Peetal Bartan | हिंदू धर्म में पूजा – पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व होता हैं और इन सब में पीतल के बर्तनों का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है क्योंकि इसको पवित्र और शुभ माना जाता है. मान्यता है कि पीतल के बर्तन पूजा की शुद्धता को बनाएं रखने में सहायक होता हैं क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के साथ ही यह नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करता हैं. कहा जाता है कि पीतल के बर्तन का उपयोग करने से न केवल देवी – देवता प्रसन्न होते है बल्कि ग्रह शांति भी इससे होती हैं, तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों पूजा पाठ के लिए पीतल के बर्तनों को ही शुभ और पवित्र माना जाता हैं.
पीतल के बर्तनों का धार्मिक महत्व :
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पीतल का रंग पीला होने के कारण से यह भगवान विष्णु के साथ – साथ सभी देवी – देवताओं को प्रिय हैं और यह रंग बलिदान, त्याग और आध्यात्म का प्रतीक होने के साथ इसका संबंध बृहस्पति ग्रह से है जो ज्ञान, समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है तो वहीं हिंदू शास्त्रों में पीतल को स्वर्ण का प्रतीक माना गया है जो कि पवित्रता और धन का कारक होता हैं.पूजा पाठ में पीतल के बर्तनों का उपयोग करने से देवी – देवताओं का आशीर्वाद के साथ इनकी कृपा भी मिलती हैं और पूजा प्रभावशाली होती हैं. धार्मिक मान्यता है कि पीतल नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करके वातावरण को शुद्ध करती हैं जिससे कि पीतल के बर्तनों में रखा जल या फिर प्रसाद बहुत पवित्र और लंबे समय तक शुद्ध माना जाता है यही कारण है कि पूजा में पीतल के कलश, थाली, घंटी, दीया और आचमनी जैसे बर्तनों का इस्तेमाल करना शुभ होने के साथ पीतल के बर्तनों का उपयोग हिंदू धर्म के प्रत्येक संस्कार में जैसे कि बच्चे का जन्म, शादी, गोदभराई या फिर अंतिम संस्कार में किया जाता हैं क्योंकि यह पूजा स्थल को आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाने का कार्य करता हैं.
पीतल का वास्तु शास्त्र में महत्व :
वास्तु शास्त्र में पीतल को सकारात्मक ऊर्जा का कारक माना जाता है क्योंकि इसमें ऊर्जा को संतुलित करने की विशेष क्षमता होती है. माना जाता है कि पीतल नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करके वातावरण को पवित्र करने साथ यह पर्यावरण की नकारात्मक तरंगों को कम करना है और सकारात्मक ऊर्जा को भी आकर्षित करने में मददगार होता हैं. पूजा पाठ में पीतल के बर्तनों जैसे कि दीपक थाली और घंटी का उपयोग करने से घर में मंत्रों की ध्वनि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने के साथ ही वास्तु दोष भी दूर होता है लेकिन ध्यान रखें कि पीतल के बर्तन को उत्तर – पूर्व दिशा में रखना शुभ माना जाता है.
पीतल का ज्योतिष शास्त्र में महत्व :
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पीतल धातु का सीधा संबंध बृहस्पति ग्रह से होता हैं और बृहस्पति ग्रह को धन, धर्म, ज्ञान और संतान का कारक माने जाने के कारण से जिस जातक की कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर हो तो उसे पीतल के बर्तन का उपयोग करना चाहिए. मान्यता है कि पीतल के कलश में जल भरकर पूजा करना बहुत ही शुभ होता हैं इसके साथ पीतल की अगूंठी को भी पहनना शुभ होता हैं. ज्योतिष शास्त्र में जिक्र किया गया है कि पीतल के बर्तन से तुलसी पर जल अर्पित करने से धन की देवी मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है और अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देने के साथ ही उसके घर में सुख – समृद्धि भर देती हैं.
पीतल का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्व :
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो पीतल तांबा और जस्ता का मिश्रण होने की कारण से यह रोगाणुनाशक गुणों से भरपूर होने के साथ इसमें रखी चीजों में जीवाणु पनप नहीं पाता यही वजह है कि पीतल के बर्तनों में रखा गया जल लंबे समय तक पवित्र रहने के साथ जीवाणु रहित रहता हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता हैं.
पीतल के बर्तनों को रखने की सही जगह :
वास्तु के अनुसार पीतल के बर्तनों को उत्तर – पूर्व दिशा में रखना शुभ होता हैं. पीतल के बर्तन को पूजा के बाद ढककर रखें जिससे कि धूल या फिर नकारात्मक ऊर्जा का असर नहीं पड़े इसके साथ ही दीपक, लोटा, थाली और घंटी को भी पूजा स्थल पर व्यवस्थित करें क्योंकि पीतल के बर्तन से पूजा करने से देवी – देवताओं की कृपा मिलने के साथ के ही मानसिक शांति की भी प्राप्ति होती है इसके अलावा यह घर में सकारात्मक ऊर्जा को बनाएं रखने के साथ यह पितरों की भी कृपा मिलती हैं.
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FAQ – सामान्य प्रश्न
1) पीतल का संबंध किस ग्रह से है ?
बृहस्पति ग्रह.
2) पीतल के बर्तन को किस दिशा में रखना चाहिए ?
उत्तर – पूर्व दिशा.
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