Jagannath Puri Temple | क्यों अधूरी हैं जगन्नाथ पुरी की प्रतिमा, जानिय इस मंदिर को बनाने की पौराणिक कथा को

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Jagannath Puri Temple | पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों  में से एक हैं ,यहाँ भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं. हिंदुओं की प्राचीन और पवित्र सात नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है.जगन्नाथ मंदिर विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण को समर्पित हैं.

अब आगे जानते है इस मंदिर की निर्माण की कथा को और साथ मे इस रहस्य को भी जानते  हैं कि आखिर क्यों अधूरी हैं इस मंदिर की मूर्तियां:

Jagannath Puri Temple | मंदिर को बनाने की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता यशोदा, देवकी और बहन सुभद्रा वृंदावन से द्वारका आई. उनके साथ और भी रानियां थी जो हठ करने लगी कि वे उन्हें श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का बताये बहुत निवेदन करने पर इस बात पर माता यशोदा और देवकी उन रानियों को लीलाएं सुनाने के लिए राजी हो गई कि उनकी बातों को कृष्ण और बलराम सुन ना लें इसके लिये माता देवकी ने सुभद्रा जो कृष्ण जी की बहन थीं को बाहर दरवाजे पर पहरा देने को बोली.

माता यशोदा ने कृष्ण की लीलाओं की गाथा को शुरू किया और जैसे – जैसे बोलती गई सब उनकी बातों में मग्न होने लगे यहां की स्वंय सुभद्रा भी पहरा देने को भूलकर उनकी बातों को सुनने लगीं, लेकिन इस बीच कृष्ण और बलराम दोनों वहां आ गए किन्तु इस बात की किसी को पता ना चला खुद सुभद्रा भी इतनी मगन थी कि उसे भी भनक नही हुई कि कृष्ण यानि कान्हा और बलराम कब वहाँ गए.

भगवान कृष्ण और भाई बलराम दोंनो भी यशोदा माता के मुख से अपनी  लीलाओं को सुनने लगे. अपनी शैतानियों और बाल क्रियाओं को सुनते सुनते उनके बाल खड़े हो गए, आश्चर्य के कारण आँखे बड़ी हो गई और मुंह खुला रह गया वहीं खुद सुभद्रा भी इतनी मंत्रमुग्ध हो गई कि वह प्रेम भाव में पिघलने लगीं यही वजह है कि जगन्नाथ मंदिर में उनका कद सबसे छोटा है. जब सभी कृष्ण जी लीलाओं को सुन रहे थे कि  इस बीच वहां नारद मुनि आ गए.

नारद जी सबके हावभाव देखने लगे ही थे कि सबको अहसास हुआ कि कोई आ गया है और कृष्ण लीला का पाठ वहीं रुक गया, नारदजी जब कृष्ण को मोह लेने वाले अवतार को देखने तो बोले “वाह! प्रभु, आप कितने सुंदर और मोहक लग रहे हैं, आप इस रूप में अवतार कब लेंगे?” उस समय कृष्ण जी ने कहा कि वह कलियुग में ऐसा अवतार जरूर लेंगे.

