Shri Ram | भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ चौदह (14) वर्ष वनवास में गुजारे जिसमें लगभग के बारह (12) साल उन्होंने छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में बिताए थे जहां उन्होंने बारह (12) स्थानों में चतुमार्स बीताने के साथ साथ भगवान शिव की आराधना किया. श्रीराम जंगल में रहने वाले साधु संतों से मिलें और ज्ञान को अर्जित करने के साथ ही साधु साधकों को परेशान करने वाले राक्षसों का वध किया और दंडकारण्य वन को राक्षसों से भी मुक्त किया.
Shri Ram | श्री राम का ननिहाल छत्तीसगढ़ और उनका वनवास जीवन
तो चलिए जानते हैं कि भगवान श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में कहां – कहां वनवास जीवन को बीताया था और इनसे जुड़ी रहस्यों से भरी जानकारी : –
1) भगवान श्रीराम ने सीता जी और लक्ष्मण के साथ छत्तीसगढ़ में सीतामढ़ी – हरचौका से प्रवेश किया था जोकि भरतपुर के पास स्थित यह जगह मवाई नदी के तट पर है इस मवाई नदी के तट पर स्थित गुफा को काटकर सत्रह (17) कक्ष को बनाया गया था जहां श्रीराम रहकर भगवान शिव की आराधना किया यहां शिवलिंग स्थापित हैं जो इस बात का प्रमाण है इस जगह को हरचौका (रसोई) के नाम से जाना जाता हैं.
हरचौका में कुछ समय गुजारने के बाद वह मवाई नदी से होकर रापा नदी पहुंचे और यहां से सीतामढ़ी घाघरा पहुंचे जहां कुछ दिन रुकने के पश्चात घाघरा से कोटडोल गए और यहां से नेउर नदी तट पर बने छतौड़ा पहुंचे जहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने पहला चतुमार्स को बिताया था. यहीं पर अत्री मुनि के आश्रम में माता अनुसुइया ने सीता माता को नारी धर्म का ज्ञान दिया था यही कारण है कि इस जगह को सीतामढ़ी के नाम से जाना जाता हैं.
2) भगवान श्रीराम (Shree Ram Chandra), माता सीता और लक्ष्मण छतौड़ा आश्रम से देवसील होकर रामगढ़ की तलहटी से होकर सोनहत पहुंचे जहां तीनों ने सीताबेंगरा और जोगीमारा गुफा में दूसरा चतुमार्स बिताया कहा गया है कि यही हसदो नदी का उद्गम होता हैं और इसी नदी के किनारे चलते हुए तीनों अमृतधारा गए यहां कुछ दिन रहने के बाद तीनों जटाशंकरी गुफा और फिर बैकुंठपुर होकर पटना देवगढ़ आए और आगे सूरजपुर में रेण नदी के तट पहुंचे फिर विश्रामपुर होते हुए अंबिकापुर पहुंचे पहले सारारोर जलकुण्ड से होकर महानदी तट से चलते हुए ओडगी पहुंचे.
3) ओडगी के बाद हथफोर गुफा से होते हुए श्रीराम, सीता और लक्ष्मण लक्ष्मणगढ़ पहुंचे और फिर महेशपुर में ऋषियों का मार्गदर्शन लेकर चंदन मिट्टी गुफा पहुंचे और रेणु नदी के तट से होकर बड़े दमाती व शरणभजा गांव आएं और यहां से मैनी नदी व मांड नदी तट से होते हुए देउरपुर आएं. रॉक्सगन्दा में हज़ारों राक्षसों वध किया फिर किलकिला में तीसरा चतुमार्स बिताकर धर्मजयगढ़ पहुंचे इसके बाद अंबे टिकरा होते हुए चंद्रपुर आएं इस तरह सरगुजा और जशपुर क्षेत्र में तीन साल बिताया.
4) चंद्रपुर के बाद राम शिवरीनारायण पहुंचे जहां तीनों ने चौथा चतुमार्स बिताया इसके बाद खरौद फिर वहां से मल्हार गए और वहां से महानदी के तट पर चलकर आगे बढ़े और धमनी नारायणपुर होते हुए तुरतुरिया स्थित वाल्मीकि आश्रम पहुंचे. यहां कुछ दिन बीताने के बाद सिरपुर आएं और यहां से आरंग होकर फिंगेश्वर के मांडव्य आश्रम पहुंचे इसके पश्चात चंपारण होते हुए कमलक्षेत्र राजिम पहुंचे और यहां से पंचकोशी तीर्थ की यात्रा करते हुए आगे बढ़े और मगरलोड से सिरकट्टी आश्रम होते हुए मधुवन पंहुचकर देवपुर गए और फिर पांडुका होते हुए अतरभरा में अत्रि ऋषि के आश्रम पंहुचे फिर रुद्री, गंगरेल होते हुए दुधावा होकर देवखूंट और फिर सिहावा पहुंचे.
