो ये अधर्म होगा. इसके लिए उन्होंने तीसरे पग के लिए अपने आप को समर्पित करते हुए बलि ने अपना सर उनके पग के नीचे रख दिया. वामन भगवान के तीसरा पग रखते ही बलि पाताललोक पहुंच गया. बलि की दानवीरता को देख वामनरूप भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल का राजा बना दिया और इस तरह भगवान विष्णु नै इंद्र को स्वर्गलोक सौंपा.
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