कलयुग शुरू होने के कई सालों बाद मालवा नामक राज्य था जिसका राजा इंद्रयुमं था जिसके पिता का नाम भारत और माता का नाम सुमति था,राजा इंद्रयुमं अपने शासन काल में कई विशाल यज्ञ करवाये और साथ ही एक सरोवर बनवाया. एक रात भगवान विष्णु ने उनको सपने में दर्शन दिए और कहा “नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है उसे नीलमाधव कहते है तुम एक मंदिर बनवाकर उसमें मेरा यह मूर्ति स्थापित कर दों”. राजा ने अपने सेवकों को नीलांचल पर्वत की खोज में भेजा उसमें से एक था ब्राह्मण विद्यापति. विद्यापति ने सुन रखा था कि सबर कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते है और उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा में छुपा रखा है, वह यह भी जानता था कि सबर कबीले का मुखिया विश्ववसु नीलमाधव का उपासक है और उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा है. चतुर विद्यापति ने मुखिया की बेटी से विवाह कर लिया आखिर में वह अपनी पत्नी के जरिए नीलमाधव की गुफा तक पहुंचने में सफल हो गया उसने मूर्ति चुरा ली और राजा इंद्रयुमं को लाकर दे दी. विश्ववसु अपने आराध्य देव की मूर्ति चोरी होने से बहुत दुखी हुआ, अपने भक्त के दुःख से भगवान भी दुखी हो गये और वापस गुफा में लौट आये लेकिन साथ ही राजा इंद्रयुमं से वादा किया कि वो एक दिन उनके पास ज़रूर लौट आएंगे लेकिन शर्त की वो एक दिन उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दें.राजा मंदिर बनवाने के बाद भगवान विष्णु को उस मंदिर में विराजमान होने के लिए कहा किन्तु भगवान विष्णु ने कहा”तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिये समुन्द्र में तैर रहा उस पेड़ का एक बड़ा टुकड़ा उठाकर लाओ जो द्वारिका से समुद्र में तैरकर पुरी आ रहा है. राजा के सेवकों ने उस पेड़ के टुकड़े को तो ढूंढ लिया लेकिन सब मिलकर भी उस पेड़ के टुकड़े को नहीं उठा पाए तब राजा को समझ आया कि इस कार्य को पूरा करने के लिए नीलमाधव के अनन्य भक्त सबर कबीले के मुखिया विश्ववसु की ही सहायता लेनी होगी और हुआ भी यहीं विश्ववसु भारी भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले गया इस घटना से हर कोई हैरान रह गया.

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अब बारी थी लकड़ी से भगवान की मूर्ति बनाने की किन्तु राजा के कारीगरों ने लाख कोशिश किया पर लकड़ी में एक छैनी तक कोई भी नहीं लगा सका, तब तीनोँ लोक के कुशल कारीगर भगवान विश्वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का रूप धरकर आये और राजा से बोले कि वो नीलमाधव की मूर्ति बना सकते है लेकिन एक शर्त है कि वे अकेले 21दिन में मूर्ति बनायेंगे कोई भी उनको बनाते हुए नहीं देख सकता. राजा ने उनकी इस शर्त को मान लिया. लोगों को आरी, छैनी, हथौड़ी की आवाजें आती रहीं लेकिन राजा इंद्रयुमं की रानी गुंडिचा अपने को रोक नहीं पाई वह दरवाजे के पास गई तो उसे कोई भी आवाज सुनाई नहीं दी तो वो घबरा गई कि कहीं बूढ़ा कारीगर मर तो नही गया और यही सूचना राजा को दिया चुकी वाकई में अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी तो राजा को भी यही लगा की सच मे बूढ़े कारीगर की मौत हो गया. सभी शर्तों और चेतावनियों को दर किनार करते हुए राजा ने कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दिया.

जैसे ही दरवाजा खुला तो बुढ़ा व्यक्ति गायब था और तीन अधूरी मूर्तियां मिली, तब उन्हें अहसास हुआ कि बूढ़ा कारीगर कोई और नही बल्कि खुद विश्वकर्मा थे शर्त के खिलाफ जाकर दरवाजा खोलने से वह चले गए. राजा ने इसे भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया. यही कारण है कि जगन्नाथ पुरी के मंदिर में कोई पत्थर या फिर अन्य धातु की मूर्ति नहीं बल्कि पेड़ के तने को इस्तेमाल करके बनाई गई लकड़ी की मूर्ति की पूजा की जाती हैं.

इस मंदिर के गर्भगृह में श्रीकृष्ण, सुभद्रा और बलभद्र (बलराम) की मूर्ति विराजमान हैं. कहा जाता हैं कि बहन सुभद्रा को अपने मायके द्वारिका से बहुत प्रेम था इसलिए उनकी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा जी ने अलग रथों में बैठकर द्वारिका का भृमण किया था तब से आज तक पुरी में हर वर्ष रथयात्रा निकली जाती हैं. 

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हैं. madhuramhindi.com इसकी पुष्टि नहीं करता हैं