Why is Holi celebrated | होली हिंदुओं का सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक पर्व है जो कि हिन्दू पंचाग के अनुसार हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है. पारंपरिक रूप से होली दो दिनों का पर्व होता है जिसमें पहले दिन को होलिका दहन और दूसरे दिन रंगों से खेला जाता हैं जिसे धुलेंडी कहते हैं. होली मनाने के साथ कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं भी है जो हम सबको बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है तो वहीं इससे समानता और एकता की शिक्षा भी मिलती हैं.
Why is Holi celebrated | तो आइए जानते हैं होली मनाने के पीछे की पौराणिक और प्रचलित कथाएं :
1) भक्त प्रह्लाद से जुड़ी पौराणिक कथा :
होली का पर्व की सबसे प्रचलित कथा प्रह्लाद और होलिका की कथा से जुड़ा हैं. विष्णु पुराण की कथानुसार प्रह्लाद के पिता दैत्य हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा, न आकाश में ,न दिन में मरेगा, न रात में, न घर मे मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा, न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से और इस तरह से वरदान को पाने के बाद वह खुदको अमर समझकर नास्तिक और निरंकुश हो गया लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद जो कि भगवान नारायण के अनन्य भक्त था और हिरण्यकश्यप चाहता था कि प्रह्लाद भगवान नारायण की आराधना छोड़ दें किन्तु प्रह्लाद इस बात को माने से इंकार कर दिया तब उसने प्रह्लाद को अनेकों तरह के जघन्य कष्ट दिए लेकिन प्रह्लाद हर बार बच जाता था.
हिरण्यकश्यप की एक बहन थी होलिका जिसको वरदान में एक ऐसा वस्त्र मिला था जिसको पहनकर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी और उसने होलिका को आदेश दिया कि वह वस्त्र पहनकर प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाएं जिससे कि प्रह्लाद जलकर मर जाएं लेकिन होलिका का इस वस्त्र में दिया गया वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रहलाद को मारने का प्रयास किया. होलिका अग्नि में जल गई और भक्त प्रह्लाद की विष्णु भक्ति के फलस्वरूप उसका बाल का बांका नहीं हुआ. शक्ति पर भक्ति की जीत की खुशी में यह पर्व मनाया जाने लगा. रंगों का यह पर्व संदेश देता है कि काम, क्रोध, मद, मोह, और लोभ रूपी दोषों को छोड़कर भगवान की भक्ति में लगाना चाहिए.
2) शिव पार्वती और कामदेव से जुड़ी कथा :
शिवपुराण के अनुसार हिमालय की पुत्री पार्वती भगवान शिव से विवाह के लिए कठिन तपस्या कर रही थी किन्तु भगवान शिव अपनी तपस्या में लीन थे. भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र के हाथों से ताड़कासुर राक्षस का वध होना था तो ऐसे में इन दोनों का विवाह होना आवश्यक था तब इंद्र और बाकी देवताओं ने मिलकर कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने के लिए भेजा और कामदेव ने शिवजी की तपस्या भंग करने के लिए पुष्प वाण छोड़ा इस वाण से शिव के मन में प्रेम और काम का संचार होने के कारण उनकी समाधि भंग हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया पर भगवान शिव की तपस्या भंग हो चुकी थी तब देवताओं ने उनको पार्वती से विवाह करने के लिए राजी कर लिया वहीं कामदेव की पत्नी रति ने अपने पति को पुनः जीवित करने की प्रार्थना किया तब रति को अपने पति कामदेव को पुनर्जीवित होने का वरदान मिला और शिवजी का पार्वती से विवाह की खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया और यह दिन फाल्गुन पूर्णिमा का था.
3) राधा कृष्ण से जुड़ी कथा :
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण का रंग सांवला था और राधा गौरी थी इस बात को लेकर कृष्ण अक्सर अपनी मईया यशोदा से शिकायत करते थे कि वह गोरे क्यों नहीं है इसके बाद एक दिन भगवान कृष्ण से यशोदा जी ने कहा कि जो तुम्हारा रंग हैं उसी रंग को राधा के चहेरे पर लगा दो फिर तुम दोनों का रंग एक समान एक जैसा हो जाएगा तब कृष्ण अपनी मित्र मंडली ग्वालों के साथ राधा को रंगने के लिए उसके पास गए और फिर कृष्ण ने अपने मित्रों के साथ मिलकर राधा और उनकी सखियों को जमकर रंग लगाया कहते हैं कि तब से ही श्रीकृष्ण और राधा की बरसाने की होली के साथ होली उत्सव की शुरुआत हुई जो आज भी बरसाने और नन्दगाँव की लट्ठमार होली विश्व विख्यात हैं.
