Why is Bel-Patra offered to Mahadev? आखिर भगवान शिव को बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता हैं? जानेंगे इसके पीछे की पौराणिक कथा को.

Bel-Patra

Mahadev | हिंदू धर्म में भगवान शिव को बहुत नामों से जाना जाता हैं जैसे कि महादेव, शंकर और भोलेनाथ इस प्रकार के कई नामों से ये जाने जाते हैं. सोमवार का दिन भगवान शिव (Shiv) का दिन होता हैं इस दिन भोलेनाथ की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं. माना जाता हैं कि भोलेनाथ बहुत भोले हैं, जिनको प्रसन्न करने के लिए बहुत ज्यादा कठिन तप करने की ज़रूरत नहीं होती हैं भक्तों द्वारा सच्चे मन से पूजा करने पर भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं. भगवान शिव की पूजा में कई चीजें चढ़ाई जाती हैं जो उन्हें बहुत प्रिय हैं, वैसे तो इन्हें एक कलश जल और बेलपत्र (Bel-Patra) चढ़ा कर प्रसन्न कर सकते हैं. महादेव की पूजा में बेलपत्र ज़रूर चढ़ाया जाता हैं. आइये जानते है कि भगवान शिव को बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता हैं.

Mahadev | भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के पीछे की पौराणिक कथा

एक बार देवता और दानव के बीच समुंद्र मंथन हुआ था जिसमें अच्छी और बुरी दोंनो प्रकार की चीजें निकली लेकिन सबसे पहले समुंद्र मंथन में कालकूट (हलाहल) नामक विष निकला. ये विष इतना जहरीला था कि सारे संसार को अपने चपेट में ले लिया, सारे देवता इस विष के असर के आगे बेबस और कमजोर होने लगें किसी भी देवता में इतनी शक्ति नहीं रही कि इस विष के प्रभाव को रोक पाए किन्तु उस समय भगवान शिव ने पूरे संसार को बचाने के लिए इस कालकूट विष को अपने कंठ में धारण कर लिया ये विष बहुत ही जहरीला होने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया. तभी से भगवान शिव का नाम “नीलकंठ” पड़ा. चूंकि कालकूट बहुत ही जहरीला विष था जिसके कारण भगवान शिव का शरीर बेहद गर्म होने के साथ ही तपने लगा जिसके कारण आसपास का वातावरण भी जलने लगा. पौराणिक मान्यता के अनुसार बेलपत्र (Bel-Patra) किसी भी प्रकार के विष के असर को कम करता हैं यही वजह था कि देवताओं ने भगवान शिव को बेलपत्र खिलाना शुरू किया इसके साथ ही भोलेनाथ के शरीर की शीतलता बनाये रखने के लिए उन पर जल भी चढ़ाने लगें जिनसे भगवान शिव को बहुत आराम मिला और शरीर की तपन भी कम हो गई और तब से लेकर आज तक भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाया जाता हैं. 

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FAQ – सामान्य प्रश्न

समुद्र मंथन से निकले विष का क्या नाम था

कालकूट (हलाहल)


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