5) धमतरी जिले के पास सिंहवा नगरी में राम का सबसे ज्यादा समय बीता है मान्यता है कि सिंहवा में रहने वाले ऋषि श्रृंगी राजा दशरथ के दत्तक पुत्री शांता के पति थे जिससे कि यह स्थान श्रीराम के जीजाजी का रहा है. यहां स्थित शांता गुफा इसका प्रमाण है.
6) अपने वनवास काल में राम सीता ने आरंग से नदी मार्ग से चंपारण और फिर महानदी जल मार्ग से राजिम में प्रवेश किया. कहा जाता हैं कि महानदी, सोंढूर और पैरी नदी के संगम के कारण छत्तीसगढ़ का प्रयागराज कहा जाने वाला राजिम प्राचीन समय में कमलक्षेत्र पद्मावतीपूरा था. तीनों लोमश ऋषि के आश्रम में कुछ समय बीताया था और कुलेश्वर महादेव की स्थापना करके उनका पूजन किया और फिर पंचकोशी यात्रा किया था.
7) पौराणिक और ऐतिहासिक ग्रँथों में रामगिरि पर्वत का उल्लेख है. सरगुजा जिले का यहीं रामगिरि रामगढ़ पर्वत है.यहां स्थित सीताबेंगरा जोगीमारा गुफा की रंगशाला को विश्व का सबसे पुराना रंगशाला माना जाता है. वन गमन समय में श्रीरामचन्द्र जी के साथ सीताजी ने यहां कुछ समय को गुजरा था जिससे इस गुफा के नाम सीताबेंगरा हुआ.
8) अयोध्या से निकलने के बाद सबसे पहले राम, सीता और लक्ष्मण तमसा नदी पंहुचे थे और यहां से प्रयागराज होकर श्रृंगवेरपुर गए जहां पर उनकी मुलाकात निषादराज गुहा से हुआ था जो कि वर्तमान में यह जगह सिंगरौर के नाम से जाना जाता हैं. यहीं से निषादराज की नाव में सवार होकर उन तीनों ने गंगा नदी पार की थी और नदी के दूसरे ओर करई नाम के स्थान पर कुछ देर विश्राम किया था.
9) प्रयागराज के बाद श्रीराम मध्यप्रदेश के चित्रकूट पहुंचे थे तो यहीं पर भरत राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार लेकर पहुंचे थे और जब श्रीराम वापस चलने को तैयार नहीं हुए तब भरत उनकी चरण पादुका लौट गए थे. चित्रकूट के वन में ही अत्रि ऋषि का आश्रम था जिनके सानिंध्य में श्रीराम ने कुछ समय बिताए थे और अत्रि ऋषि के आश्रम के बाद दण्डकारण्य शुरू होता था.
10) चन्द्रवंशीय राजाओं के नाम से चन्द्रपुरी कहलाने वाला ग्राम चन्द्रखुरी माता कौशल्या की जन्म स्थली और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का ननिहाल है जो राजधानी रायपुर से 27 km की दूरी और दुर्ग जिले में स्थित 126 तालाबों वाले इस गांव में जलसेन तालाब के बीच में भारत का एकमात्र माता कौशल्या का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है जिसमें उनके गोद में पुत्र रामचंद्र जी बैठे हैं.
11) जांजगीर चाँपा जिले में प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण शिवनाथ, जोंक और महानदी का त्रिवेणी संगम स्थल शिवरीनारायण है इस विष्णुकांक्षी तीर्थ का सम्बध शबरी और नारायण से होने के कारण इसे शबरीनारायण या फिर शिवरीनारायण कहते हैं मान्यता है कि इसी जगह पर माता शबरी ने वात्सलवश बेर चखकर मीठे बेर रामचंद्र जी को खिलाएं थे कहा जाता हैं कि यहां कृष्णा वट वृक्ष के पत्ते दोने जैसे है.
उम्मीद है कि आप इस लेख को पढ़ने के बाद जान ही गए होंगे कि छत्तीसगढ़ के रोम रोम में बसे हुए हैं श्रीराम तो एक बार अपने जीवन काल में अयोध्या जी और भगवान श्रीराम के ननिहाल छत्तीसगढ़ में जरूर आये और इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करें और ऐसे ही धर्म से जुड़े लेख को पढ़ने के लिए जुड़े रहे madhuramhindi.com के साथ.
FAQ – सामान्य प्रश्न
भगवान श्रीराम के जीजाजी का नाम क्या है ?
श्रृंगी ऋषि.
श्रीराम का ननिहाल कहां हैं?
चन्द्रखुरी जिला दुर्ग छत्तीसगढ़.
राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार श्री राम को कहा मिला था ?
मध्यप्रदेश के चित्रकूट में.
छत्तीसगढ़ का प्रयागराज किसे कहा जाता हैं ?
राजिम.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना ज़रूरी है कि madhuramhindi.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता हैं.