Jagannath Puri Temple | हिन्दू धर्म के अनुसार चार धाम बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम और पुरी है. माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों धाम पर बसे तो सबसे पहले वे बद्रीनाथ गए वहां स्नान किया, स्नान करने के बाद गुजरात के द्वारिका गए वहां कपड़े बदले, द्वारिका के बाद ओडिशा के पुरी में भोजन किया और अंत में तमिलनाडु के रामेश्वरम में आराम किया. द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ. पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है यहां भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की काठ यानि कि लकड़ी की मूर्तियां है. लकड़ी की मूर्तियों वाला ये देश का अनोखा मंदिर हैं.
मंदिर से जुड़ी एक मान्यता हैं कि जब भगवान कृष्ण ने अपनी देह का त्याग किया और जब उनका अंतिम संस्कार किया गया तो शरीर के एक हिस्से को छोड़कर उनकी पूरी देह पंचतत्व में विलीन हो गई, माना जाता हैं कि भगवान कृष्ण का ह्रदय अंतिम संस्कार में नहीं जला बल्कि एक जिंदा इंसान की तरह धड़कता रहा कहते है वो दिल आज भी सुरक्षित है जो भगवान जगन्नाथ की लकड़ी की मूर्ति के अंदर हैं.
पुराणों में जगन्नाथ पुरी मंदिर को धरती का बैकुण्ठ कहा गया है क्योंकि ये मंदिर भगवान के चार धामों में से एक हैं, इसी को श्री क्षेत्र, श्री पुरूषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरी और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं. यहाँ लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह तरह की लीलायें की थीं.
ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरूषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए, इन सबर जनजाति के देवता होने के कारण भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह हैं. जगन्नाथ मंदिर इस सबर जनजाति के पुजारियों के अलावा ब्राह्मण पुजारी भी होता है लेकिन ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जाति के दैतापति यानि पुजारी जगन्नाथ जी की सारी पूजन विधि करते है. पुराण की माने तो नीलगिरी में पुरूषोत्तम हरि की पूजा की जाती हैं. पुरूषोत्तम हरि को यहाँ भगवान राम का रूप माना गया है, सबसे पुराने ग्रंथ मत्स्य पुराण के अनुसार पुरूषोत्तम क्षेत्र की देवी विमला है जिनकी यहां पूजा होती है
रामायण के उत्तराखंड के अनुसार भगवान राम ने रावण के छोटे भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता भगवान जगन्नाथ की आराधना और पूजा करने को कहा. आज भी पुरी के श्री मंदिर में विभीषण वन्दपाना की परम्परा कायम हैं.
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