Why Aarti after puja? आरती हिन्दू धर्म की पूजा परंपरा का एक अभिन्न अंग हैं. जिसके महत्व की चर्चा सबसे पहले स्कन्द पुराण में की गई हैं. आरती को “आरात्रिक” या “नीराजन” के नाम से जाना जाता हैं. धार्मिक मान्यता है कि अगर कोई मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नही जानता किन्तु सच्चे मन और श्रद्धा से आरती करता है तो भगवान उसकी पूजा को पूरी तरह से स्वीकार कर लेते हैं. घर और मंदिर में आरती करने का तरीका अलग अलग होती हैं. आरती के प्रधान अंग के रूप में शंख ध्वनि और घन्टे घड़ियाल माने गए हैं. कहा जाता हैं कि पूजा करने के बाद आरती अवश्य करनी चाहिए नहीं तो पूजा अधूरी रह जाती हैं और ऐसी पूजा भगवान को स्वीकार नही होती जिसके बाद आरती नहीं किया जाएं.
Why is Aarti? आइए जानते हैं क्या होती हैं आरती और यह कितने प्रकार की होती हैं आरती :
आरती का मतलब है भगवान को याद करना, उनके प्रति आदर का भाव दिखाना और उनका गुणगान करना. आरती किसी भी साधक या उपासक को भगवान के प्रति पूरी तरह से समर्पित होने के भाव को दर्शाती हैं भगवान का आशीर्वाद और कृपा पाने के लिए आरती को माध्यम माना जाता हैं.
How many types of Aarti are there? आइए जानें कि आरती कितने प्रकार की होती हैं :-
आरती मुख्य रूप से सात (7) प्रकार की होती हैं :
1) मंगला आरती.
2) पूजा आरती.
3) श्रृंगार आरती.
4) भोग आरती.
5) धूप आरती.
6) संध्या आरती.
7) शयन आरती.
Why is Aarti performed after puja? आइए जानते हैं कि पूजा के बाद आरती क्यों की जाती हैं :
मान्यता है कि अगर पूजन विधि में किसी प्रकार की कमी या फिर त्रुटि हुई हैं तो आरती के माध्यम से कमी और त्रुटि को पूरा किया जाता हैं. किसी भी पूजा बाद आरती करना इस बात का संकेत हैं कि अब पूजन खत्म हो चुकी हैं और हम भगवान से कुशलता की कामना करने वाले हैं. मान्यता है कि आरती करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने स्वयं कहा है कि जो व्यक्ति अनेक बत्तियों से और घी से भरे हुए दीप प्रज्वलित करके मेरी आरती उतारता हैं वह कोटि कल्पों तक स्वर्ग लोक में वास करता है, जो कोई मेरे आगे होती हुई आरती का दर्शन करता हैं वह अंत में परमपद को पाता है, जो मेरे सामने कपूर की भक्तिभाव से आरती करता है वह मुझ अनंत में प्रवेश पाता है और अगर मंत्रहीन और क्रियाहीन से मेरा पूजन किया गया हो किंतु मेरी आरती कर देने पर पूजा सर्वथा पूर्ण हो जाती हैं.
How is Aarti performed? आइए जानते हैं कि आरती कैसे की जाती हैं :
पूजा के बाद आरती करने का एक तरीका होता है. पूजा करने के बाद आरती की थाली को विशेष रूप से सजाया जाता हैं जिसके लिए तांबे, पीतल और चांदी की थाली लेकर उसमें रोली, कुमकुम, अक्षत, ताजे फूल और प्रसाद रखने के बाद इसमें दीपक को रखा जाता हैं जिसमें शुद्ध घी को डाला जाता हैं मुख्य रूप से पांच या सात दीपक से आरती करना शुभ व सर्वोत्तम माना गया है लेकिन एक, तीन, पांच या सात विषम संख्या के दीपक से भी आरती किया जा सकता है. मंदिरों में पांच बत्तियों वाले दीप से आरती किया जाता हैं जिसे पंचप्रदीप कहा जाता हैं. शास्त्रों में अलग अलग संख्या वाले दीप से आरती करने का महत्व को बताया गया है. आरती के समय शंख और घन्टे घड़ियाल का ध्वनि करना चाहिए.
