Brij Dham Tirth | आखिर क्यों कहते हैं बृजधाम को चातुर्मास में तीर्थों का तीर्थ, जानेंगे इस रहस्य को इस पौराणिक कथा से.

Brij Dham Tirth

Brij Dham Tirth | हिन्दू पंचाग के अनुसार, आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की देवोत्थान एकादशी तिथि तक चतुमार्स रहता है जोकि चार महीने का होता हैं. चातुर्मास में भगवान विष्णु पूरे चार महीने के लिए योगनिद्रा में होते हैं और देवोत्थान एकादशी से चतुमार्स समाप्त होने पर भगवान विष्णु योगनिद्रा पूर्ण करके क्षीर सागर से बाहर निकल कर सृष्टि का संचालन करने लग जाते हैं.

इस साल 2023 में चातुर्मास की शुरुआत 29 जून दिन गुरुवार देवशयनी एकादशी के दिन होगी और इसका समापन 23 नवंबर दिन गुरुवार को देवोत्थान एकादशी पर होगा. चतुमार्स में भले ही शुभ मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएं लेकिन पूजा पाठ, व्रत, साधना और तीर्थ यात्रा को बहुत पुण्यकारी माना गया है खासकर भगवान कृष्ण की ब्रज नगरी की ब्रजधाम की तीर्थ यात्रा करना बहुत शुभ और सौभाग्यशाली माना गया है क्योंकि मान्यता है कि चतुमार्स में पृथ्वी के सारे तीर्थ यहीं बृजधाम में निवास करते हैं यहीं वजह है कि चतुमार्स में बृजधाम तीर्थों का तीर्थ कहलाता है.

Brij Dham Tirth | जानते हैं इस रहस्य को इस पौराणिक कथा के द्वारा :

श्रीगर्ग संहिता के अनुसार चतुमार्स में किये गए बृजधाम की तीर्थ यात्रा से सारे तीर्थों के बराबर का पुण्य प्राप्त होता हैं इस से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी के योगनिद्रा में होने का फायदा उठाकर शंखासुर नाम का राक्षस उनके सारे वेदों को चुराकर समुंद्र में जाकर छिप गया. तब वेदों को प्राप्त करने और रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर समुंद्र के अंदर जाकर शंखासुर से युद्ध करके उसका वध करने के बाद चारों वेदों को प्राप्त किया और उन वेदों को ब्रह्माजी को सौंप दिया चुकी ये सारी घटनाएं प्रयागराज में सम्पन्न हुई इसी वजह से भगवान विष्णु ने प्रयागराज को सारे तीर्थों का राजा घोषित कर दिया.

किन्तु जैसे जैसे समय बीतता गया प्रयागराज को अपने आपको तीर्थराज होने का घमंड होने लगा कि वे सारे तीर्थों में सबसे श्रेष्ठ हैं. प्रयागराज का घमंड दूर करने के लिए नारद मुनि तीर्थराज के पास गए और बोले कि भगवान विष्णु ने आपको तीर्थराज तो बना दिया है लेकिन वास्तव में आप तीर्थराज नहीं है. नारदजी की बात सुनकर तीर्थराज सभी तीर्थों के लिए भोज का आयोजन किया और सभी को आमंत्रण भी भेजा लेकिन इस भोज में ब्रजधाम नहीं आये.ब्रजधाम के नहीं आने पर तीर्थराज प्रयागराज ने अपना अपमान समझा तब प्रयागराज सारे तीर्थों के साथ मिलकर ब्रजधाम पर हमला कर दिया लेकिन इसयुद्ध में जीत ब्रजधाम की हुई.

ब्रजधाम से पराजय होने के बाद प्रयागराज सारे तीर्थों को लेकर ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और देवों के देव महादेव के पास पहुँचे इस पर भगवान विष्णु ने तीर्थराज प्रयागराज को समझाया कि ” ब्रज पर हमला करने वाले की हमेशा पराजय ही होगी मैंने तुमको पृथ्वी के सारे तीर्थों का राजा बनाया है किंतु अपने घर का राजा नहीं बनाया है, ब्रजधाम मेरा घर होने के साथ वह एक परम धाम भी है और प्रलयकाल में भी ब्रजधाम का संहार नहीं होगा “.

इसके बाद प्रयागराज समेत सभी तीर्थ भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हैं और इस पाप मुक्ति का रास्ता पूछते हैं तब विष्णु जी ने सभी तीर्थों के साथ प्रयागराज को भी आदेश देते हैं कि वे सभी हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तक यानि कि चतुमार्स में ब्रजधाम में निवास करें यही कारण है कि चतुमार्स के दौरान तीर्थराज प्रयागराज के साथ सारे तीर्थ ब्रजधाम में वास करते हैं इसलिए इस दौरान जो भी ब्रजधाम की यात्रा करता है उसे सभी तीर्थों का पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं यही कारण है कि चतुमार्स में ब्रजधाम तीर्थों का तीर्थ कहलाता है.


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FAQ – सामान्य प्रश्न

चतुमार्स में कौन तीर्थों का तीर्थ कहलाता है ?

ब्रजधाम (Brij Dham)

भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में किस राक्षस का वध किया था ?

शंखासुर राक्षस.


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