4) राक्षसी ढूंढी से जुड़ी कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार राजा पृथु के समय में ढूंढी नाम की एक कुटिल राक्षसी थी और वह अबोध बच्चों को खा जाया करती थी उसने कई तरह के जप तप करके बहुत देवताओं को प्रसन्न करके उसने वरदान को पाया था कि उसे कोई भी देवता, मनुष्य, अस्त्र व शस्त्र नहीं मार सकेगा और ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर ही होगा इस वरदान के कारण उसका अत्याचार बहुत ही बढ़ गया क्योंकि उसको मारना असंभव था किंतु भगवान शंकर की एक श्राप के वजह से वह बच्चों की शरारतों से मुक्त नहीं थी. राजा पृथु ने ढूंढी के बढ़ते अत्याचारों से मुक्ति पाने के लिए राजपुरोहित से उपाय पूछा.
राजपुरोहित ने उपाय बताते हुए कहा कि अगर फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न है गर्मी तब सब बच्चे अपने घर से एक एक लकड़ी लेकर निकलें उसे एक स्थान पर रखे और घास पूस रखकर जला दें. ऊंचे स्वर में तालियां बजाते हुए मंत्र जाप करें अग्नि की प्रदक्षिणा करें, जोर जोर से हँसे, गाएँ, चिल्लाएँ और खूब शोर करें तो राक्षसी मर जाएगी.
राजपुरोहित की सलाह का पालन किया गया और जब ढूंढी इतने सारे बच्चों को देखकर अग्नि के नजदीक आई तो बच्चों ने एक समूह बनाकर नगाड़े बजाते हुए राक्षसी ढूंढी को घेरा, धूल और कीचड़ को उसपर फेंकते हुए शोरगुल किया जिससे कि राक्षसी ढूंढी की मौत हो गई. कहा जाता हैं कि होली पर बच्चे शोरगुल और गाना बजाकर इस परंपरा का पालन करते हैं.
5) कंस और पूतना से जुड़ी कथा :
कथानुसार जब कंस को एक आकाशवाणी के द्वारा पता चला कि वासुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उनके विनाश का कारण बनेगा यह सुनकर कंस व्याकुल हो उठा तब उस ने मथुरा के राजा वासुदेव से उनका राज्य छीनकर अपने अधीन करके खुद शासक बन गया और वासुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया. कारागार में जन्म लेने वाले वासुदेव और देवकी के सात पुत्रों को कंस ने मार डाला किन्तु आठवें पुत्र के रूप में जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो उनके प्रभाव से कारागार के द्वार खुल गए तब रातों रात वासुदेव ने कृष्ण को गोकुल में नन्द और यशोदा के घर पर रखकर उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेते आएं.
कंस ने जब इस कन्या को मारना चाहा तो वह कन्या अदृश्य हो गई और आकाशवाणी हुई कि तुमको मारने वाला तो गोकुल में जन्म ले चुका है यह सुनकर कंस बहुत डर गया और फिर उसने उस दिन गोकुल में जन्में प्रत्येक शिशु की हत्या करने केI योजना बनाई जिसके लिए उसने अपने अधीन काम करने वाली पूतना राक्षसी की मदद लिया. राक्षसी पूतना सुंदर स्त्री का रूप बनाकर गोकुल की महिलाओं से घुलमिल गई और उन सबका विश्वास प्राप्त करने के बाद उसका कार्य स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था जिसमें अनेक शिशु शिकार हुए किन्तु कृष्ण भगवान उसकी सच्चाई को जान गए और उन्होंने पूतना का वध कर दिया और वह दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा था तब से ही पूतना वध की खुशी में होली मनाई जाने लगी.
उम्मीद है कि आपको होली से जुड़ी पौराणिक कथाओं से जुड़ा लेख पसन्द आया होगा तो इसे अपने परिजनों और दोस्तों के बीच अधिक से अधिक शेयर करें और ऐसे ही पौराणिक कथाओं को पढ़ने के लिए जुड़े रहें madhuramhindi.com के साथ.
FAQ – सामान्य प्रश्न
हिरण्यकश्यप को किससे वरदान प्राप्त हुआ था ?
ब्रह्माजी.
हिरण्यकश्यप के पुत्र का क्या नाम था ?
प्रह्लाद.
तारकासुर राक्षस का वध किनके पुत्र के हाथों से होना था ?
भगवान शिव और पार्वती के पुत्र.
कामदेव ने किसकी तपस्या भंग किया था ?
भगवान शिव.
भगवान कृष्ण ने किस राक्षसी का वध किया था ?
पूतना.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.