Bhasma Aarti | जानते है महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्‍जैन की भस्म आरती और उनसे जुड़ीं रहस्यों को

Bhasma Aarti

Bhasma Aarti | उज्जैन के कालों के काल महाकाल बाबा भोलेनाथ के मंदिर में हर दिन सुबह के 4 बजे यानि अलसुबह भस्म आरती होती हैं. माना जाता हैं कि विश्वभर में महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Jyotirlinga) एक अकेला तीर्थ स्थल है जहां वैदिक मंत्रों, शंख, डमरू के साथ बाबा भोलेनाथ की भस्म आरती की जाती हैं. भस्म को शिवजी का वस्त्र माना जाता हैं. किसी भी पदार्थ का अंतिम रूप भस्म होता हैं जिसे भी जलाओं तो वह भस्म रूप में एक जैसा ही होगा,मिट्टी को भी जलाओं तो वह भस्म रूप में होगी सभी का अंतिम स्वरूप भस्म ही है. भस्म इस बात का संकेत हैं कि सृष्टि नश्वर हैं. शिवजी भस्म धारण करके सभी को यहीं बताना चाहते हैं कि “‘ भस्म “‘ ही इस देह का अंतिम सत्य है.

Bhasma Aarti | तो आए जानते हैं भस्म आरती के रहस्यों को :

1) पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में दूषण नाम के एक राक्षस के कारण पूरी उज्जैन (Ujjain) नगरी में आतंक फैला हुआ था उज्जैनवासियों को इस दूषण राक्षस से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव ने उनका वध कर दिया उसके बाद नगरवासियों ने भोले शंकर को यहीं बस जाने को अनुरोध किया तब से भगवान शिव महाकाल के रूप में उज्जैन में ही बस गए और शिवजी ने दूषण राक्षस को भस्म करने के बाद उसकी राख से खुद का श्रृंगार किया यही कारण है कि इस मंदिर का नाम महाकालेश्वर पड़ा और शिवलिंग की भस्म से आरती होने लगी.

2) भस्म आरती मंदिर में भोर ( सुबह ) के 4 बजे होती हैं.

3) इस आरती की खासियत यह है कि इस आरती में ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता हैं.

4) इस आरती में शामिल होने के लिए पहले से बुकिंग की जाती हैं.

5) भस्म आरती में महिलाओं के लिए साड़ी पहनना ज़रूरी होता है क्योंकि जिस वक्त शिवलिंग पर भस्म  चढ़ती है उस वक्त महिलाओं को घूंघट करने को कहा जाता हैं मान्यता है कि उस वक्त भगवान शिव निराकार स्वरूप में होते हैं और इस रूप का दर्शन महिलाएं नहीं कर सकती.

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6) पुरुषों को भी भस्म आरती को देखने के लिए केवल धोती पहननी होती हैं वह भी साफ स्वच्छ और सूती होनी चाहिए, पुरूष भी इस आरती को देख सकते हैं और करने का अधिकार सिर्फ यहां पुजारियों को होता हैं

7) ऐसा कहा जाता हैं कि यहां श्मशान में जलने वाली सुबह की पहली चिता से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता हैं.

8) यह भी कहा जाता हैं कि इस भस्म आरती के लिए  पहले से लोग मंदिर में रजिस्ट्रेशन करवाते हैं और मृत्यु के बाद उसकी भस्म से भगवान का श्रृंगार किया जाता हैं.

9) यह भी कहा जाता हैं कि श्रौत, स्मार्त और लौकिक ऐसे तीन प्रकार की भस्म कही जाती हैं श्रुति की  विधि से यज्ञ किया हो वो भस्म श्रौत हैं, स्मृति की विधि से यज्ञ किया जो वो स्मार्त भस्म हैं और कण्डे को जलाकर भस्म तैयार की हो तो वह लौकिक भस्म कही जाती हैं.

10) हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला,बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को जलाना भस्म करते हैं. इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता हैं इसे 7(सात) बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता हैं इस तरह से तैयार भस्मी को समय समय पर लगाया जाता हैं यहीं भस्मी नागा साधुओं का वस्त्र होता हैं इसी तरह की भस्म से आरती भी होती हैं. 


FAQ – सामान्य प्रश्न

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन में भस्म आरती कितने बजे होती है ?

भस्म आरती मंदिर में भोर के ( सुबह ) 4 बजे होती हैं


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