रुई या फिर कपास की बत्ती के अलावा कपूर से आरती की जाती हैं जब आरती की शुरुआत करें तो सबसे पहले भगवान के चरणों से शुरू करते हुए चरणों में चार बार, नाभि के सम्मुख दो बार और भगवान के समक्ष एक बार आरती घुमाए फिर सात बार भगवान के संपूर्ण शरीर पर यानि कि चरणों से मस्तक तक आरती घुमानी हैं इस तरह आरती कुल चौदह (14) बार घुमाए.
शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान विष्णु की बारह (12) बार, भगवान शिव को ग्यारह बार (11) बार, दुर्गा माता की नौ (9) बार गणेशजी की चार (4) बार और अन्य देवी देवताओं की सात (7) बार आरती घुमाने का विधान है. दीपक से आरती के बाद अंत में कपूर आरती करने के बाद पुष्पांजलि मंत्र बोला जाता हैं.
Rules of Aarti | आइए जानते हैं आरती के नियम को : –
1) कभी भी आरती अखंड जलाए गए दीपक से नहीं करना चाहिए और ना ही आरती कभी भी बैठकर करना चाहिए.
2) आरती के बीच में उस पर से हाथ नहीं घुमाए बल्कि पूरी आरती होने के बाद उसे जल के छींटे लगाकर ठंडा करके भगवान को समर्पित करने के बाद सभी को आरती लेना चाहिए.
3) आरती के बीच में बोलना, चीखना या फिर दूसरा कोई काम नहीं करना चाहिए माना जाता है कि इससे आरती खंडित हो जाती हैं.
4) इस प्रकार से व्यवस्था करें कि आरती के बीच में दीपक बुझे नहीं.
5) आरती को कभी भी उल्टा नहीं घुमाए और कभी भी पूजा, उपासना या भजन के बिना आरती नहीं करना चाहिए.
6) आरती से ऊर्जा लेते समय सिर ज़रूर से ढक लेना चाहिए खासकर महिलाओं को ऐसा अवश्य करना चाहिए.
7) आरती लेते समय दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर पहले नेत्रों पर फिर सिर के मध्य भाग पर लगाएं और आरती लेने के बाद कम से कम पांच मिनट हाथ नहीं धोएं.
Importance of Performing Aarti | आइए अब जान लेते हैं आरती करने के महत्व को : –
1) आरती परिवार के साथ मिलकर करने से सदस्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के अलावा व्यक्ति के आत्म बल को बढ़ाने में मदद करता है.
2) आरती के समय जब शंख और घन्टें की ध्वनि होती है तो चारों ओर का वातावरण स्वच्छ हो जाने के बाद आस पास के कीटाणुओं का नाश हो जाता है.
3) आरती व्यक्ति के मानसिक तनाव को दूर करने के साथ वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती हैं.
4) आरती के समय जब घी और कपूर जलते हैं तो कीटाणु नष्ट होते हैं और रोगों से मुक्ति मिलती हैं.
5) मान्यता है कि जिस घर में प्रतिदिन आरती की जाती हैं वहां के आसपास की नकारात्मक ऊर्जा नहीं रहती ऐसी जगह सकारात्मकता से भरी होती हैं इससे जीवन के सारे संकट दूर होने के साथ ही पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
आरती कितने प्रकार की होती हैं ?
सात प्रकार.
आरती के प्रथम अंग किसे माना गया है ?
शंख ध्वनि और घन्टे घड़ियाल.
आरती के महत्व को सबसे पहले किसमें बताया गया है ?
स्कंद पुराण में.
भगवान विष्णु की कितने बार आरती घुमानी चाहिए ?
बारह बार.
पांच बत्तियों वाले दीप को क्या कहा जाता हैं ?
पंचप्रदीप.
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