Karwa Chauth Vrat Katha | करवा चौथ क्यों मनाया जाता है, आखिर कौन है करवा माता? जिसके कारण इस व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा.

Karwa Chauth Vrat Katha

Karwa Chauth Vrat Katha | भारतीय महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत सबसे महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह व्रत अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और पति की लंबी उम्र की कामना के लिए किया जाता हैं. हिन्दू पंचाग के अनुसार हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता हैं. इस पावन पर्व में सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है और सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव, माता पार्वती, करवा माता, गणेश और चंद्रमा की पूजा करती हैं. इस दिन व्रती महिलाएं व्रत के सारे नियमों का पालन करने के साथ ही करवा माता से पति और परिवार की उन्नति की कामना करती हैं. करवा चौथ में करवा माता की पूजा की जाती हैं. लेकिन आपने कभी सोचा या फिर जानना चाहा कि आखिर कौन करवा माता हैं जिसके वजह से इस पर्व का नाम करवा चौथ पड़ा.

Karwa Chauth Vrat Katha | आइए जानते हैं इस कथा से करवा माता के बारे में :

पौराणिक कथा के अनुसार, कई वर्षों पहले एक गांव में एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री उसका पति बहुत उम्र दराज था. एक दिन उनके पति नदी में स्नान करने के लिए गए तो नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और खींचकर नदी के अंदर की ओर निगलने के लिए जाने लगा.अपनी बचाव में उसके पति चिल्लाकर अपनी पत्नी करवा को पुकारा पति की आवाज़ सुनकर करवा नदी के किनारे पहुंच गई और मगरमच्छ को अपनी सूती साड़ी से धागा निकाल कर, चुकी करवा बहुत पतिव्रता थी जिससे उसके सतीत्व में बहुत बल था और इसी सतीत्व के तपोबल के माध्यम से उस मगरमच्छ को बांध दिया मगरमच्छ भी करवा के सतीत्व के आगे अपने आपको हिला तक नहीं पाया.

मगरमच्छ को बांधने के बाद करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति का जीवनदान मांगा और मगरमच्छ के लिए मृत्यु दंड देने को कहा इस पर यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी पूरी नही हुई हैं इसलिए वह समय से पहले इसको मृत्यु नहीं दे सकते लेकिन तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी हैं. यमराज की इस बात पर करवा क्रोधित हो गई और उन्होंने यमराज से कहा कि अगर आप मगरमच्छ को मारकर मेरे पति को चिरायु का वरदान नहीं देंगे तो मैं अपने सतीत्व के तपोबल से आपको नष्ट कर दूंगी. यमराज करवा की बात सुनकर सोच में पड़ गए क्योंकि करवा के सतीत्व के कारण ना तो वह उसको श्राप दे सकते थे और ना ही उनके वचन को अनदेखा कर सकते थे तब यमराज ने मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और उसके पति को चिरायु का वरदान और आशीर्वाद भी दिया कि तुम्हारा जीवन सुख समृद्धि से भरा होगा.

यमराज ने करवा से आगे कहा कि जिस तरह तुमने अपने सतीत्व के तपोबल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की है उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ, मैं वरदान देता हूँ कि आज की तिथि के दिन जो भी स्त्री पूरी विश्वास के साथ तुम्हारा व्रत और पूजन करेगी उसके सौभाग्य की रक्षा मैं स्वयं करूंगा. इस दिन कार्तिक मास की चतुर्थी होने के कारण करवा और चौथ मिलने से इसका नाम करवा चौथ पड़ेगा. इस तरह माँ करवा पहली महिला हैं जिन्होंने अपने सुहाग की रक्षा के लिए न सिर्फ केवल व्रत किया बल्कि करवा चौथ की शुरुआत भी किया.

करवा चौथ के व्रत को करने के बाद शाम को पूजा करने के बाद माता करवा चौथ की कथा पढ़नी चाहिए और इसके साथ ही करवा माता से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि – ” हे करवा माता! जिस तरह आपने अपने सुहाग और सौभाग्य की रक्षा की उसी प्रकार हमारे सुहाग कि आप रक्षा करें ” और साथ ही यमराज से विनती करें कि वो अपना वचन निभाते हुए हमारे व्रत को स्वीकार करें और हमारे सौभाग्य की रक्षा करें. करवा माता के द्वारा बांधा गया वो कच्चा धागा प्रेम और विश्वास का था. इसके चलते ही यमराज सावित्री के पति के प्राण को अपने साथ नहीं ले जा पाएं.

इस लेख को पढ़ने के बाद आप सभी जान ही चुके है कि करवा माता कौन थी जिसके कारण इन व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा.


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 FAQ – सामान्य प्रश्न

करवा चौथ में किस किस भगवान की पूजा की जाती हैं ?

भगवान शिव, माता पार्वती, गणेशजी, करवा माता  और चंद्रमा.

करवा माता कैसी स्त्री थी?

पतिव्रता स्त्री

करवा माता के पति के पैर को किसने पकड़ लिया था ?

मगरमच्छ

करवा माता ने किससे अपने पति के लिए चिरायु का वरदान मांगा ?

यमराज. 


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