Kamada Ekadashi Vrat Katha | चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी कामदा एकादशी कहलाती है और यह हिंदू वर्ष की पहली एकादशी होती है जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि जिस एकादशी तिथि के व्रत में सभी मनोकामना की पूर्ति हो जाए तो उसेकामदा एकादशी कहा जाता है. धार्मिक मान्यता है की इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना करने पर उनका आशीर्वाद मिलता है और प्रेत योनि से भी मुक्ति मिलती है. वेदों और पुराणों के अनुसार जितना पुण्य हजारों सालों की तपस्या, स्वर्ण और मोती दान और कन्यादान से मिलता है उससे अधिक पुण्य मात्र कामदा एकादशी व्रत करने से प्राप्त होता हैं. जो कोई भी यह कामदा एकादशी व्रत रखते हैं तो उनको कामदा एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए कि किसी कारणवश अगर पाठ नहीं कर सकते तो कामदा एकादशी व्रत कथा को अवश्य सुनें ऐसा करने से व्रत का पूरा फल मिलता हैं.
Kamada Ekadashi Vrat Katha | कामदा एकादशी व्रत कथा :
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में जानना चाहा और प्रार्थना की वह एकादशी के बारे में विस्तार से बताएं तब भगवान श्री कृष्ण जी कहा कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत को कामदा एकादशी कहा जाता है और इस व्रत को करने से पाप से मुक्ति मिलती है, हे कुंती पुत्र ! युधिष्ठिर इस कथा को ध्यानपूर्वक सुनो. प्राचीन काल में भोगीपुर नामक नगर में पुंडरीक नामक एक राजा राज करते थे. भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर और गंधर्व निवास करते थे और राजा पुण्डरीक का दरबार किन्नरों और गंधर्व से भरा रहता था जो गायन और वादन में निपुण और योग्य थे. वहां रोजाना ही गंधर्व और किन्नरों का गायन होता रहता था. इसी भोगीपुर नगर में ललिता नाम की रूपसी अप्सरा और उसका पति ललित नाम का श्रेष्ठ गन्धर्व भी निवास करता था, दोनों के बीच बहुत ही अटूट प्रेम था वे सदा एक दूसरों को याद किया करते थे.
एक बार गन्धर्व ललित दरबार में गायन कर रहा था कि अचानक उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई और इससे उसका स्वर, लय और ताल बिगड़ने लगा और इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने पकड़ लिया और यह बात राजा पुण्डरीक को बता दी इससे राजा को गंधर्व ललित पर बहुत ही क्रोध आया और राजा पुंडरीक ने गन्धर्व ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया जिसके कारण से उसका शरीर आठ योजन का हो गया और उसका जीवन कष्टकारी होने हो गया वह जंगल में रहने लगा उधर उसकी पत्नी ललिता बहुत दुखी हो गई और अपने पति ललित के पीछे-पीछे दौड़ती रहती थी.
एक दिन ललिता घूमते हुए विंध्याचल पर्वत पर श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई जहां पर उसने मुनिवर श्रृंगी ऋषि से प्रार्थना करने लगी तब श्रृंगी ऋषि ने उसके आने का कारण पूछा तब उसने सारी बात उनको बताई. ललिता की बातों को पूरा सुनने के बाद श्रृंगी ऋषि ने कहा कि तुम कामदा एकादशी का व्रत रखो और उनका पुण्य अपने पति को दे दो वह जल्द ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा. श्रृंगी ऋषि के अनुसार अप्सरा ललिता ने चैत्र मास की शुक्ल एकादशी का व्रत किया और अगले दिन द्वादशी को पारण करके व्रत को पूरा किया फिर उसने भगवान श्रीहरि से प्रार्थना की कि वह इस व्रत का पुण्य अपने पति को देती है जिससे कि वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए.
भगवान विष्णु की कृपा से उसका पति ललित राक्षस योनि से मुक्त हो गया और दोनों पहले की तरह ही सुखमय जीवन जीने लगे और एक दिन विमान में बैठकर स्वर्ग लोक चले गए.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
कामदा एकादशी व्रत कथा के बारे में किसने किससे पूछा था ?
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से.
कामदा एकादशी व्रत कब रखा जाता है ?
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को.
कामदा एकादशी व्रत का मतलब क्या है?
सभी मनोकामना को पूर्ण करने वाला व्रत.
अप्सरा ललिता किस ऋषि से मिली थी ?
ऋषि श्रृंगी.
हिंदू नव वर्ष की पहली एकादशी कौन सी है?
कामदा एकादशी.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.