Chaurchan Parv | मिथिला अपनी सभ्यता – संस्कृति और पर्व त्योहार की परंपराओं को लेकर सदैव प्रसिद्ध रहा है. प्राचीन काल से मिथिलांचल में पर्व – त्यौहारों की अद्भुत परंपरा देखने को मिलता हैं और इसके साथ मिथिला की संस्कृति प्रकृति पूजक भी रही हैं. मिथिलांचल में लोक पर्व के रूप में जल से लेकर अग्नि और सूर्य से लेकर चंद्रमा तक की पूजा किया जाता हैं यहां तक कि यह प्रांत छठ पूजा में डूबते – उगते सूर्य को ही नहीं बल्कि कलंकित चांद को भी चौठ चंद्र पर्व के रूप में मनाता है. चौठ चन्द्र पर्व को स्थानीय मैथिली भाषा में चौरचन पर्व कहा जाता हैं जो कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को इस पर्व को विधिवत के साथ मनाई जाती हैं. मान्यता है कि भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि में चांद को देखने की मनाही होती है कहा जाता है कि भादों की इस चौथ को चांद कलंकित होता है लेकिन मिथिलांचल में इस दिन सभी समुदायों के लोग अपने आंगन में छठ पर्व के समान ही पूरे विधि विधान से चांद को अर्ध्य देकर दर्शन करके कलंक मुक्ति की कामना किया करते हैं.
Chaurchan Parv | चौरचन पर्व से जुड़ी विशेष जानकारियां :
1) आइए पहले जानते हैं चांद कैसे हुआ कलंकित :
चांद के कलंकित होने के पीछे एक पौराणिक कथा है और यह कथा गौरी पुत्र गणेश से संबंध रखती है.कथानुसार एक बार गणेश जी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि में कहीं से आ रहे थे तो वह फिसल के गिर गए उनके ढुलमुल शरीर को देखकर चांद हंस पड़े खुद को खूबसूरत समझने वाले चंद्र से गणेश ने उनकी चांदनी चुराकर चांद को कांतिहीन करके श्राप दिया कि आज के तिथि, दिन में जो कोई तुम्हें देखेगा तो उस पर चोरी और झूठ का कलंक लगेगा कहा जाता हैं कि इस श्राप से स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी नहीं बच पाएं और उन पर दिव्य मणि चुराने का झूठा आरोप लगा था.
2) आइए जानते हैं इस पर्व की शुरुआत से जुड़ी कथा को :
1568 में मिथिला की गद्दी पर हेंमागद ठाकुर एक महात्मा राजा बैठा. कहा जाता हैं कि हेंमागन्द राजा तो बन गए किंतु उनको जनता से कर लेना और प्रताड़ित करना यह सब इनके बस की बात नही थी पर दिल्ली के ताज बादशाह को लगान तो समय पर चाहिए था इसके लिए उसने हेंमागन्द को तलब किया लेकिन जब उनसे पूछताछ हुआ तो वे बोले कि पूजा पाठ करने में कर का ध्यान नहीं रहा. इस बात को बादशाह नहीं माना और हेमागन्द पर उसने कर चोरी का आरोप लगाते हुए कैद में डाल दिया. राजा हेंमागन्द ठाकुर कैद में रहकर केवल बांस की खपच्चियों, पुआलों और तिनकों और जमीन पर गणनाएं करके आने वाले 500 सालों तक घटने वाली सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की तिथियों को बताने के साथ ही इसके आगे के लिए गणना की सरल विधि को भी निकाला और उन्होंने यह सारा विवरण “ग्रहण माला” नामक पुस्तक में संकलित किया.
एक दिन हेमागन्द ठाकुर को यही खगोल गणना में जुटते देखकर पहरी ने बादशाह को बोला कि मिथिला का राजा पागल हो गया है तब बादशाह स्वयं हेमागन्द को देखने कारागार पंहुचा. बादशाह वहां पहुंच पर जमीन पर अंकों और ग्रहों के चित्र देखकर हेमागन्द से पूछा कि पूरे दिन यह क्या लिखते रहते हैं. हेमागन्द ने बताया कि यहां कोई काम नहीं इसलिए ग्रहों की चाल गिन रहा था लगभग 500 वर्ष तक लगने वाले ग्रहणों की गणना पूरी हो गई हैं तब फौरन हेमागन्द को बादशाह ने ताम्रपत्र और कलम उपलब्ध कराने की आज्ञा देकर कहा कि अगर आपकी भविष्यवाणी सत्य हो गई तो आपकी सजा माफ कर दी जाएगी. हेमागन्द ने बादशाह को चंद्रग्रहण की भविष्यवाणी करते हुए माह, तारीख और समय को बताया जो कि सच साबित हुआ तब बादशाह ने सिर्फ हेमागन्द की सजा ही नहीं माफ की बल्कि आगे से उन्हें किसी तरह का कर देने से भी मुक्त कर दिया. हेमागन्द ठाकुर जब अकर (टैक्स फ्री) राज्य लेकर मिथिला आएं तो रानी हेमलता ने कहा कि मिथिला का चांद आज कलंक मुक्त हो गए हैं हम उनका दर्शन और पूजन करेंगे.
रानी हेमलता की पूजन की बात जनता तक पहुंची और लोगों ने भी चंद्र पूजा की अपनी इच्छा को जाहिर किया इस तरह से 16वीं सदी में मिथिला की महारानी हेमलता ने चंद पूजने की इस परंपरा को सार्वजनिक पूजा के रूप में शुरुआत की. हर घर में पकवान उपलब्ध कराने का आदेश स्वयं महारानी हेमलता ने दिया तब एक परिवार दूसरे परिवार के यहां पकवान भेजने लगे. इस तरह से भाद्रपद की शुक्लपक्ष की चौथ तिथि को चंद पूजने की ऐसी परंपरा शुरू हुई जो देखते ही देखते लोग पर्व का रूप लिया. राजा हेमगन ठाकुर ने मिथिला के पंडितों से राय विचार करने के पश्चात इस पर्व को लोक पर्व का दर्जा दिया.
इस प्रकार से मिथिला के लोगों ने कलंक मुक्ति की कामना को लेकर चतुर्थी चांद की पूजा की शुरुआत की और हर साल इस दिन मिथिला के लोग शाम को अपनी सुविधा अनुसार घर के आंगन या फिर छत पर गाय के गोबर से नीप कर पीठार से अरिपन देते हैं फिर इसी अरिपन पर पूरी पकवान फल मिठाई दही इत्यादि को सजाकर घर की बूढी दादी अम्मा या फिर पूजा करने वाली स्त्री हाथ में खीर पूरी की थाली और मिट्टी के बर्तन में जमाएं गए दही को उठाकर चंद्रमा का दर्शन करके उन्हें अर्ध्य देकर उन्हें भोग लगाया जाता है.
उम्मीद है कि आपको मिथिलांचल लोक पर्व से जुड़ा हुआ यह लेख पसंद आया होगा तो इसे अधिक से अधिक अपने परिजनों और दोस्तों के बीच शेयर करें और ऐसे ही लोकेपर्व से जुड़े लेख को पढ़ने के लिए जुड़े रहे madhuramhindi.com के साथ.
FAQ – सामान्य प्रश्न
1) चौठ चांद किस प्रांत का लोक पर्व है ?
मिथिलांचल.
2) चौठ चांद (चौरचन) कब मनाया जाता हैं ?
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी.
3) भगवान गणेश ने किसको श्राप दिया था ?
चंद्रमा.
4) मिथिलांचल किस राज्य का हिस्सा है ?
बिहार
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.