Maa Baglamukhi Chalisa PDF Download | माँ बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं जिनको पीताम्बरा माता भी कहा जाता है मान्यता है कि संपूर्ण सृष्टि में जो भी तरंग हैं वो इन्ही के कारण से हैं और यह स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री है अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का स्वरूप नवयौवना हैं यह पीले रंग की साड़ी को धारण किए हुए सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं इनके तीन नेत्र और चार हाथ है सिर पर सोने का मुकुट हैं.
कहा जाता हैं कि माँ बगलामुखी भगवती पार्वती का उग्र स्वरूप है और माता बगलामुखी के इस रूप की पूजा खासकर गुप्त नवरात्रों में किया जाता है और जो भक्त माँ बगलामुखी पर पूरी श्रद्धा रखता है भरोसे के साथ माँ का ध्यान करता है उस भक्त पर माँ सदैव ध्यान और कृपा रखती हैं. मान्यता है कि जो भी भक्त पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ माँ बगलामुखी चालीसा का पाठ दोंनो संध्याओं में करते हैं तो माँ उनकी सारी मनोकामनाओं की पूर्ति करने के पश्चात शत्रुओं से रक्षा करके उनका नाश भी बगलामुखी माता ही करती हैं.
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Maa Baglamukhi Chalisa PDF | माँ बगलामुखी चालीसा
माँ बगलामुखी चालीसा (Maa Baglamukhi Chalisa – PDF Download) हिंदी PDF डाउनलोड करें, नीचे लिंक दिया हुआ है.
Maa Baglamukhi Chalisa in Hindi
॥ अथ श्री बगलामुखी चालीसा ॥
नमो महाविद्या बरदा, बगलामुखी दयाल ।
स्तंभन क्षण में करें, सुमरित अरिकुल काल ॥
नमो नमो पीताम्बरा भवानी, बगलामुखी नमो कल्यानी ।
भक्त वत्सला शत्रु नशानी, नमो महाविद्या वरदानी ॥
अमृत सागर बीच तुम्हारा, रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा ।
स्वर्ण सिहांसन पर आसीना, पीताम्बर अति दिव्य नवीना ॥
स्वर्णभूषण सुंदर धारे, सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे ।
तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मूदुर पाश कराला ॥
भैरव करे सदा सेवकाई, सिद्ध काम सब विध्न नसाई ।
तुम हताश का निपट सहारा, करे अकिंचन अरिकल धारा ॥
तुम काली तारा भुवनेशी, त्रिपुर सुंदरी भैरवी वेशी ।
छिन्नभाल धुमा मातंगी, गायत्री तुम बगला रंगी ॥
सकल शक्तियां तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे ।
दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन ॥
दुष्टोच्चाटन कारक माता, अरि जिव्हा कीलक सघाता ।
साधक के विपत्ति कि त्राता, नमो महामाया प्रख्याता ॥
मुद्र्र शिला लिये अति भारी, प्रेतासन पर सवारी ।
तीन लोक दस दिशा भवानी, बिचरहु तुम हित कल्यानी ॥
अरि अरिष्ट सोचे जो जन को ,बुद्धि नाशकर कीलक तन को ।
हाथ पांव बाँधहु तुम ताके, हनहु जीभ बिच मुद्र्र बाके ॥
चोरों का जब संकट आवे, रण में रिपुओं से घिर जावे ।
अनल अनिल बिप्लव घहरावे, वाद विवाद न निर्णय पावे ॥
मूठ आदि अभिचारण संकट, राजभीति आपत्ति सन्निकट ।
ध्यान करत सब कष्ट नसावे, भूत प्रेत न बाधा आवे ॥
सुमरित राजव्दार बंध जावे, सभा बीच स्तम्भवन छावे ।
नाग सर्प ब्रचिरश्रकादि भयंकर, खल विहंग भागाहि सब सत्वर ॥
सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मुलच्चाटन कारी ।
स्त्री पुरुष राज सम्मोहक, नमो नमो पीताम्बर सोहक ॥
तुमको सदा कुबेर मनावे, श्री समृद्धि सुयश नित गावें ।
शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता, दुःख दारिद्र विनाशक माता ॥
यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता, शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता ।
पीताम्बरा नमो कल्यानी, नमो माता बगला महारानी ॥
जो तुमको सुमरै चितलाई, योग क्षेम से करो सहाई ।
आपत्ति जन की तुरत निवारो, आधि व्याधि संकट सब टारो ॥
पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूँ निहोरी ।
मैं कुपुत्र अति निवल उपाया, हाथ जोड़ शरणागत आया ॥
जग में केवल तुम्ही सहारा, सारे संकट करहुँ निवारा ।
नमो महादेवी हे माता, पीताम्बरा नमो सुखदाता ॥
सोम्य रूप धर बनती माता, सुख सम्पत्ति सुयश की दाता ।
रोद्र रूप धर शत्रु संहारो, अरि जिव्हा में मुद्र्र मारो ॥
नमो महाविद्या आगरा, आदि शक्ति सुन्दरी आपारा ।
अरि भंजक विपत्ति की त्राता, दया करो पीताम्बरी माता ॥
रिद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं, अरि समूल कुल काल ।
मेरी सब बाधा हरो, माँ बगले तत्काल ॥
॥ इति श्री बगलामुखी चालीसा पाठ समाप्त ॥
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No. of Page | 05 |
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